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शेर पर सवारी कर रचा इतिहास

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आलोक मेहता

, रविवार, 3 अप्रैल 2011 (11:23 IST)
भारत के युवा खिलाड़ियों ने शनिवार को साबित कर दिया कि वे शेर के दाँत ही नहीं गिन सकते, उसके मुँह से निवाला निकालकर शेर की सवारी भी कर सकते हैं। 28 साल में क्रिकेट की दो पीढ़ियाँ आगे बढ़ गईं और महेंद्रसिंह धोनी तथा गौतम गंभीर के साथ अपनी टीम ने भारत भूमि के लिए एक नया इतिहास लिख दिया।

क्रिकेट के लिए भारत बद्री-केदार-द्वारका, मक्का-मदीना, वेटिकन की तरह सबसे पावन और आकर्षण का केंद्र बन चुका है। कोई इसे दुनिया का सबसे बड़ा बाजार मानता हो, लेकिन इससे अधिक ताकत भारत की युवा शक्ति में है।

वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंडुलकर के मुंबई के मैदान में कमजोर होकर बाहर जाने के बाद पूरे देश की धड़कन जैसे रुक गई थी। लेकिन महेंद्रसिंह धोनी, गौतम गंभीर और साथियों ने गजब के संयम और आत्मविश्वास के साथ श्रीलंका के जाँबाज चीतों का सामना कर भारत को विजय दिलाई।

क्रिकेट में विश्व चैंपियन बनने के कई महत्वपूर्ण संदेश भी हैं। इस विश्व कप के अंतिम दो मैच उन इलाकों में हुए, जो आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित रहे हैं। मोहाली से मुंबई तक तनाव और आतंकवादी धमकियों की चुनौती खिलाड़ियों से अधिक सरकार और समाज के लिए थी।

मैदान में जमा हजारों-लाखों की भी़ड़ के साथ 1 अरब 21 करोड़ जनता इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड जैसे देशों को पीछे छो़ड़ भारत को शिखर पर देखना चाहती थी। फिर भारत के खिला़ड़ी अपने लिए नहीं पूरी टीम की सफलता के आकांक्षी रहे।

सचिन, सहवाग और धोनी ने टीम को एकजुट रख केवल विजय का लक्ष्य सामने रखा, इसीलिए नाजुक अवसरों पर जब एक-एक रन के लिए सबकी साँस रुक रही थी, खिलाड़ियों की गति हजार गुना तेजी से चलती रही।

महत्वपूर्ण बिंदु यह भी है कि इस क्रिकेट पर राजनीति की कोई काली छाया नहीं थी। देश और दुनिया में भारत की विश्वविजय पर जश्न हो रहे हैं, लेकिन कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। भारतीय खिलाड़ियों ने विश्वकप फाइनल में 275 रन को पार करने का नया रिकॉर्ड बनाया और विश्वास पैदा किया है कि भारत का भविष्य उज्ज्वल है। हिन्दुस्तान की इस विजय पर खेल और खिलाड़ियों को बधाई तथा नमन।

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