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महिला दिवस : तो मेरा चांस भी पक्का था...

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अमिता पटैरिया
टीवी चैनल्स में देख रही थी, महिला दिवस पर बेहतरीन कार्य करने वाली महिलाओं को राष्ट्रपति वर्ल्ड वूमंस डे पर सम्मानित करेंगे। तभी घड़ी पर नजर पड़ी दोपहर के 3 बजने वाले थे। बच्चे बस आते ही होंगे। दिन कैसे निकल गया पता ही नहीं पड़ा... लगा अभी तो उठी थी 5 बजे..।



बच्चों को तैयार किया.. नाश्ता बनाया.. रानी को पोहा पसंद नहीं तो जल्दी-जल्दी पराठे बनाए... और बिट्टू को ब्रेड बटर ही भाता है..। बस भागते भागते स्कूल बस तक छोड़ा और वापिस आई तब तक अंजय भी उठ चुके थे...।चाय बनाई फिर ऑफिस के लिए कपड़े भी प्रेस करने रहते हैं...। जल्दी-जल्दी खाना बनाया...। अंजय को खाने में दही पसंद है हींग के तड़के के साथ, जिस दिन ना रख पाऊं टिफिन वापिस आ जाता है..। चश्मा, घड़ी, रुमाल भी बैग के पास न रखूं तो समझो उस दिन यह सब घर पर ही छूटना पक्का है।

3 बजे चुके हैं, कुछ स्नैक्स बनाना है बिट्टू और रानी के लिए। दोनों खेलने जाएंगे फिर शाम को उनका होमवर्क भी कराना होता है। अंजय भी बस आने वाले ही होंगे। उन्हें शाम को पापड़ी के साथ काली चाय लगती है। फिर घर का कुछ सामान भी लेने जाना है...अंजय आनाकानी ना करें कि थक गया हूं... कहेंगे दिनभर घर में रहती हो तो करती क्या हो? सामान लेने तो कम से कम जा ही सकती थी.. मतलब ऑफिस भी जाऊं और घर आकर शॉपिंग भी कराऊं...। वैसे मुझे अंजय के इस गुस्से की आदत हो गई है, इसलिए बिना कुछ जवाब दिए मैं तैयार हो जाती हूं।

वापिस आकर फिर रात का खाना बनाना होगा और बच्चों को सुलाकर बचा हुआ वक्त अंजय के खाते में जाता है। टीवी में हर चैनल पर यही देख रही हूं कि अलग-अलग क्षेत्र में योगदान देने वाली महिलाओं को सम्मानित किया जाएगा। सोच रही हूं कि यदि गृहकार्यों में योगदान को लेकर सम्मान मिलता तो मेरा भी चांस तो पक्का था....।

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