Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

माँ तुम ईश्वर हो

Advertiesment
हमें फॉलो करें माँ तुम ईश्वर हो मदर्स डे विशेष
- कविता मनीष नीमा
ND

'माँ', इस भावना को शब्दों में बाँधना कठिन है, वो ईश्वर की बनाई ऐसी कृति है जिसे खुद ईश्वर अपने सबसे करीब पाता है। पढ़िए कुछ रूपक और जानिए क्यों है 'माँ' ईश्वर का दूसरा रूप।

जब ईश्वर ने माँ बनाई
ईश्वर 'माँ' के सृजन में काफी व्यस्त थे। इसी बीच एक देवदूत अवतरित हुआ और ईश्वर से कहा, 'आप इस चीज के निर्माण पर काफी समय नष्ट कर रहे हैं।' ईश्वर ने कहा- 'दिखने को वो मात्र हाड़-मांस की कृति है, लेकिन उसके पास ऐसी गोद होगी जो दुनियाभर के सुकून से भरी होगी, उसके पास ऐसा आँचल होगा जिसकी छाँव तले किसी का डर नहीं होगा, उसके पास ऐसा ममत्व होगा जिससे सभी छोटी-बड़ी पीड़ाएँ समाप्त हो जाएँगी।'

देवदूत ने कहा- 'हे ईश्वर, आप आराम कीजिए', ऐसी कृति का तो मैं ही निर्माण कर दूँगा।' ईश्वर ने कहा, 'नहीं मैं आराम नहीं कर सकता और ये तुम्हारे बस की बात नहीं। इसका निर्माण तो मैं स्वयं करूँगा।' वात्सल्य से पूर्ण जीती-जागती उस कृति को जब ईश्वर ने बना लिया तब देवदूत ने इसे परखा और अपनी प्रतिक्रिया दी- 'यह काफी मुलायम है।' ईश्वर ने कहा- 'यह काफी 'सख्त' भी है। तुम कल्पना भी नहीं कर सकते कि यह 'माँ' कितना कुछ बर्दाश्त कर सकती है।
  ईश्वर ने कहा- 'दिखने को वो मात्र हाड़-मांस की कृति है, लेकिन उसके पास ऐसी गोद होगी जो दुनियाभर के सुकून से भरी होगी, उसके पास ऐसा आँचल होगा जिसकी छाँव तले किसी का डर नहीं होगा, उसके पास ऐसा ममत्व होगा जिससे सभी छोटी-बड़ी पीड़ाएँ समाप्त हो जाएँगी।'      


यह सहनशक्ति की प्रतिकृति है तो क्या, वक्त आने पर चंडी, कालिका, दुर्गा बनकर भी अवतरित होगी। धरती पर इसके विभिन्न रूप देखने को मिलेंगे।' देवदूत अभिभूत हुआ। अंत में गालों पर हाथ फेरते हुए और बोला- 'यहाँ से तो पानी टपक रहा। मैंने कहा था न कि आप इसमें काफी ज्यादा चीजें जोड़ रहे हैं।' ईश्वर ने कहा- 'पानी नहीं टपक रहा है बल्कि ये तो आँसू हैं।'

इसका क्या काम है?

ये खुशी, ममता, कष्ट, उदासी, सुख-दुःख आदि सभी के लिए माँ की भावनात्मक प्रतिक्रिया है।

देवदूत ने कहा, 'आप महान हैं। आपकी बनाई हुई कृति सर्वश्रेष्ठ है शायद मैं ऐसी कृति का निर्माण नहीं कर सकता था।'

स्वर्ग से आई है माँ
एक शिशु जन्म लेने वाला था। एक दिन उस शिशु ने ईश्वर से प्रश्न किया, 'आप मुझे धरती पर क्यों भेज रहे हैं। मैं इतना छोटा और असहाय हूँ, वहाँ कैसे रह सकूँगा?' ईश्वर ने उत्तर दिया, 'मैंने ढेर सारे देवदूतों में से एक श्रेष्ठ देवदूत का चुनाव किया है। वह तुम्हारा इंतजार कर रही है और वही तुम्हारा ख्याल रखेगी।'

'लेकिन यहाँ स्वर्ग में मैं गाने और मुस्कराने के अतिरिक्त कुछ नहीं करता। मेरे खुश रहने के लिए इतना ही पर्याप्त है।'

'वह तुम्हारे लिए प्रतिदिन गाएगी। वह तुम्हारे लिए मुस्कराएगी। वह तुम्हें कभी भूखा नहीं रखेगी, वह स्वयं गीले में सोएगी, लेकिन तुम्हें सूखे में सुलाएगी। वह तुम्हें हर ढंग से खुश रखेगी। वह प्यारे-प्यारे शब्द बोलेगी और धैर्यपूर्वक तुम्हें बोलना तथा समझना सिखाएगी।'

'लेकिन मैं आपसे बातें कैसे कर सकूँगा?' 'वह तुम्हें बताएगी कि प्रार्थना कैसे की जाती है। वह तुमसे हमेशा मेरे बारे में बात करेगी।

'लेकिन मैं हमेशा उदास रहूँगा, क्योंकि मैं आपको देख नहीं पाऊँगा।' 'धीरे-धीरे तुम उसके इस संसार में बस जाओगे, रम जाओगे। 'वह तुम्हें मुझ तक पहुँचने का रास्ता बताएगी।' ईश्वर ने कहा। 'मैंने सुना है धरती पर खराब लोग हैं, उनसे मेरी रक्षा कौन करेगा।' शिशुने फिर प्रश्न किया। 'वह अपनी जान पर खेलकर भी तुम्हारी रक्षा करेगी।' शिशु ने तुरंत ईश्वर से कहा- 'हे ईश्वर, मैं अब पृथ्वी पर जाने को तैयार हूँ कृपया, मुझे मेरे देवदूत का नाम बता दें।'

ईश्वर ने कहा, 'तुम अपने देवदूत को 'माँ' कहना।'
***
यह तो थे 'माँ' से जुड़े रूपक। 'माँ' की सार्थकता क्या है। अतीत के कालखंड से गुजरती स्त्री ने मातृत्व और मापदंड किस तरह बदले हैं, अब उस पर एक नजर :

पौराणिक युग की माँ
पुराणों में माँ को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। इस युग की माँएँ सदाचार, चरित्र, संस्कार और धर्मपालन को अपने व्यक्तित्व में परिभाषित करती थीं। ऐसी ही एक गरिमामय माँ थीं सती अनुसुइया, जिन्होंने भगवान को भी नतमस्तक कर दिया। सती अनुसुइया ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश को शिशु बना दिया और फिर दुग्धपान कराया। वे पुनः जब यथार्थ रूप में आए तो माँ की शक्ति से अभिभूत थे। भगवान भी कहे बिना न रह सके कि 'माँ तुम महान हो।' इसी तरह भगवान राम की माँ कौशल्या, कन्हैया की माता यशोदा और गणेश की माता पार्वती पौराणिक कालकी वे माँएँ हैं, जिन्होंने माँ के उच्च आदर्श को समाज के सामने प्रस्तुत किया।

मध्ययुग की माँ
सामाजिक परिदृश्य बदला व बदला माँ का रूप भी। अब वह अपने पुत्र के अतिरिक्त समाज व नैतिक मूल्यों पर भी बाकायदा सोचती थी। इस काल की माँ भी सदाचार और संस्कार की प्रतिमूर्ति थी। उसमें दैवीय शक्ति नहीं थी, लेकिन वह देवतुल्य ही है। वह अपनी दृढ़शक्ति और कर्मठता पर विश्वास करती थी और सही का साथ देने के लिए बलिदान देने से भी नहीं चूकती थी। शिवाजी की माँ जीजाबाई और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने वीरांगना माँ का परिचय दिया और अपने परिवार से बढ़कर समाज का भला सोचा। इन दोनों माँओं ने सिर्फ अपने बच्चों कोही नहीं बल्कि समाज के सभी युवाओं को वीरता का पाठ पढ़ाया और आज भी वे प्रेरणास्पद हैं।

आज की मा
आज की माँ, पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाती, अपने अस्तित्व को नई ऊँचाइयाँ दे रही है, लेकिन उसकी ममता, वात्सल्य, स्नेह और भावनात्मक शक्ति का स्रोत आज भी उसी तरह बहता है। इसलिए आज भी वह देवतुल्य है और इसीलिए ईश्वर को अपनी इस सर्वश्रेष्ठ कृति पर गर्व है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi