नई दिल्ली। सचिन तेंदुलकर ने अपने करियर में ढेरों रिकार्ड बनाए और कई उपलब्धियां हासिल की लेकिन संन्यास ले चुके इस महान बल्लेबाज ने आज खुलासा किया कि भारतीय क्रिकेट कप्तान के रूप में लंबा कार्यकाल नहीं मिलने की निराशा से उबरना उनके लिए बहुत मुश्किल था।
तेंदुलकर को अपने 24 साल के चमकदार करियर के दौरान दो बार भारतीय टीम की कप्तानी सौंपी गयी लेकिन वह इसमें खास सफल नहीं रहे। वह पहली बार 1996 में कप्तान बने लेकिन टीम के खराब प्रदर्शन के कारण उन्हें 1997 में इस पद से हटा दिया गया।
तेंदुलकर ने यहां ‘इंडिया टुडे कान्क्लेव’ में कहा, ‘मेरे लिए क्रिकेट व्यक्तिगत नहीं बल्कि टीम खेल है। ऐसा समय आता है जबकि कप्तान अपनी भूमिका निभाता है। वह मैदान पर महत्वपूर्ण फैसले करता है लेकिन आखिर में बल्लेबाजों को ही रन बनाने होते हैं और गेंदबाजों को ही सही क्षेत्र में गेंद करनी पड़ती है।’
उन्होंने कहा, ‘मुझे कप्तानी के पहले कार्यकाल में 12-13 महीने बाद ही पद से हटा दिया गया। यह निराशाजनक था क्योंकि आपको यह सोचकर कप्तान बनाया गया कि आप टीम को आगे बढ़ाएंगे और यदि आपका कार्यकाल लंबा नहीं रहता है तो सफलता की दर शून्य हो जाती है। यदि आप चार मैच खेलते हो और उनमें से दो में जीत दर्ज करते हो तो आपकी सफलता की दर का 50 प्रतिशत ही रहती है।’
तेंदुलकर ने कहा, ‘‘मेरा कार्यकाल लंबा नहीं था और मेरे लिए इस निराशा से उबरना बहुत बड़ी चुनौती थी।’ (भाषा)