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विश्वकप क्रिकेट का महामुकाबला

- सीमान्त सुवीर

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हिन्दी में एक शब्द है 'मुगालता'। मुगालता पालने वाले हमेशा औंधे मुँह गिरते हैं। मीरपुर में विश्वकप खिताब की प्रबल दावेदार दक्षिण अफ्रीका ने अपने बेहतरीन गेंदबाजों और बल्लेबाजों के दम पर 'मुगालता' पाला और देखिए ग्रुप 'बी' की बेहद कमजोर समझी जाने वाली न्यूजीलैंड की टीम ने उसे कैसे पटखनी देकर सेमीफाइनल की दहलीज पर कदम रखा।

एशिया की तीन टीमों भारत, श्रीलंका और पाकिस्तान ने कोई मुगालता नहीं पाला और वे मैच-दर-मैच आगे बढ़े। जीत संघर्षपूर्ण मिली या लड़खड़ाते हुए मिली, ये मायने नहीं रखता क्योंकि जीत तो जीत होती है। सुनील गावसकर की फेवरेट टीमों में उन्होंने भारत, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, द. अफ्रीका और पाकिस्तान को रखा था। इसमें से दुनिया की दो बेहतरीन टीमें (ऑस्ट्रेलिया-अफ्रीका) अतिआत्मविश्वास के कारण अपने घर रवाना हुई।

पाकिस्तान का सेमीफाइनल में पहुँचना अपने आप में एक बड़ी सफलता माना जाएगा। विश्वकप के पहले जब पाक टीम का चयन और कप्तान के बारे में मंथन किया जा रहा था, उसे याद कीजिए। टीम घोषित होने के बाद कप्तान घोषित नहीं होता है और अफरीदी और मिस्बाह के बारे में बहस चलती रहती है किसके सिर पर 'काँटों भरा ताज' रखा जाए? पाकिस्तान एक ऐसी टीम थी जिसने ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेले थे और 'बोनस' में वह मैच फिक्सिंग के साथ स्पॉट फिक्सिंग के दंश को भी झेल रही थी।

ऐन मौके पर अफरीदी को कप्तान बनाया जाता है और वे खिलाड़ियों से बेहतर प्रदर्शन की मिन्नतें करते रहते हैं। पाकिस्तान टीम के भीतर कितनी आपसी फूट और राजनीति चलती है, इसे बताने की जरूरत नहीं है, लेकिन मैदान पर इस टीम ने कमाल का प्रदर्शन किया और अपनी 'लड़ाकू खेल प्रवत्ति' के बूते पर ही उसने मोहाली में भारत के खिलाफ विश्वकप का सेमीफाइनल खेलने का हक प्राप्त किया और आईसीसी के इस क्रिकेट आयोजन को बेहद सफलता के मोड़ पर ला खड़ा किया।

तेज गेंदबाजी में जहाँ अकेले उमर गुल चले तो अफरीदी ने 7 मैचों में 21 विकेट ले‍कर अपनी स्पिन गेंदबाजी का लोहा मनवाया। लीग के 6 मैचों में सलामी जोड़ी फ्लॉप रहने के बाद सातवें मैच में चली। पाकिस्तान टीम का इस विश्वकप के सेमीफाइनल तक की राह तय करने के पीछे कारण ये भी रहा कि पाकिस्तानी खिलाड़ी उपमहाद्वीप के विकेटों की तासीर से परिचित थे।

30 मार्च को भारत-पाकिस्तान के महा-मुकाबले का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है क्योंकि तब क्रिकेट का जुनून चरम पर रहेगा। अफरीदी इस मैच में फिटनेस समस्या से जूझ रहे शोएब अख्तर को मैदान पर उतारने का जुआँ खेल सकते हैं। अख्तर के खेलने पर उनका और सचिन का द्वंद्व देखने लायक रहेगा।

सहवाग पाक गेंदबाजों को अच्छे से खेलते हैं, लिहाजा उनसे भी बड़ी पारी की उम्मीद होगी। पूरे टूर्नामेंट में 7 में से 4 मैचों के 'मैन ऑफ द मैच' रहकर भारत को नाजुक मौकों से जीत दिलाने वाले युवराजसिंह का फॉर्म पूरे शबाब पर है। मोहाली यूँ भी युवी का घरू मैदान है, लिहाजा उनसे एक और विजयी पारी की उम्मीद करना बेमानी नहीं होगी।

धोनी के सामने समस्या जहीर खान के साथ दूसरे छोर पर एक अच्छे गेंदबाज के न चलने की रही है, हो सकता है कि वे यहाँ मुनाफ पटेल की जगह श्रीसंथ को मौका दें। हरभजनसिंह अपने घर में कमाल दिखाने को बेताब हैं तो क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलकर सुरेश रैना भी आत्मविश्वास से लबरेज हैं।

कहा जा रहा है कि जो टीम दबाव को झेल लेगी और वह फाइनल में प्रवेश करेगी। प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह का न्योता स्वीकार कर पाक के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी भी मैच में मौजूद रहेंगे तो दबाब भारत पर कम, पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर ज्यादा रहेगा, क्योंकि मैच खेलते वक्त उनके दिमाग में हार के बाद घरों पर होने वाली 'पत्थरबाजी' का डर सता रहा होगा।

इसमें कोई शक नहीं कि विश्वकप के इस सबसे 'हाई वोल्टेज' मुकाबले में जज्बातों का तूफान देश के अलावा सरहद पार भी हिलोरें ले रहा होगा। मन्नतों और दुआओं में भरोसा रखने वालों की दोनों ही मुल्कों में कमी नहीं है। दोनों देशों के खिलाड़ी मैदान में खुद को 'कूल' बताने का प्रयास कर रहे होंगे जबकि हकीकत ये है कि उनके दिल सुलग रहे होंगे और ज्वालामुखी का लावा बाहर आने को मचल रहा होगा।

आँकड़ों की मानें तो भारत और पाकिस्तान हिन्दुस्तान की जमीन पर आखिरी बार 2007 में फिरोजशाह कोटला मैदान पर खेले थे, उसके बाद ये पहली भिड़ंत है। भारतीय टीम भी अंतिम बार 2006 में धोनी की कप्तानी में पाकिस्तान गई थी। विश्वकप में भारत की पहली बार टक्कर 1992 में सिडनी में पाकिस्तान से हुई थी, जहाँ भारत 43 रनों से विजयी रहा था।

1996 के विश्वकप के क्वार्टर फाइनल में भारत ने पाकिस्तान को 39 रनों से हराया था। 1999 के विश्वकप में यही दोनों टीमें मैनचेस्टर में एक बार फिर आमने-सामने हुई और यहाँ भी भारत ने जीत की परंपरा कायम रखते हुए पाकिस्तान को 47 रन से हराया था। 2003 के विश्वकप की उपविजेता भारत ने सेंचुरियन में पाकिस्तान पर 6 विकेट से फतह प्राप्त की थी और यहीं पर सचिन तेंडुलकर द्वारा शोएब अख्तर की पहली ही गेंद पर उड़ाए गए छक्के को आज तक याद किया जाता है।

यानी चार बार विश्वकप में भारत के सामने पाकिस्तान आया और चारों बार उसे मात ही मिली। वैसे आजकल के क्रिकेट में बहुत बदलाव आ गया है और मैच के दौरान कप्तान ही नहीं, खिलाड़ियों को भी अपनी मानसिक दृढ़ता का सबूत देना होता है। पूरी दुनिया की नजरें 30 मार्च को मोहाली पर टिकी होंगी कि आखिर 'क्रिकेटिया जंग' में कौन बाजी मारता है। दोनों ही देशों के क्रिकेट प्रशंसक भी अपने-अपने वतन का झंडा लिए बेताब रहेंगे कि परिणाम के सामने आते ही कब वे जीत का जश्न मनाने के लिए सड़कों पर दौड़ पड़े।

यकीन मानिए कि सेमीफाइनल के दिन कम से कम हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की फिजाओं में क्रिकेट के अलावा कुछ नहीं होने वाला है। जोश और जुनून का इम्तिहान होगा, क्रिकेट का रोमांच अपनी पराकाष्ठा को छूएगा, हरेक गेंद, रन और विकेट पर पैनी नजर होगी और देखना दिलचस्प होगा कि विश्वकप के फाइनल के पहले का 'फाइनल' किस देश के सिर जीत का सेहरा बाँधता है? इस मैच का 'नायक' पूरे विश्वकप पर राज करेगा और 'खलनायक' की बुरी गत तो होना लाजमी ही है।

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