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डॉ. जया अग्निहोत्री मिश्रा : बचपन के संघर्ष ने बनाया संवेदनशील लेखिका, आज है कामयाब डॉक्टर

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डॉ. छाया मंगल मिश्र

डॉ. जया मिश्रा
ये हैं जया। यूं तो कई फोटो उपलब्ध हैं जया के मेरे पास, पर किरदार ही इनका ऐसा है कि एक यही फोटो ही सब कुछ कह देता है। जया के किरदार का प्रतिबिम्ब।
 
कहते हैं बांसुरी मधुर सुर और तान इसलिए देती है कि उसके हृदय में संवेदनाओं से सराबोर छेद होते हैं और इनमें प्यार, कोमलता, रिदम और हृदय की धड़कन में बसी पावनता के साथ एहसासों की फूंक मारने और अटूट प्रेम व आत्मीयता में डूबी उंगलियों के चलन की जुगलबंदी से जो जादू पैदा होता है ना, बस वही स्वर्गानुभूति रचता है।
 
किरदार दमदार के इस क्रम को लेकर आज मैं उन सौभाग्यशालियों में से हूं, जो अपनी पुत्रीसम भतीजी जया को अपनी लेखनी के किरदार के रूप में महसूस कर रही हूं।
 
घुंघराले, घनेरे, लंबे, रेशमी बालों और बारहमासी फूल-सी मुस्कान, चपल-चमकीली आंखों की मालकिन ये जया, जिसके इस प्रभावशाली, सादगीपूर्ण, सुंदरता से भरपूर व्यक्तित्व से उसके पास आने वाले मरीज तो ऐसे ही आधा तो ठीक हो जाता होगा और बचा हुआ काम जया का आत्मीयता और आत्मविश्वास से भरा हुआ मधुर व्यवहार पूरा कर देता है। दवा से ज्यादा व्यवहार जो काम कर जाता है।
 
जी हां, जया डॉक्टर है। मैंने पारिजात कहा है ना जया को। छोटे-छोटे अनंत सफेद और केसरिया रंगों के सितारों से चमकते फूल। भीनी-भीनी मीठी-सी महक खुद में भरे हुए। पूरा का पूरा बागबां समाया हो जैसे। ऐसी ही तो है वह। मैं उससे मिली कम, पढ़ा ज्यादा है। हां सच, मजाक नहीं है। मौका ही नहीं मिला जीवन की आपाधापी में। पर भतीजे अचल के कारण रिश्तों की महक कायम रही और जया से संपर्क भी। खैर!
 
बात जया को पढ़ने की कर रही थी, सो ये जया डॉक्टर होने से पहले प्यारी और आदर्श बड़ी बेटी, बहन, पत्नी, मां तो हैं ही, साथ-साथ सामयिक लेखिका, गायिका और सबसे बढ़कर जिम्मेदार सामाजिक सरोकार रखने वाली गुणी शिक्षित सुलझी हुई नारी हैं। सभी उसके इन गुणों के कायल हैं। पर उस पर खासियत यह है कि हमारे कुटुम्ब की गौरव जया को घमंड छू कर भी नहीं गया और यही उसकी सदाबहार प्राकृतिक खूबसूरती का राज भी है।
 
आगे कुछ लिखने के पहले मेरे भतीजे टिंकू को ढेर सारा शुभाशीष, प्यार क्योंकि उसने ही मुझे जया को पढ़ने का मौका दिया। नि:स्वार्थ प्रेम से स्वत: ही मुझे उसने इन पुस्तकों को उपलब्ध करवाया जिसे जया ने खुद को अपने लेखन में अभिव्यक्त किया है।
 
5 भाई-बहनों में सबसे बड़ी जया ने अभी तक 2 किताबें लिखी हैं- एक कविता संग्रह 'पुरानी डायरी से, दूसरी लघुकथा संग्रह 'आई एम स्पेशल'। इसके साथ ही स्वयं के लिखे, गाए भजनों की सीडी भी रिकॉर्ड कर निकाल चुकी हैं।
 
49वें बसंत पार कर चुकी ये शोख बाला नित नया कुछ करने को आतुर रहती है। उसकी कथाओं के संग्रह को पढ़ने के बाद सभी महिलाओं को यही महसूस होने लगता है कि हां हम भी स्पेशल हैं। ऐसी ही हैं वो कहानियां। और हां, इस पुस्तक को उन सभी स्त्री रोग विषेशज्ञों को समर्पित करना जया के बड़प्पन की बानगी देता है। अपने सृजन को समर्पित करना, बड़े दिल का होना और सहृदयता की मिसाल होता है।
 
कहानियों में मेरे नजरिये से जया ने अपनी कविता 'थोड़ा-थोड़ा तुम भी जी लो, थोड़ा मुझको भी जीने दो' को साकार किया है। हर महिला की पीड़ा को चाहे वो शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक कैसी भी हो, एक नारी और डॉक्टर की हैसियत और सामाजिक जिम्मेदारी को निभाते हुए पूरे मनोयोगपूर्वक मनोभावों को उकेरा है, जैसे सामाजिक समस्याओं- अंधविश्वास, दहेज, मृत्युभोज, नसबंदी, राह चलते होने वाली छेड़खानी, बलात्कार, पौरूष दंभ जैसे कई मुद्दे जो समान रूप से पिछड़ेपन की ओर धकेलते हैं, इनको अपनी कथा- ओझा बाबा, कनीज़ फातिमा, सीमेन टेस्ट, मृत्युभोज, नसबंदी, बेटी, सॉरी मैडम, आधुनिक सोच, कांच वाली लड़की में पिरोया है तो वहीं हास्य भी, जैसे चिंता, पतकी मैडम क्यों रोई, फीस का बकरा, बादाम के लड्डू में उपस्थित है।
 
अंकुर में थैलेसीमिया से लड़ते परिवार की व्यथा है तो तोरणा किला में हिम्मत का पाठ, गोल्ड मेडल में नजरिये का फेर है तो निर्णय, उपकार, हाथ का खाना, हंसा टिफिन वाला, ब्लड ग्रुप, एम्टीनेस्ट सिंड्रोम, उपहार देने का सुख अपने आप में यथार्थ की व्याख्या करते हैं व खोते जा रहे मूल्यों और संवेदनाओं को सहेजने का सुख प्रकट करते हैं।
 
बात अभी खत्म नहीं हुई है। हमारी जया केवल कंटीले नैन-नक्श ही नहीं रखतीं, बल्कि कटाक्ष करना भी जानती हैं, जैसे अपनी कथा कोशिश और खुला आसमां। आधुनिकता की पोल खोलता करारा तमाचा। ऐसा नहीं है, साथ ही साथ जाने-अनजाने में दिल के दुख जाने पर हुई दर्द से निकल पड़ी आह जो मनुष्य की स्वभावगत होती है, के लिए भी 'दुर्भावना' में क्षमा जैसे स्वर्णाभाव के साथ पेश किया। डॉक्टर का व्यावहारिक ज्ञान, किताबी ज्ञान से इतर की दुनिया का हुनर तो खुशी भावुकता से परिपूर्ण कथा है।
 
ग्यारंटी-वारंटी एक औरत की पीहर को लेकर ससुराल में केवल वस्तु की तरह इस्तेमाल किए जाने की अंतहीन दर्द की अभिव्यक्ति है। एक डॉक्टर की हत्या पढ़ी-लिखी, उच्च शिक्षित बेटियों से विवाहोपरांत ससुराल पक्ष के धिक्कारपूर्ण व्यवहार और पति के कायराना व्यवहार से मरती मानवीयता से उपजती घृणा का दंश। उफ्... रोंगटे खड़े कर देता है।
 
इन सबके बावजूद रातों में सुनसान सड़कों पर चांद को अपनी हथेलियों में कैद करने की चाहत रखने वाली प्रकृति प्रेमी जया, अपनी मां और दादी की गोदी की गर्मी को महसूस कर बचपन जीती जया, अपने बचपन के संघर्ष को गर्व से सहेज वर्तमान का आनंद लेती जया, अपने पापा को पल-प्रतिपल याद करती रिश्तों को समर्पित जया।
 
और मेरे लिए...
 
पारिजात-सी महकती, गुणों की खान, मानव सेवा को समर्पित, जीवनदान देतीं, संजीवनी...
 

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