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कम पड़ गए कंधा देने वाले

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हमें फॉलो करें वामा विशष
- करंजिया से संदीप गुप्ता

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जवाहरलाल नेहरू के अजीज मित्र और विश्व प्रसिद्ध मानवशास्त्री वेरियर एल्विन की आदिवासी पत्नी कोसी बाई का 102 वर्ष की आयु में मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले के करंजिया में रैतवार गाँव में निधन हो गया। इस सुदीर्घ जीवन में कोसी ने कई उतार-चढ़ाव देखे।

चालीस के दशक में जब शायद ही किसी आदिवासी ने राजधानी दिल्ली की चमक-दमक देखी हो, कोसी ने श्रीमती एल्विन के रूप में प्रधानमंत्री भवन से लेकर रीगल सिनेमा तक की चमक-दमक देखी लेकिन उनके जीवन की यह रोशनी लंबे समय तक नहीं टिकी। एल्विन का मोहभंग हुआ और वे मेघालय चले गए।

उन्होंने कोसी की जिम्मेदारी अपने निकटस्थ मित्र शामराव हिलारे को सौंपी और गुजारा-भत्ता सहित बड़ी संपत्ति कोसी को दी, लेकिन शामराव ने कोसी से छल किया। प्रधानमंत्री निवास के विशिष्ट अतिथि कक्ष में रहने का सुख प्राप्त कर चुकी कोसी को अपने आखिरी दिन बेहद अभाव में अपनी कुटिया में काटने पड़े।

विडंबना यह रही कि उनकी शवयात्रा में एक दर्जन लोग भी शरीक नहीं हुए। समाज के लोगों ने यह कहकर उनकी मिट्टी में जाने से इनकार कर दिया कि उन्होंने अंग्रेज से विवाह कर लिया था इसलिए वह आदिवासी नहीं रही। सात समंदर पार से आए एक अंग्रेज को करंजिया की 14 वर्षीय अल्हड़ आदिवासी बाला भा गई।

दरअसल, एल्विन के अंदर हमेशा से एक आदिवासी मौजूद रहा था। वह बैगा समाज की जीवनशैली देखने आए लेकिन उन्हें लगा कि समाज का हिस्सा बने बगैर इसका अध्ययन करना अधूरी कोशिश जैसा होगा। कोसी से उन्हें दो पुत्र प्राप्त हुए- जवाहर और विजय। जवाहर के नामकरण की कहानी दिलचस्प है। नेहरू, एल्विन और कोसी एक बार रीगल सिनेमा गए, फिल्म के बीच अचानक नेहरू कोसी की ओर मुखातिब हुए।

उन्होंने पूछा- 'कोसी, क्या तुमने सोचा है कि तुम अपने होने वाले बच्चे का नाम क्या रखोगी ?' कोसी उत्तर नहीं दे पाईं । इस पर नेहरू ने आग्रह किया कि अगर पुत्र हुआ तो उसका नाम जवाहर रखना। इसीलिए कोसी ने अपने बड़े पुत्र का नाम जवाहर रखा।

दुर्भाग्य से दोनों पुत्रों का निधन हो गया, उनकी दोनों पुत्रवधू वैधव्य का जीवन जी रही हैं। सरल स्वभाव की कोसी ने कभी भी एल्विन के प्रति कटुता का प्रदर्शन नहीं किया। उनके जीवन के अंतिम दिनों में जब मीडिया ने उनकी बदहाली की खबरें छापीं, तब भी कोसी ने एल्विन के साथ बिताए हुए सुनहरे दिनों की ही यादें बाँटीं।

कोसी का जीवन अपने समय के लिए एक दस्तावेज की तरह है जो हमें आदिवासी समाज का आईना दिखाता है। जिन्हें जंगलवासी और एकांतप्रिय कहा गया, उसी समाज ने एक अत्याधुनिक संस्कृति से रिश्ता कायम किया। भले ही एल्विन इस रिश्ते को लंबे समय तक नहीं निभा पाए लेकिन कोसी की तरफ से वफादारी में कोई कमी नहीं आई। वे आजीवन एल्विन की यादों के साथ रहीं।

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