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विज्ञापनों में शादियाँ

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हमें फॉलो करें विज्ञापनों में शादियाँ
- विनीता यशस्व
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यूँ तो हमारे समाज ने अब काफी तरक्की कर ली है। समाज की मानसिकता बहुत चीजों में बदली है और नई मानसिकता अपनाकर पुराने रीति-रिवाज और अंधविश्वासों को पीछे छोड़ दिया है। इसका अच्छा असर समाज पर दिखाई भी देता है। पर फिर भी कुछ चीजें ऐसी हैं जिनमें हम आज भी वहीं खड़े हैं, जहाँ आज से 100 साल पहले थे। इन्हीं में से एक है शादी का प्रसंग।

पुराने समय में शादी के लिए पंडित लोग नाई की सहायता से रिश्ते लेकर एक-दूसरे के घर जाया करते थे और रिश्तों की बात तय करते थे। इनमें ज्यादातर लड़कियों के रिश्ते होते थे जिन्हें लड़के के घरवालों तक पहुँचाया जाता था।

उस समय भी लड़कियों के लिए सर्वगुण संपन्न होना अनिवार्य था। जैसे - लड़की सुंदर हो, सुशील हो, सौम्य हो, घरेलू काम जैसे- खाना पकाना, घर के कामकाज करना जानती हो, सिलाई-कढ़ाई-बुनाई में दक्ष हो तथा घरवाले दहेज भी अच्छा दे सकते हों। जबकि लड़के के लिए कुछ भी होना अनिवार्य नहीं था। उसकी अनिवार्यता बस इतनी ही थी कि वह लड़का होता था।
  यूँ तो हमारे समाज ने अब काफी तरक्की कर ली है। समाज की मानसिकता बहुत चीजों में बदली है और नई मानसिकता अपनाकर पुराने रीति-रिवाज और अंधविश्वासों को पीछे छोड़ दिया है। इसका अच्छा असर समाज पर दिखाई भी देता है।      


आज शादी तय कराने के तरीकों में काफी परिवर्तन आ गया है। तब पंडितों या परिवार के अन्य लोगों द्वारा लड़के-लड़कियाँ ढूँढे जाते थे पर आज यह सारा काम वैवाहिक विज्ञापन, इंटरनेट या मैरिज ब्यूरो द्वारा घर बैठे कर ‍िदया जाता है। आपको बस पैसा खर्च करना होता है और विज्ञापन एजेंसियों को अपने बेटे-बेटियों के बारे में बताना होता है। अगर कुछ चीजें नहीं बदली हैं तो वह यह कि आज भी लड़की की शादी को लेकर वही माँग होती है, जो पहले हुआ करती थी जबकि समाज ज्यादा शिक्षित नहीं था।

कई सारे अखबार जैसे - अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिन्दू आदि पढ़ने के बाद मैंने विवाह से संबंधित विज्ञापनों में जो बात देखी वह यह है क‍ि लड़कियों को आज भी सर्वगुण संपन्न होना आवश्यक है यानी कि उसे सुंदर, सुशील, सुकन्या होना है। उसकी पढ़ाई-लिखाई भी किसी काम की नहीं है यदि उसमें ये गुण नहीं हैं। साथ ही दहेज की मोटी माँग को भी पूरा करना ही पड़ता है।

वैवाहिक विज्ञापनों में लड़कियों के विषय में कुछ इस तरह लिखा जाता है - लड़की जो सुंदर है, पढ़ी-लिखी है, गृह कार्य में दक्ष है, पिता ऊँचे पद पर कार्यरत हैं और भाई भी इंजीनियर है, के लिए सुयोग्य वर चाहिए। जबकि लड़के के लिए जो मैट्रिमोनियल दिए जाते हैं, वे कुछ इस प्रकार के होते हैं - लड़का बिजनेसमैन है, उसके लिए सुंदर, सुशील, लंबे कद वाली प्रोफेशनली क्वा‍लीफाइड और गृह कार्य में दक्ष कन्या की आवश्यकता है। लड़की के बारे में तो सब कुछ अच्छा होना चाहिए पर लड़के की न तो उम्र का पता होता है न उसकी आय का और न ही उसकी पढ़ाई-लिखाई का कुछ स्पष्ट उल्लेख किया जाता है।

ऐसे ही कई और भी उदाहरण हैं। जैसे कि लड़की के लिए लिखा जाता है कि - उम्र 33 वर्ष, पेशे से डॉक्टर लड़की जिसका पैर थोड़ा खराब है पर पता नहीं चलता है, के लिए सुयोग्य वर की तलाश है या फिर लड़की पेशे से अधिवक्ता है, बायाँ पैर 10 प्रतिशत बाधित है पर दैनिक कार्यों में कोई बाधा नहीं आती है, के लिए सुयोग्य वर की तलाश है।

इन विज्ञापनों को पढ़ने के बाद यही लगता है कि लड़की का डॉक्टर, इंजीनियर या अधिवक्ता होना कोई बड़ी बात नहीं है पर उसका शारीरिक तौर पर फिट न होना उसके लिए बहुत बड़ा अभिशाप है। इसलिए तो विज्ञापन में इस तरह से लिखा जाता है कि पैर खराब है पर पता नहीं चलता या दैनिक कार्यों में बाधा नहीं आती है।

क्या किसी भी लड़की का यह बहुत बड़ा गुण नहीं हो सकता है कि वह इतनी पढ़ाई करने के बाद किसी ऊँचे पर पहुँच सकी। उसके इस गुण को देखा जाना चाहिए या फिर उसकी कमजोरी को देखकर उसके ऊपर और चोट करना जरूरी है। एक चीज और देखने में आई कि जितनी ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़कियाँ हैं उनकी शादी उतनी ही ज्यादा उम्र तक नहीं हो पाती है। बहुत ही कम विज्ञापन ऐसे दिखे जिनमें लड़की वालों की तरफ से लड़कों के लिए किसी तरह की कोई अपेक्षाएँ रखी गई हों।

इसके विपरीत लड़कों के विज्ञापन इस प्रकार के होते हैं - इंजीनियर लड़के के लिए तलाश है एक कॉन्वेंट एज्यूकेटेड, लंबी, गोरी, लेक्चरर, सदैव प्रथम श्रेणी में पास, नैट/पीएचडी लड़की की जो गृह कार्य में भी दक्ष हो। अब क्या कोई यह बता सकता है जिस लड़की ने इतनी पढ़ाई करने में अपनी आधी जिंदगी खपा दी हो, वह गृह कार्य में भी उतनी ही दक्ष हो जाएगी या फिर वह सुंदर भी निकल ही जाए।

क्या लड़के को गृहकार्य में दक्ष होने में कोई परेशानी है। आज अगर महिला-पुरुष दोनों काम कर रहे हैं तो दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि दोनों को गृहकार्य में दक्ष होना चाहिए ताकि एक दूसरे के काम में मदद कर सकें। पर सभी विज्ञापनों में गृहकार्य में दक्ष होने और सुंदर होने की माँग लड़की के लिए ही होती है। यहाँ त कि अंग्रेजी में दिए गए विज्ञापनों में भी 'गोरी' शब्द को रोमन भाषा में बड़े अक्षरों में लिखा जाता है।

इन विज्ञापनों के बाजार को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे लड़की होना सही मायने में कोई अभिशाप है। लड़की के लिए सारी अनिवार्यताएँ आज भी लागू होती हैं जब वह लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर मैदान में डटी हुई है और कई बार तो लड़कों को भी पीछे छोड़ देती हैं। पर जब शादी की बात आती है तो वही सदियों पुराना राग ही अलापा जाने लगता है। कई बार तो ऐसा भी लगता है कि शायद लड़कियों ने भी अपने आप को इस राग में ढाल लिया है। इसलिए उनकी तरफ से किसी भी तरह की कोई अपेक्षाएँ नहीं रखी जाती हैं और जो लड़कियाँ अपनी अपेक्षा के अनुसार लड़का चाहती हैi, उनकी काफी उम्र तक शादी नहीं हो पाती है।

अखबारों में वैवाहिक विज्ञापन देखने पर कुछ और तथ्य मालूम हुए। ये विज्ञापन धर्म, जाति, क्षेत्र के आधार पर वर्गीकृत हैं। ज्यादातर विज्ञापन उच्च वर्गों से दिए जाते हैं जिनका प्रतिशत लगभग 36 तक है। इन विज्ञापनों के एक ही तरह का होने के पीछे यह भी हो सकता है कि अखबारों का अपना एक निश्चित प्रारूप होता है जिसमें विज्ञापनदाताओं को अपनी बात कहनी होती है। वे कुछ बातें बता देते हैं जिन्हें अखबार वाले अपने तरीके से प्रकाशित कर देते हैं। इसलिए विज्ञापनदाता ज्यादा कुछ दे भी नहीं पाते। इसके विपरीत जब हम इंटरनेट पर मैट्रीमोनियल साइट देखते हैं तो उसमें बिल्कुल अलग ही स्थिति होती है। चाहे लड़की हो या लड़का दोनों के बारे में काफी विस्तार से दिया जाता है और उनमें माँग भी दूसरे तरह की होती है।

जैसे लड़के भी अपने विज्ञापन में स्पष्ट लिखते हैं कि उन्हें किस तरह की लड़की चाहिए और लड़कियाँ भी स्पष्ट लिखती हैं कि उन्हें किस तरह का लड़का चाहिए। इसका कारण यह भी हो सकता है कि इंटरनेट पर बनाए गए विज्ञापनों में परिवार की दखलंदाजी कम होती है दूसरा लिखने के लिए भरपूर स्थान होता है और बहुत सी साइट्‍स तो मुफ्त में भी विज्ञापन बनाने की अनुमति देती हैं। जिस कारण काफी फायदा हो जाता है और ये विज्ञापन अखबार के विज्ञापनों से बिल्कुल भिन्न नजर आते हैं।

कुल मिलाकर इन विज्ञापनों को पढ़ने से एक बात तो जाहिर है कि अभी भी हमें अपनी सड़ी-गली मानसिकता से पीछा छुड़ाने में काफी समय लगेगा।
* साभार : उत्तरा

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