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महेंद्र सिंह धोनी बने भारत के सबसे सफल कप्तान

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सीमान्त सुवीर

पर्थ में वाका के तेज और उछाल भरे विकेट पर बल्लेबाजी करना आसान नहीं माना जाता। तेज गेंदबाज की गेंद विकेट पर ‍टप्पा खाने के बंदूक से छूटी गोली की मानिंद आती है, ऐसे में धुरंधर धोनी ने न केवल 45 रनों की नाबाद पारी खेली बल्कि भारत को विश्व कप 2015 में ग्रुप 'बी' में क्वार्टर फाइनल में खेलने का हक भी दिलवाकर दम लिया। भारत ने मैदान पर जीत का 'चौका' जड़ा और इसी के साथ धोनी ने अपने फौलादी सीने पर विदेशी जमीन पर भारत के सफल कप्तान होने का तमगा भी चस्पा लिया। 
'कोलकाता के प्रिंस' कहे जाने वाले गांगुली को सबसे आक्रामक और विदेशी जमीन पर सबसे ज्यादा जीत दर्ज करने के लिए जाना जाता रहा है लेकिन धोनी ने 'दादा' के कारनामे को भी पीछे छोड़ दिया। धोनी ने 112वां वनडे मैच खेलकर भारत को 59वीं जीत दिलाई जबकि गांगुली के नाम 110 मैचों में 58 जीत दर्ज है। 
 
धोनी की कप्तानी में भारत ने विदेशी जमीं पर 41 तथा गांगुली की कप्तानी में 47 मैच हारे हैं। इसी क्रम में कपिल देव ने 42 वनडे मैच खेले जिसमें 21 जीते, 20 हारे, राहुल द्रविड़ ने 43 मैच खेले जिसमें 21 जीते, 20 हारे और अजहरुद्दीन ने 116 मैच खेले जिसमें से 50 जीते 59 मैच हारे हैं।
 
धोनी कहते हैं कि खेलते वक्त उनकी नजर रिकॉर्ड पर नहीं रहती, उनकी नजर विजयी लक्ष्य पर रहती है। भारत में गुरुवार की रात 'होलिका दहन' हो चुका था और शुक्रवार के दिन धुलैंडी पर जब देशवासी रंग से तरबतर होने के बाद शाम को सुस्ता रहे थे, तब वाका में चल रहे उतार-चढ़ाव भरे मैच ने उन्हें मानों एकाएक नींद से जगा दिया। न केवल जगा दिया, बल्कि रोमांच से भी भर दिया। 
 
आप इस मैच के परिणाम पर न जाकर थोड़ा हटकर देखिये...भारत को जीत के लिए 183 रन चाहिए थे और जब 29.3 ओवर में 134 पर शीर्षक्रम के 6 बल्लेबाज धराशायी हो जाए तो कल्पना की जा सकती है कि इन हालातों में भारतीय क्रिकेटप्रेमियों के दिलों की धड़कने कितनी बढ़ गई होंगी। इस मैच में कौन जश्न मनाएगा और कौन गमजदा होगा, कहना मुश्किल था...
 
धोनी को कप्तानी पारी खेलनी ही थी, वे ऐसा नहीं करते तो आज भारत विश्व कप में क्वार्टर फाइनल खेलने वाला पहला देश नहीं बन सकता था। वेस्टइंडीज के तेज और स्पिन आक्रमण को उन्होंने मौका मिलने पर भुनाया और अधिक से अधिक स्ट्राइक खुद के पास रखकर अश्विन को कहा कि तुम बस साथ देते रहो, जीत हमारी ही होगी...इस रणनीति का परिणाम सामने भी आ गया, जब भारत 39.1 ओवर में 6 विकेट पर 185 रन बनाकर मैच जीतने में कामयाब रहा। 
 
भारतीय टीम जब हारती है तो आलोचनाओं के कोड़े सबसे ज्यादा कप्तान धोनी की पीठ पर ही बरसाए जाते हैं और जब वह जीत की लय में आ जाती है तो यही कोड़े बरसाने वाले उन पर फूलों की बारिश करने से पीछे नहीं रहते। याद कीजिये, विश्व कप से ठीक पहले ऑस्ट्रेलिया में हुई त्रिकोणीय सीरीज को, जिसमें भारत एक भी मैच नहीं जीत सका था और सट्‍टेबाज मौजूदा विश्व चैम्पियन को चौथे नंबर पर रखकर सट्‍टा खा रहे थे। 
 
हालांकि विश्व कप लगातार चार जीत के बाद भी सट्‍टेबाजों की नजर में भारत चौथी पायदान पर हैं लेकिन जब क्वार्टर फाइनल शुरू होंगे तब हो सकता है कि भारत ऊपरी क्रम में शुमार हो। इस विश्व कप में धोनी की जो पसंदीदा युवा टीम खेल रही है, उसे देखकर यही लग रहा है कि यह टीम कभी भी, कुछ भी उलटफेर कर सकती है। कब कौनसा खिलाड़ी अपना कमाल दिखा दे, कुछ नहीं कहा जा सकता। 
 
इस विश्व कप में टीम इंडिया के गेंदबाजी आक्रमण में शमी मोहम्मद की भूमिका सबसे निर्णायक रहने जा रही है। इस गेंदबाज ने वेस्टइंडीज के तीन बल्लेबाजों को महज 8 ओवर में 36 रन की कीमत पर पैवेलियन का रास्ता दिखाया। यदि शमी का यही प्रदर्शन आगे भी जारी रहा तो यकीनन धोनी के हाथों में एक बार फिर से चमचमाता विश्व कप होगा। इसके लिए यह भी जरूरी है कि मैच में और कोई बल्लेबाज चले ना चले, धोनी को ही टीम इंडिया के लिए 'नायक' की भूमिका अदा करनी होगी। उनकी कुशल कप्तानी और अनुभव भारत को लगातार दूसरा वर्ल्ड कप दिलवा सकता है... 

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