वेबदुनिया मना रहा है इस महिला दिवस को उस सामान्य सी नारी के नाम, जो अपने-अपने दायरे में कर्मठता के सोपान रच रही हैं... हम बात उनकी नहीं कर रहे हैं जो सफलता के प्रतिमान गढ़ चुकी हैं, हम उनकी भी बात नहीं कर रहे हैं जो कीर्तिमान रच रही हैं, हम उनकी भी बात नहीं कर रहे हैं शिखर पर परचम लहरा रही हैं.... हम बात कर रहे हैं उनकी जो ना अधिकार जानती है न प्रतिकार... जो सिर्फ अपने अपनों के लिए जीना चाहती है....नहीं जानती है मंचों से दोहराए जाने वाले नारों को, अनजान है वह गुलाबी रंग की कोमलता से, उसके हाथ स्याह हैं अथक परिश्रम से और हम उसी मेहनत को सलाम करते हुए महिला दिवस के गुलाबी रंग को प्रतीकात्मक रूप से सुर्ख लाल कर रहे हैं....
जब तक स्वतंत्रता का आकाश, सम्मान की धरा, स्नेह की नदी और सुरक्षा का मजबूत कवच उसे हासिल नहीं होता है..यह अभियान जारी रहेगा...वेबदुनिया हर उस कर्मठ और संघर्षरत महिला को सलाम करता है जो अपने-अपने दायरे में अपने व्यक्तित्व और अस्तित्व का कच्चा लेकिन सच्चा इतिहास लिख रही है.....
इनमें वे हैं जो पेट्रोल पंप पर खड़ी आपकी गाड़ी में तेल डाल रही हैं, किसी मॉल के बाहर सुरक्षा के मद्देनजर बैग चैक कर रही है, टेंपरेचर ले रही हैं, मास्क बेच रही हैं, जो सड़कों पर स्वच्छता की इबारत लिख रही हैं...जो कचरा उठा रही हैं, जो ऑटो चला रही है, जो पानी ला रही हैं, जो सब्जी बेच रही हैं, जो पंक्चर बना रही हैं, जो फोटोकॉपी की दुकान चला रही हैं, जो अस्पतालों में डॉक्टर के बाजू में खड़ी दवाई के पन्ने लिख रही हैं...वह ईंट-मिट्टी-रेत उठा रही हैं बहुत-बहुत छोटे और सीमित दायरों में ये साधारण महिलाएं देश के निर्माण और विकास में असाधारण योगदान दे रही हैं....
आइए सलाम करें नारी की अदम्य इच्छाशक्ति को... उसके जीवट को... विषम हालात में जीने की उसकी मजबूती को.... महिला दिवस पर वेबदुनिया की विशेष प्रस्तुति....
नगर निगम में स्वरोजगार योजना निकली थी। जिसमें मेरा सिलेक्शन हो गया। इसके बाद हमको ट्रेनिंग दी गई। बैंक से लोन होने के बाद हमको गाड़ी दी गई। डेढ़ साल हो गया मुझे गाड़ी चलाते हुए। परिवार का सहयोग मिला तो आज हम यहां पर है। कई बार पुरुषों से भी लड़ना पडता है। लेकिन कुछ भाई लोग हमको पूरा सहयोग कर देते हैं। बदलाव की लहर भी हम देखते हैं। जब महिलाएं गाड़ी में बैठती है तो वह भी सेफ फिल करती है। - निशा चौहान, ऑटो चालक
एक व्यक्ति के कमाने से घर नहीं चलता। घर भी चलाना पड़ता, बच्चों को भी पढ़ाना पड़ता है। इसलिए मुझे बाहर निकलना पड़ा। मैंने किसी की परवाह नहीं की क्योंकि मुझे अपने बच्चें को पालना है, उसकी परवरिश करना है। इसलिए सभी बातों को अनसुना कर दिया। मुझे अपने पति का सहयोग मिलता है। किसी की गुलामी नहीं करना पड़ती है, कमाओ और अपने परिवार का ध्यान रखो- सीमा भागवान, ऑटो चालक
पहले किसी और जगह काम करती थी, जहां सिर्फ 5 हजार रुपए मिलते थे, फिर महिलाओं के लिए ऐड देखा और आवदेन दिया। जब सिलेक्शन हो गया तो 1 महीने ट्रेंनिंग दी गई।परिवार भी इस काम से खुश है। समाज ऐतराज करता है लेकिन परिवार भी चलाना है। समाज हमे कुछ ला कर नहीं देगा। पैसा होगा तो समाज पूछने आएगा। आज हम यह काम कर रहे हैं, क्योंकि बच्चा आगे बढ़े। मैं और पति दोनों मिलकर कमाते हैं और बच्चे को पढ़ाते हैं। महिलाओं को यही कहना चाहूंगी कि दुनिया से डरो नहीं, बाहर निकलो - संगीता मधकर, ऑटो चालक
मैं अपने भाई के लिए खाना लेकर आती थी और देखते-देखते सीख गई। मुझे बहुत अच्छा लगता है ये काम। सभी काम कर सकती हूं। कोई शर्म की बात नहीं है, कमाकर खा रहे हैं कोई शर्म की बात नहीं है। सभी महिलाओं को अपने पांव पर खड़ा होना चाहिए। सभी को कमाकर खाना चाहिए। इतनी शक्ति महिलाओं में होना चाहिए कि वह खुद कमाकर खा सके - नर्मदा वंदावडे, पंक्चर मैकेनिक
पहले बहुत संघर्ष किया आज मैं सक्षम हूं, अब मिस्टर का भी सहयोग मिलता है..एक वक्त था जब मुझे किसी का भी का सहयोग नहीं था लेकिन आज समाज में भी रूतबा है। मैं ज्यादा नहीं पढ़ी हूं लेकिन मैंने सोच लिया था बेटी को मुझे पढ़ाना है और आज वह जॉब कर रही है। किसी से भी आशा नहीं करना चाहिए, खुद को सक्षम रहना चाहिए -
चंदा वासकल, एक कंपनी में गार्ड, गेट पर टेंपरेचर चैक करती है।
ये हैं महिलाएं जो तमाम विषमताओं के बीच भी टूटती नहीं हैं, रुकती नहीं हैं... झुकती नहीं हैं। अपने-अपने मोर्चों पर डटी रहती हैं बिना थके। सम्माननीय है वह भारतीय नारी जो दुर्बलता की नहीं प्रखरता की प्रतीक है। जो दमित है, प्रताड़ित है उन्हें दया या कृपा की जरूरत नहीं है, बल्कि झिंझोड़ने और झकझोरने की आवश्यकता है। वे उठ खड़ी हों। चल पड़ें विजय अभियान पर।विजय इस समाज की कुरीतियों पर, बंधनों पर और अवरोधों पर।
महिला दिवस पर वेबदुनिया की विशेष प्रस्तुति....