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पहली बार भारत खेलेगा सचिन और सनी के बिना वर्ल्डकप

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देवव्रत वाजपेयी

, शनिवार, 7 फ़रवरी 2015 (17:07 IST)
देवव्रत वाजपेयी  
 
विश्व क्रिकेट में दो बल्लेबाजों का नाम बड़े फक्र से लिया जाता है और भविष्य में भी इतने ही फक्र से लिया जाएगा। सौभाग्य से दोनों क्रिकेटर भारत से हैं। दोनों अपने हुनर में लाजवाब हैं, दोनों क्लासिकल बल्लेबाज हैं। एक लिटिल मास्टर के नाम से जाना जाता है तो दूसरा मास्टर ब्लास्टर के नाम से।
दोनों ही अपने क्रिकेट कैरियर के दौरान बॉलरों के छक्के छुड़ाते रहे। उन्होंने अपने करियर के दौरान भारतीय क्रिकेट को इतना प्रभावित किया कि उनका असर आज भी भारतीय क्रिकेट में देखने को मिलता है। सचिन के 2015 विश्वकप के पहले संन्यास लेने से लोगों के क्रिकेट देखने के नजरिए में बड़ा फर्क देखने को मिला है। यह बात तब और खलेगी जब भारत विश्वकप के अपने पहले मैच के लिए अपनी चिर-प्रतिद्वंदी टीम पाकिस्तान से दो-दो हाथ कर रहा होगा।
 
यह पहला विश्वकप होगा जब भारत के दोनों क्रिकेट लीजेंड सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर के बिना विश्वकप खेलेगा। दोनों अपने हुनर में माहिर थे। गावस्कर ने जहां अपने करियर के दौरान चार वर्ल्डकप खेले वहीं तेंदुलकर ने अगले 6 वर्ल्डकप खेले। सबसे अहम बात ये है कि अब तक खेले गए 10 विश्वकप में दो में से एक जाबांज विश्वकप प्रतियोगिता का अंग जरूर रहा।
 
अब तक हुए विश्वकप में भारतीय टीम का भाग्य इन दोनों के भाग्य के चारों ओर घूमता नजर आया। शुरुआत के दो विश्वकप में इंडिया विश्व की टीमों के बीच समुद्र की छोटी मछली साबित हुई। लेकिन इन सब के बावजूद गावस्कर की बैटिंग आकर्षण का केन्द्र रही। 
 
भारत के 1975 के वर्ल्डकप के पहले मैच में इंग्लैंड के विरुद्ध गावस्कर ने 36 रन की पारी खेलने में ही 60 ओवर निकाल दिए थे। बाद में गावस्कर को धीमी बैटिंग के लिए आलोचना भी झेलनी पड़ी थी। 
 
जब भारत ने 1983 के विश्वकप को अपने नाम किया तब गावस्कर आउट फॉर्म चल रहे थे। और जब 1987 के विश्वकप में गावस्कर धड़ाधड़ मैदान पर रन बटोर रहे थे तब भारत सेमीफाइनल से बाहर हो गया। गावस्कर के 1987 के विश्वकप में लगाए गए तेज तर्रार सैकड़े को लोग आज भी याद करते है। गावस्कर ने मात्र 88 गेंदों में यह सैकड़ा लगाया था। 
 
सचिन अपने पूरे क्रिकेट करियर के दौरान स्वाभाविक क्रिकेट खेलने के लिए जाने गए। हालांकि कैरियर की शुरूआत में उन्हें भी क्रिकेट के छोटे फॉर्मेट में अपने आपको स्थापित करने के लिए जूझना पड़ा। लेकिन जब से उन्होंने 1996 में टीम में ओपनिंग करना शुरू की पूरी टीम का प्रदर्शन उनके ही आस-पास नजर आता दिखाई दिया।

कई मैचों में ये भी देखने को मिला की जैसे ही सचिन आउट होते पूरी टीम ताश के पत्तों की तरह ढ़ह जाती। सचिन तेंदुलकर के द्वारा एक विश्वकप में सर्वाधिक रन बनाने का रिकॉर्ड आज भी कोई तोड़ नहीं पाया है।  
 
1996 के विश्वकप में जिस मैच में भारतीय टीम को बाहर का रास्ता देखना पड़ा था उसमें भी ऐसा ही हुआ था। गावस्कर ने जहां अपने तीसरे वर्ल्डकप संस्करण में हाथों में वर्ल्डकप की ट्रॉफी थामी वहीं सचिन को अपने करियर के छठवें संस्करण तक इस स्वर्णिम पल का इंतजार करना पड़ा। और आखिरकार लंबे इंतजार के बाद 2011 में भारत ने विश्वकप अपने नाम किया।
 
तेंदुलकर ने एक बार बताया था कि वे दस साल की उम्र से भारतीय क्रिकेट को देख रहे हैं और तब ही उन्होंने भारतीय टीम में जाने का फैसला कर लिया था। जिसके बाद वे 1987 के विश्वकप में बॉल ब्वाय रहे। इसके मात्र दो साल के बाद वे खुद भारतीय जर्सी में थे। उसके बाद 1992 के विश्वकप में उन्होंने अपने क्रिकेट जीवन का पहला विश्वकप खेला यह विश्वकप ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड में आयोजित किया गया था। गौर करने वाली बात यह है कि अगले कुछ दिनों में इन्हीं देशों में अगला विश्वकप शुरू होने वाला है लेकिन यह लीजेंड इस विश्वकप में नहीं खेलेगा। 
 
1983 के विश्वकप में गावस्कर के लचर प्रदर्शन के चलते उन्हें दो लीग मैचों में टीम से बाहर बिठाया गया था। संयोग से भारत ने दोनों मैच गंवाए। जिसके चलते भारत ने किसी भी मैच में गावस्कर को बाहर नहीं बिठाया। और अंततः भारत ने धमाकेदार विश्वकप में जीत दर्ज की।          

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