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पॉवर प्ले के दौरान समझदारी जरूरी

जवागल श्रीनाथ की कलम से

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PTI
भारत इस समय वैसी ही स्थिति में है जैसे वह 2003 में था। तब हम विश्वकप के दूसरे मैच में ऑस्ट्रेलिया से हार गए थे। नागपुर में दक्षिण अफ्रीका के हाथों मिली हार के बाद प्रशंसकों में असंतोष दिखा। पूरे देश में टीम की आलोचना हो रही है। ऐसा संभव नहीं है कि खिलाड़ियों को यह पता न हो कि नागपुर के उनके प्रदर्शन की आलोचना हो रही है।

आलोचनाओं का खिलाड़ियों पर दो प्रकार का प्रभाव पड़ता है। या तो इससे खिलाड़ी अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रेरित होते हैं या फिर वे दबाव में बिखर जाते हैं। जहाँ तक मैं जानता हूँ, यह भारतीय क्रिकेट में नया नहीं है। आयरलैंड और नीदरलैंड्स के खिलाफ जीत के बावजूद भी टीम पर अँगुलियाँ उठी थीं।

केवल एक जोरदार जीत आलोचकों को संतुष्ट कर सकती है। मध्यक्रम की असफलता के बावजूद भारत ने पाँच मैचों में 1400 रन इकट्ठे किए हैं। टीम करीब 6 के औसत से रन बना रही है। ऐसे में मैं इसे बल्लेबाजी की असफलता नहीं मानता।

जब भी शीर्ष क्रम रन बनाता है तो मध्यक्रम से वैसी ही अपेक्षा नहीं की जा सकती, क्योंकि शेष बल्लेबाजों को बहुत कम ओवर खेलने को बचते हैं। इसके बावजूद वास्तविकता यह है कि हमें आयरलैंड और नीदरलैंड्स के खिलाफ मैच मध्यक्रम ने ही जिताया था। हालाँकि द. अफ्रीका के खिलाफ 29 रनों में 9 विकेट गँवाना झटका था। यदि बल्लेबाजी पॉवर प्ले का सही उपयोग न हो तो यह स्वयं के लिए ही घातक साबित होता है।

भारतीयों को पॉवर प्ले के दौरान अपने प्रयासों में ज्यादा समझदारी लाना होगी। गेंदबाज इस दौरान ज्यादा जिम्मेदारी से गेंदबाजी करते हैं और टीम अपने श्रेष्ठ गेंदबाजों को ही आक्रमण पर लगाती है। डेल स्टेन जैसे गेंदबाज को मारना आसान नहीं होता।

- हॉक आई


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