शकुंतला सरुपरिया
ना जाने क्यूं लड़कियों के अपने घर नहीं होते
जो उड़ना चाहें अंबर पे, तो अपने पर नहीं होते
आंसू दौलत, डाक बैरंग, बंजारन-सी जिंदगानी
सिवा गम के लड़कियों के जमीनो-जर नहीं होते
ख्वाब देखे कोई वो, उनपे रस्मों के लाचा पहरे
लड़कियों के ख्वाब सच पूरे, उम्रभर नहीं होते
हौंसलों के ना जेवर हैं, हिफाजत के नहीं रिश्ते
शानो-शौकत होती अपनी, झुके से सर नहीं होते
बड़ी नाजुक मिजाजी है, बड़ा मासूम दिल इनका
जो थोड़ी खुदगरज होतीं, किसी के डर नहीं होते
कभी का मिलता हक इनको सियासत के चमन में भी
सियासत की तिजारत के जो लीडर सर नहीं होते
लड़कियों की धड़कनों पे निगाहें मां की भी कातिल
कोख में मारी न जातीं जो मां के चश्मेतर होते