पश्चिम बंगाल में पूरी ताकत झोंकने के बाद भी भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ रहा है। राज्य की
जनता ने लगातार तीसरी बार ममता बनर्जी पर भरोसा जताया है। पीएम मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा समेत लभगभ सभी दिग्गजों के लगातार राज्य में डटे रहने के बाद भी तृणमूल कांग्रेस की इस जीत ने राजनीतिक
विश्लेषकों को हैरान कर दिया है। आइए जानते हैं भाजपा की हार के प्रमुख कारण...
कोरोना वायरस : देश और पश्चिम बंगाल में कोरोना वायरस के तेजी से बढ़ते मामलों ने भाजपा के चुनावी
अभियान पर बुरा असर डाला। आखिरी के 4 चरणों पार्टी का चुनाव अभियान बिखरा-सा नजर आया। एक और
भाजपा के बड़े बड़े चुनावी वादे थे तो दूसरी और मतदाता मूकदर्शक बने राज्य में बढ़ रहे कोरोना के कहर को देख रहे थे। बड़ी संख्या में बाहर से आए नेता और कार्यकर्ता लोगों की चिंता बढ़ा रहे थे। तृणमूल कांग्रेस को क्षेत्रीय पार्टी होने का फायदा मिला।
ममता की टक्कर का नेता नहीं : भाजपा को पश्चिम बंगाल में ममता की टक्कर के नेता की कमी जमकर
खली। पार्टी ने पीएम मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। बहरहाल बंगाल की जनता को पता था
कि ना तो मोदी और ना शाह राज्य के सीएम पद को संभालेंगे। दिलीप घोष से लेकर शुभेंदु अधिकारी तक सभी पर ममता की लोकप्रियता भारी पड़ी।
नहीं चला विकास होबे का नारा : भाजपा ने चुनावों में विकास होबे का नारा दिया तो ममता ने खेला होबे
का। मोदी, शाह ने राज्य में बड़ी-बड़ी रैलियां की और लोगों को भरोसा दिलाया कि अगर राज्य में कमल का
फूल खिला तो यहां विकास की नदियां बहा देंगे। लोगों ने उनकी बात पर भरोसा नहीं किया ममता की पार्टी जीत की हैट्रिक लगाने में सफल रही।
बड़े नेताओं की कमी : यूं तो भाजपा ने राज्य में अपने स्टार प्रचारकों की फौज उतार दी थी, लेकिन ये वे नाम
थे जिन्हें देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। ये सितारे भी भीड़ जुटाने में तो सफल रहे पर इसे वोट में नहीं
बदल सके। भाजपा के पास जो भी नेता थे उनमें से अधिकांश तृणमूल कांग्रेस से आए थे। पार्टी को इसका भारी खामियाजा उठाना पड़ा।
वोटों का ध्रुवीकरण : भाजपा ने हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण करने का भी भरसक प्रयास किया। रामकृष्ण मठ से लेकर बंगाल से सभी बड़े मंदिरों में दिग्गज भाजपा नेताओं ने दस्तक दी। ममता की छवि को हिंदू विरोधी बताने का भी प्रयास हुआ। बहरहाल ममता ने इसकी काट में चंडी पाठ कर दिया। बहरहाल हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण तो हुआ नहीं उलटा ममता ने मुस्लिम मतदाताओं का भरोसा जीत लिया।
स्थानीय कार्यकर्ताओं की कमी : भाजपा ने पूरे चुनाव अभियान में स्थानीय कार्यकर्ताओं से बाहरी नेताओं और
कार्यकर्ताओं पर भरोसा किया। कई राज्यों से मुख्यंमत्री, मंत्री, विधायक और सांसदों को यहां बुलवाकर जिम्मेदारी दी गई। पहले टिकट वितरण और फिर चुनाव प्रबंधन में अवहेलना से बंगाल के भाजपा कार्यकर्ता नाराज हो गए। इसी वजह से अंतिम चार चरणों में पार्टी का चुनाव अभियान बिखरा बिखरा सा नजर आया।
मिथुन चक्रवर्ती की अनदेखी : मिथुन चक्रवर्ती के भाजपा में शामिल होने को कुछ लोग बंगाल की राजनीति में गेम चेंजर के रूप में देख रहे थे। चुनावी माहौल में रंगें भाजपा नेताओं ने इस दिग्गज अभिनेता के लिए कोई ठोस रणनीति ही नहीं बनाई। वे पार्टी में बस शो-पीस बनकर रह गए। इस अनदेखी ने राज्यभर में मिथुन के फैंस को नाराज कर दिया।