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'मेमने' की 'दहाड़' से सहमे शेर

- सीमान्त सुवीर

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PTI
दुनिया की हर टीम भारत से कम से कम ये तो सीख ले ही सकती है कि किस तरह आसान मैच को ‍मु‍श्किल बनाकर जीता जाता है। विश्वकप के ग्रुप 'बी' में भारत ने बेंगलुरु में आयरलैंड पर जोश से कोसों दूर रहने वाली जीत दर्ज की थी और दिल्ली के कोटला मैदान पर बुधवार के दिन 7 विशुद्ध बल्लेबाजों के साथ उतरी टीम इंडिया को हॉलैंड जैसे नए नवेले देश को 5 विकेट से हराने में भी पसीने छूट गए। 189 के लक्ष्य का पीछा कर रहे भारत को यह जीत तब मिली, जब मैच का 37वाँ ओवर चल रहा था।

फिरोजशाह कोटला के मैदान पर दो दिन पहले केन्या और कनाडा के बीच खेले गए विश्वकप मैच में 300 दर्शक भी जमा नहीं हुए थे, वहीं 9 मार्च के दिन हॉलैंड-भारत के मैच में यह संख्या 30 हजार के पार चली गई, लेकिन इन दर्शकों ने 'मिशन वर्ल्डकप' की टीम इंडिया के जिस प्रदर्शन के दीदार किए उससे तो उन्हें समझ में आ गया होगा कि 'टीम इंडिया' अभी भी कागजों पर ही शेर है। उसे अपने मिशन को पूरा करने के लिए जबदस्त सुधार की दरकार है।

इसमें कोई शक नहीं कि हॉलैंड की टीम मैच हारने के बावजूद गर्व के साथ मैदान से बाहर आई जिसने दुनिया के टॉप कहे जाने वाले सूरमाओं को जोर करा दिए। हॉलैंड के पास खोने को कुछ नहीं था। उसके जाँबाज खिलाड़ियों ने अपनी दहाड़ से एकबारगी भारत जैसी ताकतवर टीम को सहमने पर जरूर मजबूर कर दिया।

24वें ओवर की पहली गेंद तक भारत के पाँच स्टार बल्लेबाज सहवाग 39, तेंडुलकर 27, यूसुफ पठान 11, विराट कोहली 12 और गौतम गंभीर 28 रन बनाकर ड्रेसिंग रूम में विश्राम कर रहे थे। इन पाँच महान क्रिकेटरों को आउट करना हॉलैंड जैसे देश के गेंदबाजों के लिए 'एवरेस्ट फतह' करने जैसा था। तब स्कोर था 5 विकेट के नुकसान पर 139 रन और भारत को जीत के लिए 161 गेंदों में 51 रनों की दरकार थी।

विकेट पर पिछले दो मैचों में लगातार अर्धशतक जमाने वाले युवराजसिंह के साथ कप्तान महेन्द्रसिंह धोनी मौजूद थे, लिहाजा भारत हारने जैसी स्थिति में तो बिलकुल नहीं था। यही दोनों बल्लेबाज नाबाद रहते हुए भारत को 36.3 ओवर में जीत दिलवाकर (191/5) मैदान से बाहर आए। यानी मैच में पूरे 13.3 ओवर का खेल बाकी रहते भारत जीत के साथ क्वार्टर फाइनल की सीट बुक करने में सफल हो गया।

कोटला के फ्लेट विकेट पर भारतीय गेंदबाजों ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने उतरी हॉलैंड की टीम को 46.4 ओवर में 189 रनों पर समेट दिया। नेहरा को विश्वकप में पहली बार अपने घरू मैदान पर खेलने का मौका दिया, लेकिन उनकी बॉडी लेंग्वेज से साफ पता चल रहा था कि वे अभी भी 100 फीसदी फिट नहीं हैं। यही कारण है कि धोनी ने उनसे केवल 5 ओवर फिंकवाए, जिसमें वे 22 रन देकर एक विकेट लेने में सफल रहे।

इस मैच में एक बात तो साफ हो गई है कि भारतीय गेंदबाजी का दायरा जहीर खान के इर्द-गिर्द आकर सिमट जाता है। हॉलैंड के कप्तान 28 बरस के पीटर विलियम बोरेन और मुदस्सर बुखारी की जोड़ी को तोड़ने के लिए धोनी को 'ब्रह्मास्त्र' के रूप में जहीर खान को ही आजमाना पड़ा क्योंकि दूसरे स्पिनर पीयूष चावला की तो चकाचक धुनाई हो रही थी, छक्के पड़ रहे थे सो अलग।

जहीर ने बोरेन को 38 रनों (36 गेंदों में 3 चौके, 2 छक्के) के निजी स्कोर पर आउट कर दिया, लेकिन तब तक नौंवे विकेट के रूप में यह जोड़ी 38 रन जोड़ चुकी थी। जहीर की गेंद पर बुखारी बोल्ड होने के पहले 18 गेंदों पर 2 छक्कों की मदद से 21 रन बना चुके थे। यह हॉलैंड का अं‍तिम विकेट था, जो 189 के स्कोर पर आउट हुआ। जहीर का 6.4 ओवर में केवल 20 रन देकर 3 विकेट लेना इस बात का सबूत है कि उनके अलावा टीम के अन्य तेज गेंदबाजों के कंधों में वह दम नहीं है, जो विश्वकप जैसे मुकाबले में होना चाहिए।

धोनी ने इस मैच में एकमात्र बदलाव के रूप में मुनाफ की जगह नेहरा को अंतिम 11 में जगह दी और आर. अश्विन हमेशा की तरह मैदान के बाहर से ही ताली बजाते हुए नजर आए। हरभजन ने 10 ओवर में किफायती गेंदबाजी की और 31 रन ही दिए लेकिन उन्हें एक भी विकेट नहीं मिला। युवराज को बेंगलुरु के चिन्नास्वामी की तरह दिल्ली का कोटला मैदान भी रास आया और वे 43 रन देकर 2 विकेट लेने में सफल रहे। पीयूष चावला को भी 47 रन की कीमत पर 2 विकेट मिले।

जो लोग इस मैच को 'मेमने और शेर' की लड़ाई वाला मान रहे थे, उनके ज्ञान को बढ़ाने के लिए यह बताना जरूरी है कि जहाँ भारत 750 से ज्यादा वनडे मैच खेल चुका है, वहीं हॉलैंड की टीम केवल 60 वनडे मैच खेली है। भारतीय खिलाड़ी जहाँ सालभर क्रिकेट खेलते रहते हैं, वहीं हॉलैंड के खिलाड़ियों को केवल 4 माह क्रिकेट खेलने का मौका मिलता है। भारतीय क्रिकेटरों को एक मैच और विज्ञापन के जरिये ही बहुत कुछ मिल जाता है, जबकि डच क्रिकेटरों को घर चलाने के लिए पूरे 30 दिन मेहनत करनी होती है।

इस तरह के आँकड़ों के बाद यदि हॉलैंड की टीम भारत को 190 रनों के लक्ष्य को पाने के लिए 37वें ओवर तक का इंतजार करवाए तो उसकी गेंदबाजी की प्रशंसा करनी ही होगी। यह तो वही बात हुई कि हॉलैंड जैसी कमजोर टीम भी भारतीय बल्लेबाजों के लिए गले की हड्‍डी बन गई। आप 23.1 ओवर में टॉप ऑर्डर के पाँच बल्लेबाजों के धराशायी होने को न भूलें, जिसे हॉलैंड के गेंदबाज अगले विश्वकप तक याद तो रखेंगे ही अपने वतन जाकर इस कामयाबी की दास्तान दूसरों को भी कई दिनों तक सुनाएँगे।

जिसने भी कोटला के मैदान पर यह मैच देखा होगा, उसके जेहन में भारतीय टीम की जीत से ज्यादा ये फिक्र हो रही होगी कि जब 12 मार्च को नागपुर में दक्षिण अफ्रीका के सामने टीम इंडिया होगी, तब क्या होगा? चमत्कार या फिर बहुत ऊँचे दर्जे का प्रदर्शन। यही मैच भारत के क्वार्टर फाइनल और उससे आगे की राह तय करेगा।

खेल के नाम पर हॉलैंड को दुनिया 'फुटबॉल' के रूप में जानती है। 'ऑरेंज ब्रिगेड' जिस तरह फुटबॉल में पूरा दमखम लगाती है, उसी तरह उसके क्रिकेटर भी मैदान पर जी-जान लगा देते हैं और उन्होंने मैच में कुछ हद तक इसे प्रदर्शित भी किया, जिसकी वजह से धोनी ने भी माना कि यह एक ताकतवर टीम है।

यदि बुधवार को सचिन और सहवाग पहले विकेट की भागीदारी में 69 रन नहीं जोड़ते तो मुश्किलें बढ़ सकती थीं। यह भी था कि यदि हॉलैंड 250 से ज्यादा स्कोर करती तो धोनी एंड कंपनी परेशानी में पड़ जाती। पिछले चार मैचों में भारत का जो प्रदर्शन रहा है, वह कतई विश्व चैम्पियन जैसा नहीं है। मैदान पर जब तक टीम का हर सदस्य अपना किरदार ईमानदारी से नहीं निभाएगा, तब तक आप दावे के साथ नहीं कह सकते हैं कि विश्वकप धोनी के धुरंधरों के हाथों में ही होगा।

पिछले चारों मैच दुनिया की दूसरे नंबर पर काबिज टीम इंडिया की कलई खोलने के लिए काफी हैं। मैदान पर कुछ रणनीति बनती है और ड्रेसिंग रूम में कुछ और। आप खरामा-खरामा और लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। आगे नहीं बल्कि यूँ कहें कि रेंगते हुए। कभी किसी ‍बल्लेबाज के बूते तो कभी किसी गेंदबाज के बूते 'विश्वकप के सफर' को आगे बढ़ा रहे हैं।

आलोचना बुरी जरूर लगती है लेकिन सच तो ये है कि धोनी एंड कंपनी को आप जिन पलकों पर बैठाए हुए हैं, उन्हें उतार दीजिए। यदि अब भी इनका जमीर नहीं जागता है तो कोई आश्चर्य नहीं कि भारत का विश्वकप का सफर समय से पहले ही थम जाए।

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