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साहसभरा था नेहरा को खिलाने का निर्णय

जवागल श्रीनाथ की कलम से

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विश्वकप में पाकिस्तान पर पिछली चार जीत का साक्षी होने की वजह से मैं समझ सकता हूँ कि इस समय भारतीय टीम के खिलाड़ी कैसा महसूस कर रहे होंगे।

इस बार की जीत पिछली जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अपने घर में मिली है और इसके जरिए टीम विश्वकप फाइनल में पहुँची है। इस बार मैं मैदान के बाहर था, इस वजह से मुझे यह जानने-समझने का मौका मिला कि जब विश्वकप में भारत और पाकिस्तान भिड़ते हैं तो देशवासियों के मन में क्या खलबली मची रहती है।

बाहर से देखने पर समझ में आता है कि देशवासियों के लिए यह मैच कितना महत्वपूर्ण होता है। द्विपक्षीय श्रृंखला खेलना अलग बात होती है क्योंकि इसमें एक मैच हारने पर वापसी की गुंजाइश रहती है, लेकिन यह विश्वकप सेमीफाइनल था और विपक्षी टीम पाकिस्तान थी।

इस वजह से यह जीत बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है। मैंने अपने घर में मैच देखा, मैच के दौरान सड़कें सूनी थीं, लेकिन जैसे ही मैच समाप्त हुआ चारों तरफ उत्साह और उमंग का वातावरण था जो अकल्पनीय था।

लोगों में इतना भावनात्मक जोश था कि उसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता है। मैं सोचता हूँ कि यदि भारत हार गया होता तो लोगों की क्या प्रतिक्रिया होती, यह सोचकर ही डर लगता है। मैं उम्मीद करता हूँ कि लोग इतने समझदार तथा जिम्मेदार बनेंगे तथा क्रिकेट का कट्टरपन खेल भावना से बड़ा नहीं हो जाए।

भारतीय और पाकिस्तानी टीमों ने अच्छा प्रदर्शन किया। मेरी तो इच्छा थी कि यदि ये दोनों टीमें फाइनल में भिड़तीं। मैं यह भी उम्मीद करता हूँ कि पाकिस्तानी लोग भी टीम के प्रदर्शन का सम्मान करें।

आशीष नेहरा को टीम में लेने का निर्णय बेहद समझदारीपूर्ण और साहसभरा था। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 14 रनों वाला अंतिम ओवर उन्हें कचोट रहा था। इस वजह से वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्हें बाहर बिठाना ठीक लगता है, लेकिन उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ जबर्दस्त गेंदबाजी कर अपनी प्रतिष्ठा पुनः हासिल कर ली है।

हमारी बल्लेबाजी थोड़ी कमजोर रही, लेकिन गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण जबर्दस्त रहा। हरभजन सही समय पर लय में आए और उमर अकमल का विकेट मैच का टर्निंग पाइंट रहा। भज्जी के फॉर्म में आने से विश्वकप जीतने की उम्मीदें जागी हैं। सचिन लय में नहीं दिखे, लेकिन मुझे पक्का विश्वास है कि उन्होंने फाइनल के लिए विशेष पारी बचा कर रखी होगी।

-हॉक आई


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