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कोरी दिखावटी नहीं ट्रॉफी वाइव्ज

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- रागि‍नी देशपांड
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अब वे केवल पति की बाँहों में बाँहें डालकर, किसी पार्टी में महँगी, डिजायनर ड्रेस पहनकर, इंगरेज्जी में गिटर-पिटर करने के लिए ही नहीं हैं बल्कि उनकी अपनी मुकम्मल जगह है। ट्रॉफी वाइव्ज अब सजावट या समाज के समक्ष प्रदर्शन भर के लिए नहीं रहीं, वे खुद की पहचान को अलग और सार्थक अर्थों में स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं।

चकाचौंध भरी, शानो-शौकत और बरसते रुपयों से सजी तथा आसमान में उड़ती दुनिया... एक दुनिया जहाँ सबकुछ चमकीला है... नशे की तरह मदहोश कर देने वाला... लगभग जादुई सा कि जब जो चाहो वो पाओ...। सेलिब्रिटीज़ या प्रसिद्ध लोगों की जिंदगी में ये सब आम बातें हैं।

इसी दुनिया का एक और शगल है...ट्रॉफी वाइव्ज ... अर्थात्‌ वे पत्नियाँ जो सजावट के लिए उम्र में स्वयं से कई गुना बड़े आदमी द्वारा ब्याह कर लाई जाती हैं और जिनका काम पूरे समय खुद को पार्टी और समारोहों की शान के लायक बनाने, पति की भरी जेब से शॉपिंग करने, भव्य पार्टियाँ अटेंड करने या फिर समारोहों में महँगे कपड़े पहन पति के हाथों में हाथ डाले जाने तक सीमित होती है।

इस श्रेणी में सबसे ज्यादा आती हैं अभिनेत्रियाँ या मॉडल्स। जो करियर की ढलान पर किसी करोड़पति का हाथ पकड़ लेती हैं। राजा-महाराजाओं के समय में भी युद्ध में जीती गई स्त्रियाँ आखिरकार जीतने वाले राजा की ट्रॉफी वाइफ ही बना करती थीं। ताकि उसके हरम में एक से एक महिलाएँ सजावट के लिए इकट्ठी हो सकें।

बाजुओं का जोर तो उसकी पहचान होता ही था पर हरम में इकट्ठी कई खूबियों वाली ढेर सारी रानियों या बेगमों की फौज भी उसके रुतबे को और बढ़ाने का काम करती थी। 20वीं सदी में ट्रॉफी वाइफ एक तरह से सामाजिक तथा आर्थिक विजय का प्रतीक बन गईं।

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हमारा है अलग मुकाम
यह एक आम मानसिकता है कि यदि आप किसी धनाढ्य सज्जन से शादी कर रही हैं तो आपको सिवाय ऐश करने के और क्या करना है! अब तक ट्रॉफी वाइव्ज की धारणा के पीछे भी यही सोच थी कि किसी अमीर से शादी करो और जिंदगी भर उसके पैसों को खर्च करने के नए तरीके खोजो... पर अब चीजें बदल रही हैं।

अब वे केवल बाँहों में बाँहें डालकर, किसी पार्टी में महँगी, डिजायनर ड्रेस पहनकर, इंगरेज्जी में गिटर-पिटर करने के लिए ही नहीं हैं बल्कि उनकी अपनी मुकम्मल जगह है। ट्रॉफी वाइव्ज अब सजावट या समाज के समक्ष प्रदर्शन भर के लिए नहीं रहीं, वे खुद की पहचान को अलग और सार्थक अर्थों में स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं। उनका अपना आर्थिक व सामाजिक आधार है और नाम भी। वे केवल अपने पति के नाम की मोहताज नहीं।

चाहे फिर वो फ्राँस की प्रथम महिला कार्ला ब्रूनी हों, सलमान रुशदी की पूर्व पत्नी पद्मालक्ष्मी, विक्टोरिया बैकहम हो या फिर हमारे देश की संगीता बिजलानी, रेखा, डिंपल कपाड़िया, आयशा टाकिया, ईशा कोप्पिकर, शिल्पा शेट्टी, फिरोज गुजराल, क्वीनी डोडी। ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने स्थापति तथा धनाढ्य नामों से विवाह किया लेकिन साथ ही अपनी भी एक अलग पहचान बनाई।

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पिछले दिनों की चर्चित शादियों में सबसे ऊपर रही शिल्पा-राज कुंद्रा की शानदार और धमाकेदार वेडिंग। एक अमीर एनआरआई से शादी करने वाली शिल्पा पहले ही अपनी अलग पहचान बना चुकी हैं। शादी के बाद भी वे आईपीएल, योगा तथा रेस्त्राँ व्यवसाय से जुड़ी हुई हैं और उन्हें केवल पति का नाम से नहीं जाना जाता।

इसी तरह आयशा टाकिया ने भी प्रसिद्ध व्यवसायी तथा राजनीतिक परिवार से जुड़े फरहान आज़मी से विवाह किया। शादी के बाद भी उन्होंने फिल्मों से नाता नहीं तोड़ा है तथा इसके अलावा वे अपने पति के रेस्त्राँ व्यवसाय के साथ-साथ उनके राजनीतिक करियर में भी सहयोगी की भूमिका निभा रही हैं।

ईशा कोप्पिकर भी अपने होटल व्यवसायी पति टिमी (रोहित) नारंग के व्यवसाय में हाथ बँटा रही हैं। इसके अलावा वे एक इटैलियन फैशन कंपनी की भारतीय प्रतिनिधि हैं, पेटा जैसे संगठन की प्रवक्ता हैं तथा फिल्म, संगीत एवं मॉडलिंग में भी सक्रिय हैं।

क्रिकेटर अजहरउद्दीन की धर्मपत्नी तथा पूर्व अभिनेत्री-मॉडल, संगीता बिजलानी पिछले कुछ सालों से हैदराबाद में एक जिम का सफल संचालन कर रही हैं। मॉडलिंग के क्षेत्र में नाम कमाने के बाद फिरोज गुजराल प्रसिद्ध आर्किटेक्ट मोहित गुजराल के साथ विवाह बंधन में बँधी। इसके बाद उन्होंने भले ही मॉर्डलिंग को अलविदा कह दिया हो लेकिन आज वे आर्ट एंड क्राफ्ट की एक संस्था से जुड़ी हैं, कॉलम लिखती हैं और कई सामाजिक कार्यों से भी जुड़ी हुई हैं।

वहीं क्वीनी डोडी न केवल एक फैशन डिजायनर के रूप में स्थापित हो चुकी हैं बल्कि सामाजिक क्षेत्रों में सक्रियता के लिए भी जानी जाती हैं। कुल मिलाकर ये और इन जैसी कई महिलाएँ आज खुद के लिए समाज में एक अलग स्थान बना चुकी हैं। उनकी रचनात्मकता तथा उनका आत्मविश्वास उन्हें पति से अलग हटकर पहचान देता है। वे अपने अलग आसमान में उड़ान भर रही हैं।

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