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यूँ ही नहीं कहा जाता द. अफ्रीका को 'चोकर्स'

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ढाका , शनिवार, 26 मार्च 2011 (15:56 IST)
विश्वकप की प्रबल दावेदार मानी जा रही दक्षिण अफ्रीकी टीम ने न्यूजीलैंड के हाथों क्वार्टर फाइनल मैच गँवाकर एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह निर्णायक मौकों पर दबाव न झेल पाने के कारण लड़खड़ा जाती है और इसलिए उसे हर मैच में 'चोकर्स' के अनचाहे ठप्पे के साथ उतरना पड़ता है।

दक्षिण अफ्रीका को इस बार विश्वकप की सबसे संतुलित और खिताब की प्रबल दावेदार टीम माना जा रहा था। क्वार्टर फाइनल से पहले तक टीम के जबरदस्त प्रदर्शन को देखकर लग रहा था कि इस बार दक्षिण अफ्रीकी टीम 'चोकर्स' का दाग धोकर ही चैन की साँस लेगी।

दक्षिण अफ्रीका ने ग्रुप चरण में पाँच मैचों में जीत दर्ज कर और केवल एक मैच गँवाकर शीर्ष टीम के रूप में क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई थी। उसने भारत के खिलाफ बेहद दबाव की परिस्थितियों में भी जीत दर्ज कर एकबारगी तो अपने सभी आलोचकों को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया था कि इस बार वह 'चोकर्स' के ठप्पे को गलत साबित कर देगा।

लेकिन क्वार्टर फाइनल में दक्षिण अफ्रीका ने फिर वही पुरानी कहानी दोहराई और उसे न्यूजीलैंड के हाथों 49 रनों से हार का सामना करना पड़ा। हालाँकि दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाजों ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए कीवी टीम को 221 रनों पर समेट दिया था।

इसके जवाब में बल्लेबाजों ने भी अच्छी शुरुआत की और टीम एक समय तीन विकेट के नुकसान पर 108 रन बनाकर अच्छी स्थिति में थी। लेकिन इसके बाद टीम को न जाने क्या हुआ कि उसके बाकी के सभी बल्लेबाज 43.2 ओवर में मात्र 172 का टीम स्कोर बनाकर चलते बने और दक्षिण अफ्रीका एक बार फिर खुद पर से चोकर्स का ठप्पा हटाने में नाकामयाब रहा।

दक्षिण अफ्रीकी टीम ने 1992 से विश्वकप टूर्नामेंट में भाग लेना शुरू किया था लेकिन हर टूर्नामेंट में उसका वही हाल हुआ जो इस बार हुआ। इससे पहले भी वर्ष 1992, 1996, 1999 और 2007 के विश्वकप में टीम निर्णायक क्षणों में लड़खड़ा गई थी या फिर भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया जबकि 2003 में वह नॉकआउट चरण में ही नहीं पहुँच पाई थी।

वर्ष 1992 में जब दक्षिण अफ्रीका ने ऑस्ट्रेलिया में हुए विश्वकप टूर्नामेंट में पहली बार अपनी चुनौती पेश की तो वह सेमीफाइनल तक पहुँचने में कामयाब रहा था लेकिन इस मैच में उसे इंग्लैंड के हाथों 19 रन से हार का सामना करना पड़ा था। हालाँकि इस मैच में दक्षिण अफ्रीका को बारिश होने के कारण नुकसान हुआ था।

इसके बाद 1996 विश्वकप के क्वार्टर फाइनल मुकाबले में दक्षिण अफ्रीका को वेस्टइंडीज के हाथों फिर से 19 रनों से हार झेलनी पड़ी। वेस्टइंडीज के 264 रनों के जवाब में दक्षिण अफ्रीकी पारी 49.3 ओवर में 245 रन पर सिमट गई थी।

हालाँकि 1999 में इंग्लैंड में खेले गए विश्वकप में दक्षिण अफ्रीका ने ऑस्ट्रेलिया के 213 रनों के जवाब में इतने ही रन बनाकर टाई खेला था। लेकिन ग्रुप चरण में बेहतर प्रदर्शन के दम पर ऑस्ट्रेलिया को फाइनल में जगह दी गई और दक्षिण अफ्रीका एक बार फिर हाथ मलता रह गया।

इसके बाद 2007 में विश्वकप के सेमीफाइनल में भी ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिण अफ्रीका की चुनौती को समाप्त कर दिया। दक्षिण अफ्रीकी टीम ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 43.5 ओवर में मात्र 149 रन बनाए जिसके जवाब में ऑस्ट्रेलिया ने 31.3 ओवर में 153 रन बनाकर बड़ी आसानी से मैच अपने नाम कर लिया। यानी अब तक विश्वकप में दक्षिण अफ्रीका टीम हर बार निर्णायक क्षणों पर दबाव का सामना करने में असफल रही है और इसलिए उसे चोकर्स कहा जाता है। (वार्ता)

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