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प्रीता जैन
कई बार कुछ आदतें अपने व्यवहार में शामिल कर हम मन ही मन खुश होते हैं, औरों से स्वयं को कुछ हद तक श्रेष्ठ भी मान लेते हैं किंतु यह भ्रम मात्र है।
सचाई तो यह है कि ऐसा करने से व्यक्तित्व गरिमामय आकर्षक बनने के बजाय बौना व अप्रभावी बनकर ही रह जाता है। आइए, जानें क्या हैं वे आदतें और हो सके तो इनको बदल डालिए।
* यार-दोस्तों, नाते-रिश्तेदारों के संग घूमते-फिरते समय मौज-मस्ती में कोई कमी न करते हुए स्वयं के रुपए-पैसे बचाने के उपाय सोचना और दूसरों की ही जेब खाली करवाना।
* आस-पड़ोस अथवा घर-परिवार में यदि कुछ अच्छा या सार्थक हो रहा है तो उसका श्रेय अपने ऊपर ले खुश होना अन्यथा किसी तरह का मतलब न रखते हुए कन्नी काट बचते रहना।
* बातों ही बातों में दूसरों के मन में आ-जा रहे विचारों व जानकारियों की थाह लेते हुए सबकुछ जानने को व्याकुल होना।
* ऊँचे पद और धनाढ्य वर्ग से संबंधित व्यक्तियों के साथ ही आपसी संबंधों में नकली मधुरता व प्रगाढ़ता बनाए रखने का भरसक प्रयत्न करना।
* जब तक कोई बात अथवा कार्य कहा या किया न हो, तब तक ही गलत साबित करना। लेकिन यदि खुद वही करना पड़ जाए तो हर हाल में उसे सही साबित मानते व करते हुए दोहरा मापदंड बनाए रखना।
* सिर्फ अपनी व अपनो की ही तारीफ के पुल बाँधते रहना जबकि अन्य की बेवजह कमी निकालते हुए उन्हें औरों की नजरों में गलत दर्शाना।
* घर आए मेहमानों के सामने ज्यादातर समय अपने बच्चों के क्रियाकलापों के बारे में बातें करना।
* दूसरों के द्वारा किए गए कार्य की कद्र न करते हुए उसमें कमी-नुक्स निकालते हुए अवहेलना करना।
* अपनी ही अपनी सोचने तथा बोलने की आदत अपनाना और दूसरों की बात न तो सही मायने में सुनना व न ही उनके द्वारा की गई सार्थक गतिविधि को भी महत्व देना।
यूँ तो और भी कई आदतें व्यवहार में शुमार रहती हैं, किंतु ये कुछ मुख्य आदतें हैं, जिनसे व्यक्तित्व के अच्छे या बुरे होने का सीधा संबंध है। अतः यदि आप में भी इनका समावेश है तो जितनी जल्दी हो सके, छोड़ने का प्रयास करें ताकि सही अर्थों में अपनों के बीच व्यावहारिक बन प्रिय व चहेते हो सकें।