हर व्यक्ति घर की दिशा और घर के भीतर के वास्तु पर ध्यान ज्यादा रखता है परंतु घर की भीतर और बाहर छत कैसी होना चाहिए और कैसी नहीं होना चाहिए इस पर कम ही लोग ध्यान रखते हैं। घर की छत के वास्तु को भी जानना जरूरी है अन्यथा बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, तो आओ जानते हैं घर की छत के 10 नुकसान।
1. लाल किताब के अनुसार कुंडली का 12वां भाव घर की छत माना गया है। घर की छत को अच्छा रखेंगे तो 12वां भाव भी अच्छा होना माना जाता है। नहीं तो रोग और शोक का जन्म होगा, क्योंकि बारहवें भाव का असर 6वें भाव पर भी होता है।
2. घर की छत का उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर ढलान है तो यह आर्थिक हानी और नुकसान देगा। इसके लिए किसी वास्तुशास्त्री से मिलकर स्थान को देखकर ही ढलान किधर होना चाहिए यह तय होगा।
3. घर की छत में किसी भी प्रकार का उजालदान न हो। जैसे आजकल घर की छत में लोग दो-बाइ-दो का एक हिस्सा खाली छोड़ देते हैं उजाले के लिए। इससे घर में हमेशा हवा का दबाव बना रहेगा, जो सेहत और मन-मस्तिष्क पर बुरा असर डालेगा।
4. तिरछी छत बनाने से बचें- छत के निर्माण में इस बात का ध्यान रखें कि वह तिरछी डिजाइन वाली न हों। इससे डिप्रेशन और स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।
5. घर की छत पर किसी भी प्रकार की गंदगी न करें। यहां किसी भी प्रकार के बांस या फालतू सामान भी न रखें। जिन लोगों के घरों की छत पर अनुपयोगी सामान रखा होता है, वहां नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय रहती हैं। उस घर में रहने वाले लोगों के विचार नकारात्मक होते हैं। परिवार में भी मनमुटाव की स्थितियां निर्मित होती हैं।
6. घर की छत पर रखा पानी का टैंक किस दिशा में हो, यह जानना जरूरी है। उत्तर-पूर्व दिशा पानी का टैंक रखने के लिए उचित नहीं है, इससे तनाव बढ़ता है और पढ़ने-लिखने में बच्चों का मन नहीं लगता है। दक्षिण-पूर्व दिशा अग्नि की दिशा है इसलिए भी इसे पानी का टैंक लगाने के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। अग्नि और पानी का मेल होने से गंभीर वास्तुदोष उत्पन्न होता है। वास्तु विज्ञान के अनुसार दक्षिण-पश्चिम यानी नैऋत्य कोण अन्य दिशा से ऊंचा और भारी होना शुभ फलदायी होता है।
7. घर की छत की ऊंचाई भी वास्तु अनुसार होना चाहिए।। यदि ऊंचाई 8.5 फुट से कम होती है तो यह आपके लिए कई तरह की समस्याएं लेकर आती है और जीवन में आगे बढ़ना आपके लिए मुश्किल हो जाएगा है। घर यदि छोटा है तो छत की ऊंचाई कम से कम 10 से 12 फुट तक होनी चाहिए। इससे ज्यादा ऊंची रखने के लिए वास्तुशास्त्री से संपर्क करना चाहिए।
8. घर की छत कई प्रकार की होती है- सपाट छत, ढालू छत और गोल छत। अधिक वर्षावाले या बर्फबारी वाले क्षेत्रों में प्राय: ढालू छतें ही बनती हैं, परंतु आजकल कई मकानों में सभी तरह की छत के ही ढालू छत भी देखी गई है। किसी वास्तुशास्त्री से पूछकर ही छत का आकर तय करें अन्यथा नुकसान उठा सकते है।
9. छत के दो मुख्य प्राकर ये हैं- आपके रूम के भीतर की छत जहां पंखा आदि लगा होता है और दूसरा वह छत जिसे गच्ची या उपरी छत कहते हैं। उपरी छत के बारे में तो आपने पढ़ा है परंतु आजकल लोग भीतरी छत में भी कई तरह की डिजाइन बनाते हैं जिनमें से कुछ तो वास्तु अनुसार नहीं होती है। अत: इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि गोल डिजाइन होना चाहिए या कि चौकोर।
10. घर की छत टूटी फूटी है या जिसमें से बारिश के दिनों में पानी रिसता है तो यह भी भयंकर वास्तुदोष है। इसे जल्द से जल्द ठीक करा लें।