यह ठीक है कि जब गर्भपात गैरकानूनी था तब अनचाही संतान से मुक्ति के लिए लोग नीम-हकीमों का सहारा लेते थे। अक्सर नादानी या
जबर्दस्ती से गर्भवती हो गई मासूम लड़कियों पर अनगढ़ हाथों से किया गया, कच्चा-पक्का, अवैज्ञानिक तरीके वाला गर्भपात कहर ढाता था। गर्भपात के कानूनी होने से उससे मुक्ति मिली। गर्भपात जायज होना ही चाहिए। पर स्त्री के स्वास्थ्य की कीमत पर इसका अति उपयोग करना दुरुपयोग की श्रेणी में ही आएगा।
इस देश में स्त्री के स्वास्थ्य के बारे में इतनी लापरवाही बरती जाती है कि अधिकांश स्त्रियाँ बचा-खुचा, बासी-कूसी खाती हैं और ऐसा करने में ही बरकत समझती हैं। फल, दूध, सलाद, ताजा भोजन पर पुरुष का ही पहला अधिकार माना जाता है। जहाँ 'मेरा क्या मैं तो नमक-रोटी खा लूँगी 'जैसे स्त्री वक्तव्यों पर महानता का टैग टाँगा जाता है, वहाँ कोई आश्चर्य नहीं कि गर्भपात को भी एक आसान खेल समझ लिया जाता हो।