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गजब की है वो!

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- साधना सुनील विवरेकर

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महिला दिवस पर स्त्री की जो मूर्ति सामने आती है, वह है- प्रेम, स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्तिसंपन्न स्त्री की मूर्ति। यह दिन यह गिनने का भी है कि आखिर हमने मील के कितने पत्थर पार कर लिए। सचमुच गौरव और आत्मविश्वास से कलेजा तर हो जाता है उन पाई हुई पायदानों के लिए और उन आत्मबल से भरी स्त्रियों के लिए जो सचमुच गजब की हैं।

इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है। उसने काफी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी हैं। स्त्री सशक्त है व उसकी शक्ति की अभिव्यक्ति इस प्रकार देखने को मिल रही है।

बेटियों को जन्म दे गौरवान्वित होती हैं माँ
स्त्री भ्रूण हत्या के घिनौने किस्से लाख सुनने को मिले, समाज में बेटियों के जन्म पर गौरवान्वित होतीं, प्रसन्न होतीं माँएँ भी देखने को मिलती हैं। कई परिवार अपने आसपास मिल जाएँगे जिनकी इकलौती बेटियाँ हैं या दोनों बेटियाँ हैं। वे माँ-बाप की लाड़ली हैं। वे माता-पिता की केयर भी करती हैं।
  इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है। उसने काफी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी हैं। स्त्री सशक्त है व उसकी शक्ति की अभिव्यक्ति इस प्रकार देखने को      


गोद ली जाती हैं बेटियाँ
ऐसे परिवार भी दिखाई देते हैं जिन्होंने बेटियाँ गोद ली हैं व बड़े लाड़-प्यार से इसका पालन-पोषण कर रहे हैं।

बेटियों को उच्च शिक्षा
आज लगभग हर सुसंस्कृत व सुशिक्षित परिवार में बेटियों को भी ऊँची से ऊँची शिक्षा ऋण लेकर भी दिलवाई जा रही है।

शादी से पूर्व शिक्षा
तथाकथित रूढ़िवादी परिवारों में भी बेटियों की शादी से पूर्व उन्हें शिक्षित करने, आत्मनिर्भर बनाने की मानसिकता विकसित हुई है।

बेटी के घर से अपनत्व
पुरानी बेबुनियाद परंपराएँ तोड़ लोग बेटी के घर जाकर रहते हैं व उसके द्वारा दिए गए उपहार बड़े प्रेम व गर्व से स्वीकार करते हैं।

संपत्ति में अधिकार
बेटियों को कानून ने तो संपत्ति में अधिकार दे ही दिया है, पर पिता भी अपनी बेटियों को संपत्ति में अधिकार सस्नेह देने लगे हैं। समझदार भाई भी इसे सहर्ष स्वीकारते हैं।

वर चुनने की स्वतंत्रता
वर चुनने में अब अनिवार्य रूप से बेटी की पसंद पूछी जाती है।

आत्मबल में वृद्धि
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महानगरों में उच्च शिक्षित युवतियों का छोटे-बड़े शहरों व गाँवों से आकर रहना, नौकरी करना, अपनी पहचान बनाना द्योतक है कि लड़कियों के आत्मविश्वास में गजब का इजाफा हुआ है। अपनी अस्मिता को बनाए रखते हुए वे बड़े आराम से देश तो क्या, विदेश में भी बड़ी आसानी से रहती हैं, पढ़ती हैं या नौकरी करती हैं।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
आत्मविश्वास के साथ ही युवतियों ने अपनी सही बात सही तरीके से कहना सीख लिया है। घर के संरक्षित कवच से बाहर आ संघर्ष करते-करते उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्वयं हासिल कर ली है।

अन्याय का विरोध
स्त्री शक्ति का एहसास इस बात से भी होता है कि दो या तीन दशक पुरानी युवतियों की तुलना में आज की अधिक युवतियाँ अन्याय का विरोध करती हैं। विरोध करने पर हो सकने वाले नुकसान या परिणामों से भी वे भयभीत नहीं होतीं।

पति की सच्ची दोस्त
आज की नारी की सफलता इसी से स्वयंसिद्ध है कि वह सही अर्थों में सखी-सहधर्मिणी बन चुकी है। वह पति की हर परेशानी बाँटने में सक्षम है। वह केवल पत्नी बन उसके द्वारा प्रदत्त सुख-सुविधाओं का लाभ नहीं उठाती बल्कि हर सुख-सुविधा जुटाने में बराबर की जिम्मेदारी लेती है, संघर्ष करती है।

सफल माँ
शिक्षित व कामकाजी होने के साथ ही वह बच्चों के प्रति अधिक जागरूक व संवेदनशील हो गई है। हर क्षेत्र का ज्ञान होने से वह बच्चों की परवरिश अच्छे तरीके से करती है व उनके निर्णयों में भागीदार बनती है। बच्चे भी अपनी माँ की उपलब्धियों पर गर्व करते हैं।

मायके-ससुराल के बीच सेतु
सही अर्थों में आज नारी मायके व ससुराल के दो परिवारों के बीच सेतु बन दोनों परिवारों की गरिमा बनाए रखना सीख चुकी है। ससुराल के दायित्वों को निभाते हुए भी वह मायके के कर्तव्यों को भी सर्वोपरि मान पूर्ण करती है

सफल प्रबंधक
घर के कुशल प्रबंधन की जन्मजात प्रतिभा के साथ हर कामकाजी स्त्री कार्यक्षेत्र में भी अपनी भूमिका को पूर्ण ईमानदारी व मेहनत से निभाती देखी जा रही है। बड़े से बड़े ओहदे पर वे बड़ी सफलता से कार्य कर अपना लोहा मनवा रही है।

एक-दूसरे की सहयोगी
आज अधिकांश परिवारों में सास-बहू, ननद-भौजाई, देवरानी-जेठानी के बीच गजब का स्नेह, सौहार्द व सहयोगात्मक बर्ताव देखने को मिलता है। स्त्री ने अपने पर बरसों से लगाए जा रहे इस लाँछन को मिटा दिया है कि 'स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है'।

सासों ने बहुओं को ममता-स्नेह देना प्रारंभ किया है तो बहुएँ भी सास को मानती हैं। अब सास-बहू सीरियलों में ज्यादा लड़ती हैं, असल में कम। इस तरह के सुखद परिवर्तन स्त्री शक्ति की सकारात्मक अभिव्यक्ति हैं।

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