पानी की बर्बादी के मामले में प्रदेश के दो महानगर-इंदौर और भोपाल, मुंबई व चेन्नई से आगे हैं। भोपाल में 35 फीसद पानी लीकेज की वजह से फालूत बह जाता है, जबकि इंदौर में 30 फीसद पानी बर्बाद होता है। इसके अलावा ग्वालियर, उज्जैन व देवास में भी 15 फीसद से ज्यादा पानी बर्बाद होता है।
यह खुलासा दिल्ली स्थित पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली देश की प्रतिष्ठित संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में हुआ है। संस्था ने देश के 71 शहरों का सर्वे कर यह रिपोर्ट तैयार की है। 70 किलोमीटर दूर बहने वाली नर्मदा से शहर तक पानी लाने में निगम को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च करना पड़ते हैं। ऐसे में 30 प्रतिशत पानी की बर्बादी होना वाकई गंभीर मसला है।
क्या है दिक्कत
शहर में लीकेज होने का सबसे बड़ा कारण शहर में बिछी पुरानी नर्मदा वितरण लाइन है। पश्चिमी क्षेत्र के इलाकों में तो 30-40 वर्ष पुरानी लाइन से ही सप्लाई की जा रही है। शहर में फिलहाल करीब 6 सौ किलोमीटर वितरण लाइन बिछाने का काम चल रहा है, लेकिन उसका अधिकांश नेटवर्क नई टंकियों से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा नर्मदा प्रथम व द्वितीय चरण भी 32 वर्ष पुराना हो चुका है। उसके पंप व वितरण नेटवर्क की क्षमता भी कम हो गई है। फिल्टर प्लांट में जलशुद्धिकरण से नर्मदा कंट्रोल रूम के मध्य भी लिकेज के कारण काफी पानी व्यर्थ हो जाता है।
लिकेज खोजने के लिए उपकरण नहीं
शहर में लिकेज खोजने के लिए अभी भी परंपरागत तरिका अपनाया जाता है। लिकेज खोजने के लिए राड साऊंड, इलेक्ट्रो ईको साउंड व अन्य तकनीकें अपनाई जा सकती है, लेकिन कभी इस दिशा में पहल नहीं की गई। तत्कालीन महापौर मधुकर वर्मा ने एक कंपनी की मशीन लिकेज खोजने के लिए क्रय करने का फैसला लिया था, डिमोस्टेशन के दौरान मशीन ने एक मल्टी से ही 50 अवैध नल कनेक्शन खोज लिये थे। इसके बाद मशीन क्रय करने का मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
81 एमएलडी पानी वेस्ट!
शहर में नर्मदा के प्रथम, द्वितीय व तृतीय चरण से 270 एमएलडी पानी लिया जाता है। करीब 81एमएलडी पानी लिकेज के कारण व्यर्थ। इसके बाद वितरण के लिए 189 एमएलडी पानी ही शेष रहता है। इसमें से कुछ हिस्सा ग्राम पंचायतों व आसपास के इलाको में भी वितरित होता है।
24 घंटे पानी को हरी झंडी
अब जल्दी ही राजेन्द्र नगर क्षेत्र के बाशिंदों को 24 घंटे पानी की सुविधा मिलने लगेगी। अगले कुछ दिनों में नगर निगम द्वारा इसके लिए टेंडर आमंत्रित किये जाएंगे। मामला कोर्ट में होने के कारण पिछले 6 माह से योजना अधर में लटकी हुई थी।