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नम्रता कहो 'बच्चन' नहीं

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हमें फॉलो करें नम्रता बच्चन
- सुनीति देशमुख

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फिल्म जैसे भड़कीले माध्यम और अथाह ग्लैमर के बीच कला के किसी और माध्यम के साधक के रूप में एक फिल्मी परिवार से आकर अपनी पहचान बनाना एक मुश्किल चुनौती है। ऐसे ही परिवेश में नम्रता बच्चन का आना और फिल्मों से दूर अपनी कविताओं और पेंटिंग से कला की दुनिया में अपनी जगह बनाना आसान तो नहीं रहा होगा लेकिन जब पेंटिंग की दुनिया में उसकी तुलना अमृता शेरगिल से की जाती हो तो कहा जा सकता है कि उसके काम में कुछ तो बात होगी ही।

पतली और छोटे कद की नम्रता पिछले दिनों दिल्ली में अपनी पेंटिंग प्रदर्शनी के दौरान विशुद्ध कलाकार की तरह दिखीं। वे अमिताभ, ऐश्वर्या, अभिषेक, जया और श्वेता नंदा के बीच कला के एक नितांत अलग से क्षेत्र में अपनी प्रतिभा दिखा रही हैं।

1976 में हरिवंशराय बच्चन के छोटे बेटे और अमिताभ बच्चन के छोटे भाई अजिताभ तथा रमोला के घर मुंबई में जन्मी नम्रता की पढ़ाई पहले स्विट्जरलैंड और इंग्लैंड में हुई। फिर उन्होंने फाईन आर्ट के तहत पेंटिंग और आर्ट हिस्ट्री में बैचलर डिग्री रोड आइलैंड स्कूल ऑफ डिजाइन से ली। बाद में ग्राफिक डिजाइन की डिग्री न्यूयॉर्क के पारसन स्कूल ऑफ डिजाइन से ली। 2003 से वे मुंबई में रह रही हैं।

अपने बारे में नम्रता कहती हैं-'चूँकि मैं स्वभाव से बहुत शांत हूँ, इसलिए हर वक्त आसपास की चौकस निगाहें मुझे सुविधाजनक नहीं लगती हैं। हाँ मैं पैदाइशी बच्चन हूँ लेकिन प्रसिद्धि सिर्फ नाम के साथ ही नहीं आती है। हमारे परिवार का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। हाँ, सार्वजनिक तौर पर इसके अपने फायदे भी हैं लेकिन यहाँ हर तलवार दो-धारी है। जब समय अच्छा होता है तो हम अच्छे, लेकिन जब समय अच्छा नहीं है तो सब कुछ धुल जाता है।

इसलिए मुझे अकेले रहना अच्छा लगता है। मैं जानती हूँ कि प्रसिद्धि स्वभाव से बहुत चंचल होती है।' अपने दादा हरिवंशराय बच्चन की 102वीं जयंती के मौके पर उनकी प्रसिद्ध किताब 'मधुशाला' के कॉफी टेबल बुक संस्करण में नम्रता ने चित्रों की भावांजलि दी। इस सिलसिले में वे कहती हैं-'मैंने खास तौर पर मधुशाला को चित्र बनाने के लिए चुना है क्योंकि इसे चित्रित करना आसान था और इसकी भाषा बहुत काव्यात्मक है।' वे कहती हैं कि वे हरिवंशराय बच्चन की कविताओं से प्रेरणा पाती हैं।

सन्‌ 2006 में नम्रता की कविताओं की किताब 'डेलीवरेंस' भी प्रकाशित हुई। वे बताती हैं कि कला की तरफ उनका रुझान बचपन से ही है। वे जब बच्ची थीं तो रंगों और क्रेयॉन से खेला करती थीं। वे कहती हैं-'मुझे खुद को अभिव्यक्त करना अच्छा लगता है, इसलिए मैं कविताएँ लिखती हूँ।'

नम्रता की पेंटिंग की पहली एकल प्रदर्शनी 'गिव मी स्पेस' नवंबर 2004 में म्यूजियम गैलरी मुंबई में लगी थी। इसी तरह उनका दूसरा शो था 'डेलीवरेंस', जिसमें उनकी कविताओं की किताब में प्रकाशित चित्रों को शामिल किया गया था। इसकी प्रदर्शनी लंदन के आईपीसीए में 2007 में आयोजित की गई थी।

इसमें शामिल सारे चित्र विचारों और अनुभवों का संग्रह-से थे, जैसे कि कविता 'लीव्स ऑफ एबसेंस', जोकि नम्रता ने मुंबई में 2005 में हुई भयानक बारिश के बाद लिखी थी। नम्रता चित्रों और शब्दों के बीच के संबंध को समझाते हुए कहती हैं-' कई बार चित्रों के माध्यम से शब्दों को समझने के लिए तैयार किए जाते हैं लेकिन यह इससे भी ज्यादा लचीला संबंध है। यह बहुत ज्यादा कठोर और अनुशासित नहीं होता है।' आर्ट गैलरी के एक विशेषज्ञ कहते हैं कि नम्रता का ज्यादातर काम बहुत आलंकारिक पोर्ट्रेट है, स्वभाव से काल्पनिक जिनके माध्यम से वे खुद को प्रतिबिंबित करती हैं।

नम्रता अपने सरनेम बच्चन को लेकर बहुत संवेदनशील हैं जैसा कि लंदन के फाइन आर्ट गैलरी के विशेषज्ञ इंदर परसीचा कहते हैं-'कृपया उन्हें अमिताभ बच्चन की भतीजी मत कहो। उनमें बहुत प्रतिभा है। यह दुबली-पतली लड़की अमृता शेरगिल की तरह है। मैं तो चाहूँगा कि वे खुद को नम्रता ही कहें।'

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