Year Ender 2024: एक कहावत है 'आप अपने दोस्त तो बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं बदल सकते'। भारत की हमेशा से ही अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध की नीति रही है। लेकिन, हकीकत में देखें तो ज्यादातर पड़ोसियों के साथ किसी न किसी मुद्दे पर मतभेद भी बने हुए हैं, जिससे रिश्तों में खटास भी दिखाई देती है। पाकिस्तान और चीन के साथ तो भारत के रिश्ते लंबे समय से तनावपूर्ण हैं, लेकिन बांग्लादेश और मालदीव जो कभी भारत के बहुत करीबी रहे हैं, 2024 में उनके साथ भी संबंधों में तनाव देखने को मिला। चीन कभी नेपाल तो कभी श्रीलंका में दखल देकर भारत को घेरने की कोशिश करता रहा है, अब उसका अगला निशाना बांग्लादेश हो सकता है। क्योंकि शेख हसीना के रहते उसे अपने मंसूबों में सफलता नहीं मिली थी। अमेरिका समेत यूरोपीय देशों से भी भारत को चुनौतियां मिल रही हैं।
बांग्लादेश के साथ रिश्ते सबसे बुरे दौर में : भारत को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से बेदखल कर दिया है। हसीना भागकर भारत आ गईं, लेकिन इसके बाद बांग्लादेश में धीरे-धीरे भारत विरोधी अभियान शुरू हो गया। वहां रह रहे हिन्दू और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले शुरू हो गए। वहां की अंतरिम सरकार भारत के धुर विरोधी पाकिस्तान से करीबियां बढ़ाने लगी।
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ढाका यूनिवर्सिटी के पूर्व डीन प्रोफेसर शाहिदुज्जमां ने तो एक कार्यक्रम में भारत को बांग्लादेश और पाकिस्तान का साझा दुश्मन करार दिया। इतना ही नहीं प्रोफेसर ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में अलगाववादी समूहों को समर्थन देने की बात भी कह दी। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भी बांग्लादेश का दौरा कर वहां की सरकार से अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को लेकर चिंता व्यक्त की, वहीं बांग्लादेश ने शेख हसीना के भाषणों पर आपत्ति जताई। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि बांग्लादेश का झुकाव पाकिस्तान की ओर बढ़ता है, जिसकी संभावना फिलहाल ज्यादा दिखाई दे रही है, तो यह भारत के हित में कतई नहीं होगा। निकट भविष्य में चीन में बांग्लादेश में दखल दे सकता है।
मालदीव से भी बिगड़े संबंध : मालदीव में वर्ष 2023 के अंत में मोहम्मद मोइज्जु के सत्ता में आने के बाद 2024 में इस देश से भारत के रिश्तों में काफी तनाव आया। भारत 1965 में मालदीव की स्वतंत्रता के बाद उसको मान्यता देने और उसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले प्रारंभिक देशों में से एक रहा है। लेकिन, मोइज्जु द्वारा 'इंडिया-आउट' अभियान चलाए जाने और उनके चीन के साथ संबंधों को गहरा करने के कारण तनाव बढ़ गया।
इसके साथ ही, मालदीव के मंत्रियों द्वारा लक्षद्वीप के द्वीपों और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपमान करने की घटनाओं दोनों देशों के बीच तनाव और गहरा गया। तनाव इतना बढ़ा कि भारत के नागरिकों ने मालदीव में छुट्टियां मनाने का बहिष्कार किया। कई प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेताओं और हस्तियों ने मालदीव सरकार की आलोचना की। हालांकि बाद में मोइज्जु की भारत यात्रा के बाद दोनों देशों के संबंधों में काफी सुधार आया है।
कनाडा से बढ़ीं दूरियां : यह साल कनाडा के साथ सबसे खराब रिश्तों के लिए भी याद रखा जाएगा। भारत में जी-20 बैठक के बाद कनाडा की ट्रूडो सरकार ने भारत पर एक कनाडाई सिख कार्यकर्ता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या करने का आरोप लगाया। निज्जर खालिस्तान समर्थक था। इस दौरान ट्रूडो सरकार का झुकाव खालिस्तानी समर्थकों की ओर ज्यादा दिखाई दिया। हालांकि कनाडा निज्जर हत्याकांड का कोई सबूत नहीं पेश कर सका।
कनाडा में मंदिरों पर भी हमलों की घटनाएं भी बढ़ीं, भारत ने लगातार इन घटनाओं का विरोध दर्ज कराया। इन घटनाओं से तनाव इतना बढ़ा कि भारत ने कनाडा के 6 राजनयिकों को निष्कासित कर दिया साथ ही अपने राजनयिकों को बुलाने का फैसला किया। दरअसल, दोनों ही देश राष्ट्रमंडल के सदस्य देश हैं और दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के समूह G20 का हिस्सा हैं। 2023 में, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 9.36 बिलियन डॉलर का था, जिसमें कनाडा को भारत का निर्यात 5.56 बिलियन डॉलर और भारत को कनाडा का निर्यात 3.80 बिलियन डॉलर का था। कनाडा से बिगड़े संबंधों का असर वहां पढ़ने वाले छात्रों और प्रोफेशनल्स पर पड़ा।
स्विट्जरलैंड ने छीना एमएफएन का दर्जा : सि्वट्जरलैंड से भी भारत के लिए अच्छी खबर नहीं आई। दरअसल, सि्वट्जरलैंड सरकार ने भारत के लिए सर्वाधिक तरजीही देश का प्रावधान निलंबित कर दिया। इस कदम से भारत में स्विस निवेश प्रभावित होने और वहां पर सक्रिय भारतीय कंपनियों पर अधिक कर लगाए जाने की आशंका बढ़ी है। हालांकि भारत की ओर से कहा गया कि स्विट्जरलैंड के फैसले का भारत और ईएफटीए समूह के बीच व्यापार समझौते में जताई गई प्रतिबद्धताओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) के सदस्यों में आइसलैंड, लीकटेंस्टीन और नॉर्वे भी शामिल हैं। स्विट्जरलैंड इस समूह में शामिल देशों में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत के साथ मार्च में हुए व्यापार समझौते के तहत ईएफटीए देशों ने 100 अरब डॉलर की निवेश प्रतिबद्धता जताई थी।
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नेपाल के साथ जारी है विवाद : लिपुलेख दर्रे को लेकर भारत और नेपाल के बीच विवाद खत्म नहीं हुआ है। यह दर्रा नेपाल, भारत और चीन को जोड़ता है। नेपाल दावा करता है कि 1816 की सुगौली संधि के अनुसार लिपुलेख दर्रा उसके इलाके में पड़ता है। बताया जा रहा है कि चीन ने तिब्बत से लगी नेपाल सीमा पर कई जगह अतिक्रमण कर लिया है। वहां निर्माण भी कर लिए। इसे भारत के हित में नहीं माना जा सकता। भारत के भी चीन के साथ सीमा विवाद लंबे समय से चल रहे हैं। हालांकि हाल ही में हुए समझौते के बाद दोनों देश लद्दाख इलाके में अपनी-अपनी सेनाओं को पीछे हटाने पर सहमत हुए हैं। साथ दोनों ने ही सामूहिक गश्त पर सहमति व्यकत की है। डोकलाम को लेकर भी चीन के साथ विवाद बना हुआ है।
श्रीलंका से निकटता बढ़ी : हाल के वर्षों में श्रीलंका की भी चीन से निकटता बढ़ी है। चीन ने हंबनटोटा पोर्ट के लिए श्रीलंका को 1.5 अरब डॉलर का कर्ज दिया था। अगस्त 2022 में चीन के जासूसी जहाज युआन वांग 5 श्रीलंका पहुंचा था। जिस पर भारत ने आपत्ति भी जताई थी। श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके का भारत दौरे के बाद दोनों देशों में निकटता आई है। दिसानायके ने पहली विदेश यात्रा के लिए चीन को नहीं बल्कि भारत को चुना है। लेकिन, भारत को फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा क्योंकि चीन ने हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल की लीज पर ले लिया है।
ट्रंप ने बढ़ाई भारत की उम्मीदें : अमेरिका में जरूर ट्रंप की वापसी से भारत की उम्मीदें बढ़ गई हैं, दोनों देश एक बार फिर काफी करीब आ सकते हैं। ट्रंप की ताजपोशी और जो वाइडेन की विदाई बेला में भारत ने अमेरिकी डीप स्टेट पर हमला किया है। भारत ने ऐसा करके ट्रंप के रुख का ही समर्थन किया है। क्योंकि ट्रंप भी अमेरिका का डीप स्टेट पर लगातार हमले करते हैं। सरकारी नीति को प्रभावित करने वाले अपरिभाषित, भयान और रहस्यमय राष्ट्रस्तरीय गुप्त नेटवर्क को 'डीप स्टेट' कहा जाता है। भाजपा ने अमेरिकी विदेश विभाग पर आरोप लगाया है कि वह इस षड्यंत्रकारी नेटवर्क का नेतृत्व कर रहा है।
भारत के लिए चुनौतियां भी कम नहीं : भारतीय विदेश नीति के लिए निश्चित ही ये सभी बातें काफी चुनौतीपूर्ण साबित होंगी। जनवरी 2025 में अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की राष्ट्रपति पद पर ताजपोशी के बाद दुनिया की नीति में काफी बदलाव देखने को मिल सकता है। हालांकि इसके संकेत अभी से मिलने शुरू हो गए हैं। ट्रूडो के प्रति ट्रंप का सख्त रुख भारत के हित में हो सकता है। यदि रूस और यूक्रेन का युद्ध रुकता है तो यह दुनिया के हित में हो सकता है। हालांकि ट्रंप पर भारत आंख मीचकर भरोसा नहीं कर सकता क्योंकि वे वही करेंगे जो अमेरिका का हित में होगा। भारत के हितों को नजरअंदाज करना भी पड़ा तो वे पीछे नहीं हटेंगे।