खुशियों की तरंग, त्योहारों के संग
- प्रीति बजाज
उत्सव हममें नई ऊर्जा और जीवन का संचार करते हैं। उत्सव ही हमें एक-दूसरे के करीब लाते हैं और लाते हैं ढेर सारी मस्ती का बहाना। हमारे यहाँ ही कहा जाता है, आठ वार और नौ त्योहार...। इन दिनों तो त्योहारों का ही दौर चल रहा है। रक्षाबंधन से शुरू हुआ दौर दीपावली तक चलेगा। त्योहार मतलब उत्सव, मतलब उमंग, खुशी, रोशनी, चमक, गंध, प्रेम, अपनों का साथ संक्षेप में खुशनुमा बदलाव। हर दिन की एक-ही-सी दिनचर्या में रचनात्मक बदलाव। त्योहारों के मौसम ने फिर दस्तक दी है। चारों तरफ उत्साह और उमंग भरे चेहरे, सजे सँवरे घर, भक्ति में लोग, पकवानों की खुशबू और अपने का साथ। शहरों और आजीविका के चलते बँटकर रह रहे परिवारों के एक-साथ आने और उत्सव को मनाने का दौर शुरू हुआ है, यही उत्सव हममें नई ऊर्जा और जीवन का संचार करते हैं। उत्सव ही हमें एक-दूसरे के करीब लाते हैं और लाते हैं ढेर सारी मस्ती का बहाना। अब तक नवरात्रि में उपासना और मस्ती का दौर चल रहा था। इसके तुरंत बाद आया दशहरा और अब होगी दीपावली। दीपावली जितना बड़ा त्योहार, उतनी बड़ी तैयारी भी। चूँकि दीपावली बारिश के एकदम बाद आती है, इसलिए इससे पहले बड़े पैमाने पर घरों और दुकानों की साफ-सफाई का काम किया जाता है। दिन चटख होते हैं, इसलिए इन दिनों में रातों को रोशन किया जाता है। इन दिनों में कोई चाहे कहीं भी हो अपनों के बीच लौटता है।
रिश्तों के बंधन मजबूत होते हैं। चारों तरफ रौनक ही रौनक नजर आती है। ये त्योहार ही हैं जो पीढ़ियों के बीच अंतर पाटने का काम करते हैं। हमारी परंपरा और संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचती है। त्योहारों का उल्लास इतना होता है कि छुट्टी होती है तब भी हम सुबह जल्दी उठ जाते हैं और ये क्रम आज का नहीं बचपन से चल रहा है। और सच पूछा जाए तो बचपन ही उत्साह से लबरेज होकर हर चीज का मजा उठाता है। इसलिए त्योहारों पर तो सभी का मन बच्चा होने का करता है। ये त्योहार हमें रिश्तों के इन्द्रधनुषी रंगों को भरने का अवसर देते हैं। इंसान को इंसान से जोड़ने का सबब होते हैं ये पर्व। घरों को तो रोशन करें ही दिलों को भी इतना रोशन करें कि इसकी रोशनी दूर तक पहुँचे। हाँ लेकिन इस धुन में हमें कुछ बातों का खास तौर पर ध्यान रखना होगा। दीपावली के उत्साह में पर्यावरण की अनदेखी नहीं करें। आखिरकार ये परिवेश हमारा ही है, यहाँ हमें भी साँस लेनी है, जीना है, इसलिए इसका ध्यान रखें। हर बदलाव बुरा नहीं होता है, हर नई चीज बुरी नहीं होती है, और हर पुरानी चीज अच्छी नहीं होती है। कहने का मतलब है कि वक्त के साथ आने वाले बदलाव को खुले मन से स्वीकार करें। हर दौर के अपने तरीके होते हैं, बदलाव आना जरूरी है और स्वाभाविक भी। बदलाव को स्वीकारें और जो पुराना है, जिसकी प्रासंगिकता नहीं रही है, उसे छोड़ने से परहेज न करें। आखिर तो परंपराएँ इंसान ने अपने ही लिए बनाई हैं। जहाँ तक खुशी से निभाई जाए निभाएँ लादे नहीं, त्योहारों का अर्थ आनंद है, मजबूरी नहीं। इसके साथ ही ऐसा कुछ भी करें कि उल्लास का उजास अँधेरे कोनों तक भी पहुँचे।