विश्वकप में दिखा बदला हुआ युवराज
मुंबई , रविवार, 3 अप्रैल 2011 (15:31 IST)
पिछले साल ही भारतीय टीम से बाहर किए गए युवराजसिंह विश्वकप में भारत के सफल अभियान में पूरी तरह से बदले हुए से नजर आए। इस क्रिकेट महाकुंभ में पंजाब के इस खिलाड़ी का वह अंदाज देखने को मिला जिसके कारण उन्हें भारतीय टीम का मैच विजेता कहा जाता है।भारत की जीत के बाद युवराज भावुक हो गए थे और वानखेड़े स्टेडियम में 33 हजार दर्शकों और टेलीविजन पर देख रहे करोड़ों लोगों के सामने फफक-फफक कर रो पड़े थे। युवराज ने कहा कि जीत के बाद भावनाओं पर काबू पाना मुश्किल था और पहली बार उनकी आँखों में आँसू आए। उन्होंने इस क्षण को टीम के लिए ‘सपना सच होने’ जैसा बताया।युवराज ने कहा कि शायद पहली बार मेरी आँखों में आँसू आए। मेरी आँखों मे इसलिए आँसू आए क्योंकि सभी की आँखें भरी हुई थी। इस ऑलराउंडर ने टूर्नामेंट में 369 रन बनाने के अलावा 15 विकेट भी लिए।बाएँ हाथ के इस बल्लेबाज का भाग्य तेजी से बदला क्योंकि कुछ महीने पहले ही खराब फार्म के कारण उन पर अँगुलियाँ उठ रही थी। वह वन डे टीम के नियमित सदस्य रहे लेकिन कभी टेस्ट टीम में अपनी जगह पक्की नहीं कर पाए।पूर्व कप्तान सौरव गांगुली के संन्यास के बाद युवराज को टेस्ट टीम में जगह पक्की करने का मौका मिला लेकिन वह इस मौके का फायदा नहीं उठा पाए।युवराज टेस्ट टीम से अंदर बाहर होते रहे और आखिर में पिछले साल अक्तूबर में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू श्रृंखला में उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। यहाँ तक कि उन्हें जून में एशिया कप की एकदिवसीय टीम में भी नहीं चुना गया।उन्होंने कहा कि ट्वेंटी-20 विश्वकप में हार के बाद मेरी काफी आलोचना हुई। सात-आठ साल बाद भारतीय टीम से बाहर होना मेरे लिए बड़ा झटका था। इसके बाद ही मैंने बेहतर करने की सोची और अतिरिक्त मेहनत करनी शुरू की। विश्वकप से पहले तक युवराज चोट और खराब फॉर्म से जूझते रहे और उन्होंने स्वीकार किया कि टूर्नामेंट से पहले वह अपनी सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में नहीं थे।उन्होंने कहा कि वास्तव में मैं अपनी सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में नहीं था। मैं धीरे-धीरे फॉर्म में लौटा। मैंने अच्छी गेंदबाजी, अच्छी बल्लेबाजी और अच्छा क्षेत्ररक्षण करना शुरू किया। पिछले साल से वास्तव में मैंने अपने खेल पर बहुत काम किया। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं इतना चोटिल क्यों हो रहा हूँ।युवराज ने कहा कि वह मेरे लिए मुश्किल दौर था। यह पिछले दस साल में मेरे लिए सबसे मुश्किल दौर था। तब ऐसा भी समय आया जब मैंने खुद से पूछा कि ‘क्या मुझे खेलना जारी रखना चाहिए। मैंने गंभीरता से यह सोचना शुरू कर दिया कि क्या मैं आगे खेलना चाहता हूँ या नहीं। मैं बहुत नकारात्मक बातें सोच रहा था। (भाषा)