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धोनी अपने फैसलों के लिए बदनाम

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नई दिल्ली , गुरुवार, 17 मार्च 2011 (19:49 IST)
PTI
FILE
विश्वकप शुरू होने से पहले भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी सभी की आँखों का नूर बने हुए थे लेकिन टूर्नामेंट के अपने आखिरी ग्रुप मुकाबले से पहले अपने फैसलों के चलते उन्हें कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।

भारत की दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ आखिरी ओवर में हार के बाद धोनी को अंतिम ओवर आउट ऑफ फॉर्म तेज गेंदबाज आशीष नेहरा से फिंकवाने के कारण सबसे ज्यादा बदनामी झेलनी पड़ रही है। हालाँकि धोनी ने अपने इस फैसले का बचाव करते हुए इस हार का ठीकरा बल्लेबाजों के सिर फोड़ते हुए कहा था कि वे देश के लिए खेलने के बजाए दर्शकों के लिए खेल रहे थे।

भारत को अपना आखिरी ग्रुप मैच वेस्टइंडीज के साथ रविवार को खेलना है। लेकिन पिछले दो दिनों में चेन्नई के एम ए चिदंबरम स्टेडियम में टीम इंडिया के अभ्यास में धोनी खुद शामिल नहीं हुए। न केवल धोनी बल्कि कुछ अन्य खिलाड़ियों ने भी अभ्यास से किनारा किए रखा।

भारतीय कप्तान ने अन्य बल्लेबाजों की प्रतिबद्धता पर तो सवाल खड़े कर दिए मगर जहाँ तक खुद उनके फॉर्म और विश्वकप में फैसलों की बात है तो वह अभी तक उस तरह कामयाब नहीं दिखाई दे रहे हैं जिस तरह वह 2007 के ट्‍वेंटी-20 विश्वकप में दिखाई दिए थे।

धोनी की खुद की फॉर्म को देखा जाए तो पिछली दस पारियों में उनका सर्वाधिक स्कोर सिर्फ 38 रन था जो उन्होंने 15 जनवरी को जोहानसबर्ग में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ बनाया था। विश्वकप के आठ मैचों में उनके खाते में 25.00 के बेहद सामान्य औसत से सिर्फ 125 रन हैं। हालाँकि वनडे में 182 मैचों में उनका 48.79 के औसत से 5904 रन का प्रभावशाली रिकॉर्ड है।

इस विश्वकप में धोनी को उद्घाटन मैच में बल्लेबाजी करने का मौका नहीं मिल पाया था जबकि बेंगलुरू में उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ 31, फिर बेंगलुरू में ही आयरलैंड के खिलाफ 34, दिल्ली में हॉलैंड के खिलाफ नाबाद 19 और नागपुर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नाबाद 12 रन बनाए थे।

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ जब भारतीय बल्लेबाज एक के बाद एक विकेट खो रहे थे तब धोनी दूसरे छोर पर 21 गेंदों में 12 रन बनाकर नाबाद खड़े रह गए। खुद उन्होंने भी ऐसे शॉट मारने की कोशिश नहीं की जिससे भारत की रनगति थोड़ी बहुत तेज हो या फिर वह दूसरे छोर के बल्लेबाजों को यह नहीं समझा नहीं सके कि उन्हें 50 ओवर तक टिककर खेलना है।

अपनी फॉर्म के साथ-साथ विश्वकप में धोनी के कई फैसले भी उनकी बदनामी के कारण बन रहे हैं। पहले मैच में नाबाद शतक बनाने वाले विराट कोहली के बल्लेबाजी क्रम के साथ अनावश्यक उठापटक, यूसुफ पठान को बिना किसी वजह के चौथे नंबर पर आजमाना, लेग स्पिनर पीयूष चावला को लगातार कुछ मैचों में खेलाना, तेज गेंदबाज शांतकुमारन श्रीसंथ को पहले मैच के बाद सिरे से खारिज कर देना। ऑफ स्पिनर आर अश्विन को अब तक कोई मौका नहीं देना और नेहरा से वो आखिरी ओवर फेंकवाना भारतीय कप्तान पर लगातार सवाल खड़े कर रहा है।

धोनी हालाँकि यह भी कहते हैं कि उनके टीम चुनने के फैसले में पूरी ईमानदारी दिखाई देती है लेकिन जिस तरह उन्होंने सार्वजनिक तौर पर भारतीय बल्लेबाजों की प्रतिबद्धता को लताड़ा वह कम से कम एक कप्तान को शोभा नहीं देता है। आखिर यही वो 15 खिलाड़ी हैं जो टीम इंडिया को खिताब तक ले जा सकते हैं।

अपने टीम साथियों की सार्वजनिक आलोचना से कप्तान उनका मनोबल ही गिराएँगे, ऊँचा नहीं करेंगे। भारत का आखिरी ग्रुप मैच जिस दिन वेस्टइंडीज के साथ है वह होली का दिन है। भारत को इस दिन हर हाल में जीत का गुलाल खेलना होगा। (वार्ता)

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