बड़े शहरों में युवाओं की सोच बड़े कल्चरल बदलाव ला रही है। करियर को प्राथमिकता देने वाले युवा बच्चों को लेकर कुछ अलग सोच रहे हैं। इस सोच के तहत युवा बच्चे पैदा न करने के ऑप्शन पर भी विचार करने लगे हैं।
2006 में मुंबई के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेस ने पाया कि फेमिली हेल्थ सर्वे के लिए 1 लाख इंटरव्यू ली गईं महिलाओं में से 2.3 प्रतिशत के बच्चे नहीं थे। इसके अलावा उनका बच्चे पैदा करने का कोई इरादा नहीं था। इस विषय में एक्सपर्ट मान रहे हैं कि ऐसी महिलाओं की संख्या में निरतंर वृद्धि हो रही है जो बच्चे पैदा करना नहीं चाहतीं।
क्या हैं इस सोच के पीछे के कारण
इस सोच के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं। एक्सपर्ट की मानें तो युवा मान रहे हैं कि बच्चों के लिए आर्थिक स्थिति कहीं बेहतर होना चाहिए। उनके मुताबिक बच्चा पैदा करने के पहले 100 प्रतिशत आर्थिक सुरक्षा बेहद जरूरी है। साथ ही माता पिता दोनों वर्किंग हैं और बच्चे की स्थिति में कम से कम एक साल का अवकाश लेने की आवश्यकता है। ऐसे में अक्सर दोनों ही इस स्थिति के लिए किसी भी समय तैयार नहीं हैं। महिलाओं का भी मानना है कि ऐसे में उनकी दशा बहुत अधिक बदल जाएगी और प्रोफेशनली स्थिति बहुत अधिक बिगड़ जाएगी।
इसके अलावा बच्चों के आने पर पूरी जिंदगी में बड़ा बदलाव आता है। दिन के 24 घंटों को बच्चों के हिसाब से बदलना होता है। ऐसे में युवा जोडे इसके लिए तैयार नहीं इसके अलावा महिलाएं मां बनने पर शरीर में आने वाले बदलाव के लिए भी तैयार नहीं। फिगर में आने वाले बदलाव की आशंका भी युवा महिलाओं को बच्चे पैदा करने से रोक रही हैं।