महिला दिवस निकट है। महिलाओं की आज़ादी की बात होगी.......हो रही है......महिलाओं ने कितनी तरक्की कर ली है.....फाइटर प्लेन तक उड़ा रही हैं........खेलों में देश का नाम रोशन कर रहीं हैं। बेटियां बेटों के साथ बराबरी से पढ़ रही हैं-बढ़ रही हैं। यह तस्वीर का एक अति सुखद पहलू है जो हमें गर्व से भर देता है। नई ऊर्जा प्रदान करता है पर तस्वीर का एक पहलू आज भी वही है।
मेरी पत्रकार साथी से कल फोन पर नारियों पर बात हो रही थी उसने बताया कि महिलाओं में शर्म ,झिझक ,संकोच ,चुप्पी इस कदर आज भी हावी है कि एक महिला जिसे अंदर से पता लग रहा था कि उसे कुछ तकलीफ है उसने घर परिवार में मित्रों में किसी से अपनी बात ,अपनी परेशानी नहीं बांटी। जब घर के लोगों को उसके शरीर से दुर्गंध आने लगी तो उन्होने वजह जानने का प्रयास किया। उस महिला को स्तन कैंसर था। फिर इलाज की व्यवस्था हुई पर वह नहीं बची।.उफ्फ.......नारी मुक्ति की इतनी बातों के बीच यह नारी.......नारी की देह, ऐसा अनोखा कुछ भी नहीं.....जैसे पुरुष की देह का अपना विज्ञान है वैसे ही नारी की देह का अपना.......हम क्यों अपने आप को हर बात में संकोच और अज्ञान के अंधेरे में कैद कर लेते हैं?
ये महिलाएं जो अपने पिता ,पति या पुत्र के चड्डी बनियान अपने हाथों से धोकर धूप में सुखाती हैं। अपने अन्तर्वस्त्रों को तौलियों के नीचे छुपा कर रखती हैं। उन पर धूप नहीं लगती। कुछ महिलाएँ अपने बाथरूम में ही टांग देती हैं कि घर के किसी सदस्य को दिखाई न दे। महीनों के उन कठिन दिनों में सारी तकलीफ स्वयं सहती रहती हैं। घर के लोगों को जानकारी नहीं होती कि वह कितनी तकलीफ सह रही है। अपने स्वास्थ्य के प्रति ये उदासीनता क्यों, कब तक?
घर का कोई व्यक्ति यह जानने का प्रयास ही नहीं करता कि घर की महिला किन परिस्थितियों में लगातार काम कर रही है। वह थक रही है तो क्यों??? वह तनाव में है तो क्यों..?? वह चिड़चिडा रही है तो कहीं कोई वजह है उसकी चिड़चिड़ाहट की...........
आज़ादी के मायने क्या हैं......?? जहां औरतों ने स्वयं को अशिक्षा के अंधकार से मुक्त नहीं किया। अपना दर्द कह पाने में समर्थ नहीं है। आज भी सदियों पुरानी रवायतों में जकड़ी हैं। फलाना पूजा पति के लिए, फलाना पूजा बेटों के लिए, फलाना उपवास अगले जनम के लिए......उफ्फ........समझो तो.........इस जीवन को समझो........
कमज़ोर ,अशक्त देह पर व्रत ,उपवास ,ज़िम्मेदारियों का पहाड़ ....सतत मशीन की तरह काम ही करते जाना, तिस पर निचले तबके की महिलाओं पर शोषण का आलम यह है कि ये काम वाली बाई बनकर 6-7 घरों में काम करती हैं। रात को शराबी पति को संतुष्ट करती हैं न करें तो मार खाती हैं। पूरा परिवार चलाती हैं और शराबी ,जुआरी पति के जुल्म सहती हैं।
अंधविश्वास इस कदर गहरा है कि नौ दिन का उपवास। फिर नंगे पैर मंदिरों में दर्शन। मन्नत मांगने और पूरी होने पर येन केन प्रकारेण उस भगवान के दर्शन को जाना.......चाहे फिर हफ्ते भर घर में खाने को दाने न हों।
और जो महिलाएं मानसिक शोषण सहती हैं, शारीरिक शोषण सहती हैं, प्रेमी ,पति की बेवफाई सहती हैं, बेटी को जन्म देना चाहती हैं पर सास के आतंक में कुछ नहीं कर पातीं, आप ही बताएं.............नारी मुक्ति कहां हैं............. कहां है???? ........कितने प्रतिशत है? जवाब दीजिए....