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गृहिणी का अवमूल्यन क्यों ?

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- मंजरी कामदार सि‍न्‍हा

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हमारे ही देश में कहा जाता है- 'बिन घरनी घर भूत का डेरा।' हम सारे इस बात को जानते हैं कि किसी घर में माँ, पत्नी या फिर बहू की अहमियत क्या है? उनके बिना न तो घर चल सकता है और न ही समाज... फिर भी उसके कार्य को अनप्रॉडक्टिव मानना गृहिणी की हैसियत को और इसी तरह समाज तथा परिवार में उसके योगदान को भी कम करता है। ऐसा नहीं है कि ये हमारे ही देश की समस्या है।

दुनिया में और जगहों पर भी गृहिणी का अवमूल्यन होता है। पिछले दिनों न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक लेख 'द स्टिग्मा ऑफ बीइंग ए हाउसवाइफ' में बताया गया कि स्वीडन के एक जर्नलिस्ट पीटर एक सीरिज के लिए हाउसवाइफ खोजने निकले तो पहले तो उन्हें कोई हाउसवाइफ मिली ही नहीं, फिर जो मिलीं वे सामने आने को तैयार नहीं थी।

स्वीडन और नॉर्वे में हाउसवाइफ कहलाना बेइज्जती माना जा रहा है। हमारे देश में और दुनिया में भी गृहिणियों के कार्यों के आर्थिक मूल्यांकन पर काम चल रहा है। 2004 में एक हाइकोर्ट ने गृहिणी के काम की कम-से-कम कीमत 3000 रुपए माहवार स्वीकार की है। केरल में घरेलू महिलाएँ मंथली अलाउंस की माँग कर चुकी हैं। बांग्लादेश के वित्त मंत्री भी मानते हैं कि हाउसकीपिंग का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

दरअसल हम बेइंतहा भौतिक दौर में रह रहे हैं। यहाँ यदि आर्थिक रूप से कुछ नहीं जुड़ता है तो उसे 'काम' की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। हम अपने घरों में आने वाली महरियों और कामवाली बाइयों के काम का मूल्यांकन तो करते हैं, लेकिन यदि वही काम घर की महिलाएँ करती हैं तो उसे उसका कर्तव्य मानते हैं और उसे कोई तवज्जो नहीं देते हैं।

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हमारे मन में न तो उनके काम को लेकर कोई सम्मान है और न ही कोई कद्र... जरा दूसरे पहलू पर गौर करें। घर का जो भी सदस्य घर से बाहर जाकर इत्मीनान से काम कर पाता है तो उसके पीछे वे महिलाएँ हैं, जो उनके घर को संभाल रही हैं और उनकी जिंदगियों को सरल और सहज बना रही हैं। ये अनचिह्नी और बेनाम महिलाएँ आपको नाम और शोहरत की सीढ़ियाँ उपलब्ध करवा रही हैं, लेकिन आप उसके बदले में क्या दे रहे हैं?

जब तक अर्थशास्त्री गृहिणी के कामों के आर्थिक मूल्यांकन के लिए कोई फार्मूला ईजाद नहीं कर लें और जब तक समाज उस फार्मूले को स्वीकार नहीं कर लें, तब तक इतना ही कर लें कि आपके घरों की महिलाएँ जो काम घरों में कर रही हैं, उसका आप ही ईमानदारी से मूल्यांकन करें और उसके काम के योगदान का सम्मान करें।

गृहिणियों के कार्यों को गरिमा दें, क्योंकि घर और बाहर के बीच यदि आप संतुलन साध पाते हैं तो ये उन्हीं के बेनाम योगदान की वजह से संभव हो पा रहा है।

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