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कब आएगा वह दिन?

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- सविता प्रथमेश मिश्र

NDND
बात सात-आठ बरस पहले की है। विकलांग दिवस के मौके पर आकाशवाणी के लिए एक कार्यक्रम बनाने के सिलसिले में शहर की अंध-बधिर शाला में जाना हुआ। चूँकि कार्यक्रम महिलाओं के लिए बनाना था, इसलिए स्वभावतः मेरी रुचि उन महिलाओं से बात करने में अधिक थी जिन्होंने अपनी सामान्यता के बाद बावजूद शारीरिक विकलांग को जीवनसाथी बनाया। उनके इस कदम पर उनका सम्मान किया जा रहा था।

लेकिन इससे भी पहले मेरी रुचि उन पुरुषों में थी जिनके जीवन में इन पत्नियों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। कोई दृष्टिहीन, कोई बधिर, कोई मूक... तो कोई दो या तीन परेशानियों के साथ...। चार-पाँच घंटे चले कार्यक्रम में बारी-बारी से मेरी दृष्टि पति और फिर पत्नी पर जा ठहरती है। पत्नी बड़े गर्व से स्टेज पर जाती, प्रशस्ति-पत्र और पुरस्कार लेकर वापस आ जाती। इन खूबसूरत कन्याओं को किसने प्रेरित किया? कार्यक्रम समाप्ति के पश्चात सभी से मेरा यही प्रश्न था।

  उनके अब तक के अविवाहित रहने पर उन्होंने हँसकर टाल दिया, लेकिन उनकी हँसी में छिपा दर्द आज तलक जेहन में जिंदा है, जो बार-बार प्रश्न कर रहा है, आखिर क्यों वे अब तक अविवाहित हैं? क्या सिर्फ इसलिए कि वे महज और महज एक महिला हैं?      
कुरेदने पर बमुश्किल निकल पाई कुछ बातों का सार यही था कि करीब-करीब सारी महिलाएँ घर की माली हालत की शिकार थीं। मायके में या तो कोई पुरुष नहीं था, जो अपनी जिम्मेदारी निबाहता या जो थे वे आर्थिक रूप से इतने कमजोर थे कि वर पक्ष की भारी-भरकम माँग को पूरी कर पाने में असहाय थे।

इसी बीच इसी शाला की एक दृष्टिहीन पीएचडीधारी शिक्षिका से मेरी दोस्ती हो गई। कभी कविता, कभी वार्ता तो कभी भेंटवार्ता...। आकाशवाणी के लिए ढेरों कार्यक्रम उनके साथ करते हुए एक अपनत्व-सा हो गया। चालीस को पार कर चुकी उनकी वय, दुबला-पतला शरीर, हँसमुख, बहुमुखी प्रतिभा की धनी, सर्वश्रेष्ठकर्मी हेतु पुरस्कार प्राप्त। बातों-बातों में एक दिन उनसे नितांत निजी प्रश्न पर बैठी।

उनके अब तक के अविवाहित रहने पर उन्होंने हँसकर टाल दिया, लेकिन उनकी हँसी में छिपा दर्द आज तलक जेहन में जिंदा है, जो बार-बार प्रश्न कर रहा है, आखिर क्यों वे अब तक अविवाहित हैं? क्या सिर्फ इसलिए कि वे महज और महज एक महिला हैं? अन्यथा उनके साथी पुरुष (जिनकी पत्नियाँ सम्मानित हुईं) और उनमें क्या फर्क है? वे भी कमाती हैं, आत्मनिर्भर हैं।

एक दृष्टिहीनता को छोड़ बाकी हमारी और आपकी ही तरह है। क्या हमारा पुरुष समाज कभी उस उदार स्थिति पर पहुँच पाएगा, जब सामान्य स्वस्थ पुरुषों का सम्मान इस बिना पर हो कि उन्होंने शारीरिक अक्षम महिला से विवाह किया है? बस, यही एक प्रश्न सामने आ खड़ा होता है।

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