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ओछी बोली, छोटी सोच

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- निर्मला भुराड़िया

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हिन्दी साहित्य में इस वक्त एक शब्द को लेकर बेहद हंगामा मचा हुआ है। महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति और साहित्यकार विभूति नारायण ने ज्ञानपीठ से निकलने वाली पत्रिका नया ज्ञानोदय को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि हिन्दी की महिला लेखिकाएँ अपने लेखन में खुद को एक-दूसरे से बड़ी छिनाल साबित करने में लगी हैं!

यहाँ महिला के लिए ऐसे विशेषण को किसी और के उदाहरण से उद्धृत करने में हाथ काँप रहे हैं, पता नहीं बोलने वाले की ऐसी हिम्मत कैसे हुई। शायद इसलिए कि कतिपय लोगों को महिलाओं को ऐसे विशेषणों से नवाजने की आदत है। इसके लिए न उनको दोबारा सोचना पड़ता है, न ही उनकी जुबान काँपती है। छिनाल, रखैल, कुलटा, कुलबैरन, कर्कशा, डायन, कलंकिनी, सौतन जैसे विशेषणों की रोजमर्रा की बोली में भरमार है।

रखैल और सौतन का पुलिंग आपको कहीं नहीं मिलेगा। भाषा में यह लैंगिक पूर्वाग्रह दरअसल उस पूर्वाग्रह युक्त सामाजिक प्रवृत्ति की ओर ही इशारा करता है, जहाँ पुरुष के सौ खून माफ हैं और कुछ भी गलत होने पर ठीकरा स्त्री के सिर फोड़ने का रिवाज है। पश्चिमी संदर्भों में भी देखें तो यह माना जाता है कि आदम नर्क में इसलिए गिरा कि हव्वा ने उसको उकसाया।

यानी आदम की हवस का दोष नहीं, दोष हव्वा के उकसाने का है। लेकिन पश्चिम में नारी हित समर्थकों और नारीवादियों की लगातार पहल के बाद जेंडर न्यूट्रल भाषा के प्रयोग पर जोर दिया जाने लगा है और जेंडर न्यूट्रल व्यवहार को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि लिंग भेद व्यवहार से उत्पन्ना होकर भाषा में न झलके।

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गैर बराबरी को दूर करने के लिए चेयरमैन, फायरमैन, स्टेवार्डेस, स्पोर्ट्‌समैन की जगह चेयरपर्सन, फायरफाइटर, फ्लाइट एटेंडेंट, एथलीट जैसे शब्द वापरे जा रहे हैं। एक्टर, डॉक्टर जैसे शब्द दोनों जेंडर के लिए हैं। अब कोई एक्ट्रेस नहीं कहता। स्टेट्समैन को पॉलिटिकल लीडर कहा जा रहा है। मार्च 2010 में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने अपनी कार्रवाई से 'चेयरमैन' शब्द बाहर कर दिया। उसकी जगह संबोधन हेतु 'चेयर' शब्द का उपयोग होगा।

ऐसा कॉमन्स लीडर हैरियट हरमन के प्रस्ताव पर किया गया, जिनका कहना था चेयरमैन शब्द पुरुषवादी है। 90 के मुकाबले 206 मतों से यह प्रस्ताव पारित किया गया! हालाँकि हमारे पास राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए कोई विकल्प नहीं है, जब यह शब्द अवतरित हुए तब शायद यह नहीं सोचा गया कि कोई महिला भी कभी ऐसे पद को सुशोभित करेगी।

जो भी हो अब इसी को जेंडर न्यूट्रल शब्द की तरह चलाया जा सकता है और चलाया जा भी रहा है। लेकिन, एक चीज है जो अब चलाई नहीं जा सकती या चलने नहीं दी जाना चाहिए।

वह है महिला के लिए विशेष तौर पर गढ़े गए आपत्तिजनक, पूर्वाग्रहयुक्त विशेषण। आप जेंडर न्यूट्रल हों यह तो बाद की बात है। पहले इतने सभ्य और सुसंस्कृत तो हों कि भाषा में शालीनता की सीमा न लाँघें, स्त्री को कमतर, बदतर समझना छोड़ें। औरत को कुछ भी कह लो, क्या कर लेगी यह सोचने वालों को सही सबक देने का समय अब आ गया है।

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