पाँच रुपए से बहुत कुछ होता है! हम नमक खरीद सकते हैं, मिर्च खरीद सकते हैं। अगर हम आलसियों की तरह बैठे रहेंगे तो इतना भी नहीं खरीद पाएँगे। कोई हमें सैकड़ों, हजारों में रुपए नहीं देगा। बूँद-बूँद से महासागर बनता है।'
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अपनी सलाह दे देती हूँ। इसलिए जब वह अपने पिता के साथ बाहर गया, उसका चेहरा उदास था। मुझे इस सुस्त लड़के की याद उस समय आ गई, जब मैं कुछ समय बाद उड़ीसा के समुद्र तट पर उसके ठीक विपरीत रवैए वाले लड़के से मिली। उड़ीसा को प्राकृतिक सौंदर्य वरदान में मिला है और वहाँ हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत के नायाब उदाहरण देखने को मिलते हैं। हममें से ज्यादातर लोग उड़ीसा को प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के रूप में देखते हैं। वहाँ एक बेहद खूबसूरत स्थान है, जिसके बारे में लोग कम ही जानते हैं। यह एक शांत और छोटा मछुआरों का शहर है-चाँदीपुर। इसकी भुवनेश्वर से दूरी लगभग दो सौ किलोमीटर है। यहाँ एक छोटा-सा अतिथिगृह है, लेकिन बहुत कम लोग ही यहाँ आते हैं। जो इतनी दूर तक आ जाते हैं, वे समुद्र के साथ लुका-छिपी का खेल खेलते हैं। यहाँ समुद्र पाँच किमी पीछे चला जाता है और समतल जमीन छोड़कर, एकदम अदृश्य हो जाता है। इस जमीन पर पैदल चल सकते हैं, खेल सकते हैं, यहाँ तक कि इस अस्थाई जमीन पर जीप चलाई जा सकती है। कुछ घंटों बाद समुद्र अपने पूरे वेग से वापस आ जाता है, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। लोग समुद्र किनारे बैठकर इस अद्भुत घटना के घटने का इंतजार करते हैं। एक बार मैं समुद्र के किनारे बैठकर, समुद्र के पीछे हटने का इंतजार कर रही थी, ताकि मैं उस जमीन पर चलने का आनंद ले सकूँ।
समुद्र धीरे-धीरे पीछे हट रहा था। जैसे ही समुद्र थोड़ा पीछे हटता, लाल केकड़े रेत पर आ जाते, बड़े, बच्चे उन्हें पकड़ते और छोटे बच्चे सीप इकट्ठी कर रहे थे। तभी मैंने एक छोटे लड़के को जाल पकड़ने में अपनी माँ की मदद करते हुए देखा, उसकी उम्र लगभग बारह साल की होगी। जब वह थक जाती, वो लड़का उसकी मदद करता। जब माँ को अपने बेटे की जरूरत नहीं होती, तब वह केकड़े इकट्ठे करता। उसके क्रिया-कलाप बता रहे थे कि वह बहुत उत्साही और खुश है। जब वह समुद्र किनारे आया तो, मुझे उसने ताजे केकड़ों की पेशकश की, मैं उसके लिए एक खरीददार थी। मैंने उससे कहा कि मैं केकड़े नहीं खाती, पर मैं उससे बात करना चाहती थी।
वह मेरे पास आकर सीढ़ियों पर बैठ गया, जो कि आगंतुकों के लिए बनाई गई थीं। मैंने उसकी तरफ ध्यान से देखा। वह दुबला और काला था, लेकिन उसकी आँखें इस तरह चमक रही थीं, जैसे अँधेरे में हीरे। उसने केवल बरमूडा पहना था, उसका बदन पूरी तरह भीगा हुआ था,पर वह जरा भी असहज नहीं था। वह किसी ताजा खिले फूल की तरह लग रहा था। उसकी मुस्कान और उत्साह देखने लायक थे।
मैंने उसके परिवार के बारे में पूछा। उसने बताया कि उसके पिता ऑटोचालक हैं, एक दिन में पचास रुपए कमाते हैं। उसकी माँ मछली और केकड़े पकड़ कर परिवार की आय में सहयोग करती है। यह लड़का, जिसका नाम जावेद था, स्कूल में पढ़ता और हमेशा प्रथम आता था।घर में उसकी छोटी बहन भी थी। मैं यह जानने के लिए उत्सुक थी कि जावेद एक दिन में कितना कमा लेता है और उसकी दिनचर्या क्या है।
उसने कहा- 'सुबह जब समुद्र पीछे जाता है, तो मैं केकड़े पकड़ता हूँ, मेरी माँ की मदद करता हूँ, फिर घर जाकर नहाता हूँ और रसोई के छोटे-मोटे काम में माँ की मदद करता हूँ। उसके बाद मैं स्कूल जाता हूँ, शाम को अपना होमवर्क करता हूँ और रात में जब समुद्र पीछे हटता है तो वापस केकड़े पकड़ता हूँ। अल्लाह हमारी जमीन पर बहुत मेहरबान है। मैंने सुना है कि हमारे देश में केवल इसी जगह समुद्र अदृश्य होता है और हम दिन में दो बार बिना किसी कठिनाई के केकड़े पकड़ सकते हैं।
वह एक दिन में शायद पाँच या दस रुपए कमाता होगा।
मैं दुःखी थी कि ऐसी कड़ी मेहनत के बाद वह इतना कम कमाता है। मैंने उससे पूछा- 'केवल पाँच या दस रुपए, जावेद?' 'तुम्हें इससे क्या मिल जाएगा?' 'यह कमाने के लिए तुम सुबह पाँच बजे उठ जाते हो और रात के ग्यारह बजे तक सोने नहीं जाते हो।'
मेरे सवाल से उस लड़के का उत्साह ठंडा नहीं पड़ा। हँसते हुए उसने कहा- 'मैडम क्या पाँच रुपए, कुछ नहीं की तुलना में एक बड़ी रकम नहीं है? पाँच रुपए से बहुत कुछ होता है! हम नमक खरीद सकते हैं, मिर्च खरीद सकते हैं। अगर हम आलसियों की तरह बैठे रहेंगे तो इतना भी नहीं खरीद पाएँगे। कोई हमें सैकड़ों, हजारों में रुपए नहीं देगा। बूँद-बूँद से महासागर बनता है।'
जावेद के उत्तर से मैं हतप्रभ थी। एक छोटे से गरीब मछुआरे ने मुझे पुरानी कहावत याद दिला दी, 'अँधेरे को कोसने की बजाय, एक मोमबत्ती जलाना बेहतर है।'
तब मुझे अपने मित्र के बेटे की याद आ गई, जो सॉफ्टवेयर कंपनी की किसी लाभप्रद नौकरी की आस में अपना समय बर्बाद कर रहा है।