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भाजपा ने 2022 में अपना दबदबा बरकरार रखा, विपक्ष में दिखा बिखराव

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, शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022 (23:07 IST)
नई दिल्ली। भाजपा के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को उम्मीद थी कि साल 2022 के दौरान महत्वपूर्ण चुनावी लड़ाइयों में केंद्र की सत्ताधारी पार्टी के समक्ष कई कठिन सवाल खड़े होंगे। हालांकि, साल के अंत में इसके विपरीत भाजपा ने ही विपक्ष के समक्ष कई चुनौतियां पेश कर दी हैं। इतना ही नहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में भी वह अपना दबदबा कायम रखने के मामले में आगे दिख रही है।
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रूप में अपने ‘करिश्माई खेवनहार’ के नेतृत्व में भाजपा लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीतकर, पिछले 5 दशकों में ऐसा करने वाली पहली पार्टी बनने की पुरजोर कोशिशों में जुटी है।
 
वर्ष 1952-71 के बीच लगातार पांच चुनावों में कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया था। पहली तीन जीत उसने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में दर्ज की थी जबकि दो बार इंदिरा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने लगातार सरकार बनाई। वर्ष 2022 की समाप्ति के साथ ही लगातार 3 लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज करने की उपलब्धि हासिल करने की भाजपा की उम्मीदें बढ़ने लग गई हैं।
 
साल 2014 और उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद भाजपा ने इस सिलसिले को उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में भी जारी रखा। दोनों ही राज्यों में भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ जीत हासिल की जबकि विपक्षी खेमा बिखरा हुआ नजर आया और राष्ट्रीय स्तर पर कोई विमर्श खड़ा करने में पिछड़ता दिखा। हालांकि इस दौरान, आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी मजबूत उपस्थिति जरूर दर्ज कराई।
 
वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की अगुवाई में जारी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने भले ही भाजपा से वैचारिक मुकाबले के लिए कांग्रेस में जोश भर दिया है, लेकिन इसका चुनावों में क्या असर होगा, यह देखना अभी बाकी है। हालांकि, अभी तक इसका कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला है।
 
इस वर्ष भाजपा को एकमात्र नुकसान हिमाचल प्रदेश में हुआ, जहां उसे कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवानी पड़ी। हालांकि, यहां हुई हार और जीत का अंतर कुल वोटों के एक प्रतिशत से भी कम था।
 
फरवरी-मार्च में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने चार राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में सत्ता बरकरार रखी, जबकि आम आदमी पार्टी ने पंजाब में जीत हासिल की। पंजाब में अपने दम पर भाजपा कभी भी मजबूत दावेदार के रूप में नहीं उभर सकी है।
 
वर्ष 2014 के बाद से मोदी द्वारा पार्टी के संगठन में कड़े परिश्रम पर बल दिए जाने के चलते संगठन के विस्तार को मजबूती मिली, जिसका फायदा भी पार्टी को मिला है। मार्च में उत्तर प्रदेश और तीन अन्य राज्यों में पार्टी की शानदार जीत के एक दिन बाद मोदी खुद गुजरात में रोड शो कर रहे थे।
 
भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू के रूप में देश का पहला आदिवासी राष्ट्रपति बनाकर भी बढ़त हासिल की। इसी तरह, पार्टी के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने अपने विपक्षी प्रतिद्वंद्वी पर आसानी से जीत हासिल की। धनखड़ राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जाट जाति से ताल्लुक रखते हैं। भाजपा उन्हें ‘किसान पुत्र’ के रूप में पेश कर इस वर्ग में पार्टी के प्रति सामने आई नाराजगी को भी पाटने की कोशिश करती रही है।
 
महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों ने भले ही मतदाताओं के एक वर्ग में रोष पैदा किया हो, लेकिन एक के बाद एक चुनावों से पता चलता है कि ज्यादातर लोग, जिनमें नाखुश मतदाताओं का एक हिस्सा भी शामिल है, भाजपा में अपना भरोसा जताते रहे और बिखरे विपक्ष द्वारा पेश किए गए विकल्प को खारिज कर दिया। इसका स्पष्ट उदाहरण उत्तर प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव में दिखाई दिया।
 
भाजपा, महाराष्ट्र में शिवसेना को तोड़कर वहां की सत्ताधारी महा विकास अघाड़ी सरकार को बाहर करने में भी सफल रही। हालांकि, बिहार में उसने एक प्रमुख सहयोगी के रूप में जनता दल (युनाइटेड) को खो दिया वहीं इस प्रमुख राज्य की सत्ता भी गंवा दी।
 
इस राज्य में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला जद (यू) और राष्ट्रीय जनता दल का साथ आना उसे कठिन चुनौती पेश कर सकता है। हालांकि, पूर्वी राज्य के गोपालगंज और कुढ़नी में सत्तारूढ़ गठबंधन की संयुक्त ताकत के खिलाफ दो विधानसभा उपचुनावों में उसकी जीत ने इसके मजबूत सामाजिक आधार को रेखांकित किया है। साथ ही भविष्य में अकेले दम पर राजनीतिक लड़ाई में अच्छी स्थिति हासिल करने की उसमें उम्मीद भी जगाई है।
 
जैसा कि कहा जाता है, राजनीति में एक सप्ताह का समय भी बहुत होता है और अगले लोकसभा चुनाव में तो अभी भी 15 महीने बचे हैं। नए साल में भी लग रहा है कि एकजुट होने की कोशिश कर रहा विपक्ष, भाजपा के सितारों की चमक के आगे जुगनू ही साबित होगा। (भाषा)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
 
 

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