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खुशी हो या गम छलक पड़ते हैं आँसू

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- मंजू विनोद चौधर

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दर्द या पीड़ा का आवेग जब असहनीय हो उठता है, पीड़ित जब हिम्मत हार जाता है, तो उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं। तब मन का लावा आँखों के जरिए फूट पड़ता है। आँसुओं का मनोभावों से सीधा संबंध है। कभी खुशी में तो कभी गम में अनायास ही आँसू छलक पड़ते हैं।

पहली तरह के आँसू करुण क्रंदन, चीत्कार के आँसू गंभीरता लिए रहते हैं। दूसरी तरह के आँसू दूसरों की पीड़ा देख मन में आई भावुकता से छलकते हैं। तीसरे आँसू अति प्रसन्नता के क्षणों में आते हैं। अकस्मात प्राप्त होने वाली उपलब्धि या किसी की कृपा से मिले लाभ से जब खुशी मिलती है तो नयनों में आँसू छलछला उठते हैं।

  आँसू मन का दर्पण होते हैं, जो न कहने पर भी बहुत कुछ कह जाते हैं, बहुत कुछ बता जाते हैं। चाहे तकिए में मुँह दबाकर निकालें या घर के कोने में बैठकर, अकेले में रोएँ या भीड़ के बीच आँसू बहाएँ, आँसू तो दुःखड़ा बयाँ कर ही जाते हैं।      
चौथी तरह के आँसू कभी-कभी अपमानित होने पर या मन को ठेस लगने पर निकलते हैं। पाँचवीं तरह के आँसू हँस-हँसकर लोटपोट होने पर आ जाते हैं। छठे आँसू अश्रु गैस, धुआँ, वाहनों, भट्टियों से उगलते धुएँ से रोने को बाध्य हुई आँखों से निकलते हैं और भी कई तरह के आँसू होते हैं जैसे बनावटी आँसू, रंगमंचीय आँसू, नेताओं के आँसू, मगरमच्छीय आँसू, हमदर्दी के आँसू।

आँसू मन का दर्पण होते हैं, जो न कहने पर भी बहुत कुछ कह जाते हैं, बहुत कुछ बता जाते हैं। चाहे तकिए में मुँह दबाकर निकालें या घर के कोने में बैठकर, अकेले में रोएँ या भीड़ के बीच आँसू बहाएँ, आँसू तो दुःखड़ा बयाँ कर ही जाते हैं। विज्ञान कहता है कि स्वस्थ रहना है तो आँसू बहाइए। तनाव हल्का करना है तो जी भरकर रो लीजिए।

आँसुओं को रोककर रख लेने से मन में दमित भाव विकृत होकर गंभीर रूप ले लेते हैं। आँसुओं को जबरन रोकने से दिल-दिमाग पर बोझ पड़ने लगता है और यह शरीर में अल्सर, कोलाइटिस जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है। आँसुओं के साथ अनेक अशुद्ध व व्यर्थ तत्व बाहर निकल आते हैं। मन का दुःख भी आँसुओं में बह जाता है। आँसू इस बात की अभिव्यक्ति हैं कि सीने में दिल धड़क रहा है।

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