वर्षा ऋतु में पौधारोपण किया जाता है। पौधारोपण करते समय ज्योतिष और वास्तु का ध्यान रखते हुए उचित दिशाम में पौधारोपण करेंगे तो यह बहुत ही लाभदायक सिद्ध होगा। इससे जहां घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ेगी वहीं सभी तरह के संकट भी समाप्त हो जाएंगे। आओ जानते हैं पौध रोपण के लिए वास्तु नियम।
1. पौधारोपण हेतु उत्तरा, स्वाति, हस्त, रोहिणी और मूल नक्षत्र अत्यंत शुभ होते हैं। इनमें रोपे गए पौधों का रोपण निष्फल नहीं होता है।
2. जिन्हें अपना जन्म नक्षत्र ज्ञात हो वे जन्म नक्षत्र अनुसार रोपण करें।
3. शुक्ल पक्ष में पौधारोपण करें। शुक्ल पक्ष की अष्टमी से कृष्ण पक्ष की सप्तमी तक का समय वृक्षारोपण के लिए शुभ रहता है।
4. कोई भी पौधा घर के मुख्य द्वार के एकदम सामने न रोपे। बड़े वृक्ष मुख्य द्वार की ऊंचाई के तीन गुना दूर साइड में लगाएं।
5. वृक्ष की छाया प्रात: 9 से 3 बजे तक घर पर नहीं पड़ना चाहिए। घर की छाया से थोड़ी दूर पर पीपल, आम और नीम लगा सकते हैं। घर के उत्तर एवं पूर्व क्षेत्र में कम ऊंचाई के पौधे लगाने चाहिए।
6. पौधों को पहले अच्छी मिट्टी व खाद के गमलों में व फिर जमीन में लगाना चाहिए। ऐसा करने से उनका विकास अच्छा रहता है।
7. यदि किसी भी कारण से किसी वृक्ष को निकालना आवश्यक हो जाता है तो उसे माघ या भाद्रपद माह में ही निकालना चाहिए। साथ ही एक वृक्ष निकालने के स्थान पर एक नया वृक्ष लगाने का संकल्प लेना चाहिए। ऐसा तीन माह के भीतर कर देना चाहिए।
8. अग्निपुराण में तो पौधारोपण को एक पवित्र मांगलिक समारोह के रूप में बताया गया है। बहुत अच्छी मिट्टी और खाद के साथ पौधारोपण किया जाता था।
9. प्राचीकाल में पौधों को रोपने के पूर्व उन्हें औषधीय पौधों के रस से नहलाया जाता था या कुछ समय के लिए डुबोया जाता था। इससे पौधे में यदि कोई संक्रमण वगैरह हो तो समाप्त हो जाता था।
10. पौधा रोपण के समय औषधी से नहलाने के बाद शीर्षस्थ भागों पर, जहां से वृद्धि होती है, वहां सोने की सलाई से हल्दी कुंकु लगाकर अक्षत से पूजा की जाती थी। सूर्य जब मेष राशि में होता था तब किसी शुभ मुहूर्त में मंत्रोच्चार के साथ रोपित किया जाता था एवं बाद में नियमित देखभाल की जाती थी।