इस जगत में प्रत्येक मनुष्य को जीवनयापन करने के लिए मुख्यत: तीन वस्तुओं की आवश्यकता होती है। ये तीन अनिवार्य वस्तुएं हैं- रोटी, कपड़ा और मकान।
मकान के लिए भूमि आवश्यक होती है, एक अच्छा भवन तभी निर्मित हो सकता है जब उसके निर्माण के लिए अनुकूल भूमि उपलब्ध हो। वास्तु शास्त्र में भवन-निर्माण संबंधी सभी प्रकार के दिशा-निर्देश उपलब्ध हैं।
वास्तु अनुसार निर्मित भवन निवास के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। इस प्रकार के मकान में रहने वालों को यथोचित सुख-समृद्धि व अनुकूलता प्राप्त होती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार भूमि को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है। ये चार प्रकार हैं-
1.- ब्राह्मणी भूमि- यह भूमि श्वेत वर्णीय, कोमल, सुगंधित होती है। यह निवास के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है।
2.- क्षत्रिय भूमि- यह भूमि रक्त वर्णीय, कठोर, कसैले स्वाद वाली होती है। यह भी निवास के लिए श्रेष्ठ होती है।
3.- वैश्य भूमि- यह भूमि हरित या पीत वर्णीय, ना अत्यधिक कठोर और ना अति-कोमल, शहद की गंध वाली, स्वाद में खटास लिए। यह धनदायक होती है सामान्यत: व्यापारिक प्रतिष्ठानों और कारखानों के अति श्रेष्ठ होती है।
4.- शूद्रा भूमि- यह भूमि कृष्ण वर्णीय, अति कठोर, मदिरा के गंध वाली, स्वाद में कड़वी शूद्रा भूमि होती है। यह निवास के लिए वर्जित मानी गई है।
अत: उपर्युक्त वर्गीकरण के अनुसार निवास के लिए श्रेष्ठ भूमि का चयन कर वास्तु-अनुसार भवन निर्माण करने से लाभ होता है।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र