importance of vat savitri vrat in hindi: भारत की समृद्ध संस्कृति में कई ऐसे पर्व हैं जो केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं, बल्कि प्रकृति, विज्ञान और सामाजिक मूल्यों से भी गहरे जुड़े हुए हैं। ऐसा ही एक पर्व है वट सावित्री व्रत, जिसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं। यह व्रत जेष्ठ माह की अमावस्या को रखा जाता है और वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। परंतु क्या यह केवल धार्मिक रस्म है? या इसके पीछे कुछ वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व भी छिपा है? इस लेख में हम वट सावित्री पूजा को न केवल धार्मिक, बल्कि आधुनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी समझने का प्रयास करेंगे।
वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा
वट सावित्री व्रत की शुरुआत एक अद्भुत कहानी से होती है। सावित्री और सत्यवान की। कथा के अनुसार, सावित्री ने तप, व्रत और अडिग संकल्प से अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस पा लिया था। यह व्रत नारी शक्ति, सच्चे प्रेम और निष्ठा का प्रतीक है। महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की पूजा कर, उसके चारों ओर धागा लपेटती हैं और पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। इस पूजा का महत्व केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि मानसिक शक्ति और आत्मबल की भी मिसाल है।
वट वृक्ष का धार्मिक महत्व
वट यानी बरगद का वृक्ष भारतीय धार्मिक ग्रंथों में अत्यंत पवित्र माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश, त्रिदेवों का वास होता है। यह वृक्ष अक्षय वट कहलाता है, जिसका अर्थ होता है कभी न नष्ट होने वाला। यही कारण है कि महिलाएं वट वृक्ष की पूजा कर अपने दांपत्य जीवन की स्थायित्व की कामना करती हैं। बरगद का पेड़ दीर्घायु, मजबूती और निरंतरता का प्रतीक भी माना जाता है। इसकी शाखाएं जितनी विस्तृत होती हैं, उसे उतना ही मजबूत और जीवनदायी माना जाता है। यही संदेश यह पर्व देता है कि पति-पत्नी का संबंध भी बरगद की तरह गहराई और मजबूती से जुड़ा हो।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
अगर हम वट सावित्री पूजा को वैज्ञानिक नजरिए से देखें, तो इसके पीछे कई स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े लाभ छिपे हुए हैं। बरगद का पेड़ केवल छांव नहीं देता, बल्कि यह 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है, जो वातावरण को शुद्ध करता है। इसके पत्ते, फल और छाल आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोगी होते हैं। बरगद की जड़ें और छाल डायबिटीज, दस्त और त्वचा रोगों में लाभकारी मानी जाती हैं। इसकी छांव में ध्यान करने से मानसिक शांति मिलती है और यह तनाव को कम करता है। महिलाओं का व्रत करके वट वृक्ष के नीचे पूजा करना एक तरह की नेचुरल थेरेपी है, जो शरीर और मन दोनों को सशक्त करती है।
वट सावित्री पूजा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज में नारी की भूमिका और उसकी शक्ति का सम्मान भी है। यह व्रत उस संकल्प का प्रतीक है, जिसमें एक स्त्री अपने परिवार, पति और रिश्तों के लिए पूरी श्रद्धा और शक्ति से जुड़ी रहती है। आज के आधुनिक युग में जब रिश्ते अस्थायी और व्यस्तताओं में खो जाते हैं, ऐसे में यह पर्व पारंपरिक मूल्यों की याद दिलाता है।
साथ ही यह व्रत मानसिक शक्ति और ध्यान का अभ्यास भी है। एक दिन का उपवास, पूजा, नियम और ध्यान, ये सभी एक स्त्री को आत्मबल और मानसिक संतुलन देते हैं, जो आज के तनावपूर्ण जीवन में बेहद जरूरी है।
वट सावित्री पूजा हमें पर्यावरणीय चेतना की ओर भी इशारा करता है। बरगद जैसे पेड़ न केवल धार्मिक रूप से पूज्य हैं, बल्कि पृथ्वी के फेफड़े भी हैं। जब महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की पूजा करती हैं और उसकी रक्षा का संकल्प लेती हैं, तो यह अपने आप में एक ग्रीन मैसेज है। आज के समय में जब पेड़ कट रहे हैं और पर्यावरण संकट में है, तो ऐसे में भारतीय संस्कृति में सदियों से पुष्पित और पल्ल्वित होते ये त्यौहार निश्चित तौर पर सभी के लिए प्रेरणा बनते हैं।
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