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उपवास शक्ति सिद्धि योगा

हमें फॉलो करें उपवास शक्ति सिद्धि योगा

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

, मंगलवार, 3 मई 2011 (15:47 IST)
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योग में अष्टसिद्धियों के अलावा अन्य कई प्रकार की सिद्धियों का वर्णन किया गया है उनमें से एक है- उपवास शक्ति सिद्धि योग। उपवास को हम यहां अनाहार के अर्थ में लेते हैं। उपवास शक्ति सिद्धि योग से व्यक्ति कई-कई महीनों तक भूख और प्यास से मुक्त रह सकता है।

*उपवास योगा की विधी : कंठ के कूप में संयम करने पर भूख और प्यास की निवृत्ति हो जाती है। यह उपवास योगा का महत्वपूर्ण सूत्र है। कंठ की कूर्मनाड़ी में संयम करने पर स्थिरता व अनाहार सिद्धि होती है। कंठ कूप में कच्छप आकृति की एक नाड़ी है। उसको कूर्मनाड़ी कहते हैं। कंठ के छिद्र जिसके माध्यम से पेट में वायु और आहार आदि जाते हैं उसे कंठकूप कहते हैं। कंठ के इस कूप और नाड़ी के कारण ही भूख और प्यास का अहसास होता है।

इस कंठ के कूप में संयम प्राप्त करने के लिए शुरुआत में प्रतिदिन प्राणायाम और भौतिक उपवास का अभ्यास करना जरूरी है। इसके लिए निम्निलिखित उपवास के बारे में जानें और प्राणायाम के संबंध में पिछले आलेखों को पढ़ें।

उपवास के प्रकार- 1.प्रात: उपवास 2.अद्धोपवास 3.एकाहारोपवास 4.रसोपवास 5.फलोपवास 6.दुग्धोपवास 7.तक्रोपवास 8.पूर्णोपवास 9.साप्ताहिक उपवास 10.लघु उपवास 11.कठोर उपवास 12.टूटे उपवास 13. दीर्घ उपवास।

1.प्रत: उपवास- इस उपवास में सिर्फ सुबह का नाश्ता नहीं करना होता है और पूरे दिन और रात में सिर्फ 2 बार ही भोजन करना होता है।
2.अद्धोपवास- इस उपवास को शाम का उपवास भी कहा जाता है और इस उपवास में सिर्फ पूरे दिन में एक ही बार भोजन करना होता है। इस उपवास के दौरान रात का भोजन नहीं खाया जाता।
3.एकाहारोपवास- एकाहारोपवास में एक के भोजन में सिर्फ एक ही चीज खाई जाती है जैसे- सुबह के समय अगर रोटी खाई जाए तो शाम को सिर्फ सब्जी खाई जाती है। दूसरे दिन सुबह को एक तरह का कोई फल और शाम को सिर्फ दूध आदि।
4.रसोपवास- इस उपवास में अन्न तथा फल जैसे ज्यादा भारी पदार्थ नहीं खाए जाते। सिर्फ रसदार फलों के रस अथवा साग-सब्जियों के जूस पर ही रहा जाता है। दूध पीना भी मना होता है, क्योंकि दूध की गणना भी ठोस पदार्थों में की जा सकती हैं।
5.फलोपवास- कुछ दिनों तक सिर्फ रसदार फलों या भाजी आदि पर रहना फलोपवास कहलाता है। अगर फल बिल्कुल ही अनुकूल ना पड़ते हो तो सिर्फ पकी हुई साग-सब्जियाँ खानी चाहिए।
6.दुग्धोपवास- दुग्धोपवास को 'दुग्धकल्प' के नाम से भी जाना जाता है। इस उपवास में सिर्फ कुछ दिनों तक दिन में 4-5 बार सिर्फ दूध ही पीना होता है।
7.तक्रोपवास- तक्रोपवास को 'मठाकल्प' भी कहा जाता है। इस उपवास में जो मठा लिया जाए, उसमें घी कम होना चाहिए और वो खट्टा भी कम ही होना चाहिए। इस उपवास को कम से कम 2 महीने तक आराम से किया जा सकता है।
8.पूर्णोपवास- बिल्कुल साफ-सुथरे ताजे पानी के अलावा किसी और चीज को बिल्कुल ना खाना पूर्णोपवास कहलाता है। इस उपवास में उपवास से सम्बंधित बहुत सारे नियमों का पालन करना होता है।
9.साप्ताहिक उपवास- पूरे सप्ताह में सिर्फ एक पूर्णोपवास नियम से करना साप्ताहिक उपवास कहलाता है।
10.लघु उपवास- 3 दिन से लेकर 7 दिनों तक के पूर्णोपवास को लघु उपवास कहते हैं।
11. कठोर उपवास- जिन लोगों को बहुत भयानक रोग होते हैं ये उपवास उनके लिए बहुत लाभकारी होता है। इस उपवास में पूर्णपवास के सारे नियमों को सख्ती से निभाना पड़ता है।
12.टूटे उपवास- इस उपवास में 2 से 7 दिनों तक पूर्णोपवास करने के बाद कुछ दिनों तक हल्के प्राकृतिक भोजन पर रहकर दोबारा उतने ही दिनों का उपवास करना होता है। उपवास रखने का और हल्का भोजन करने का ये क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि इस उपवास को करने का मकसद पूरा न हो जाए।
13.दीर्घ उपवास- दीर्घ उपवास में पूर्णोपवास बहुत दिनों तक करना होता है, जिसके लिए कोई निश्चित समय पहले से ही निर्धारित नही होता। इसमे 21 से लेकर 50-60 दिन भी लग सकते हैं। अक्सर ये उपवास तभी तोड़ा जाता है, जब स्वाभाविक भूख लगने लगती है अथवा शरीर के सारे जहरीले पदार्थ पचने के बाद जब शरीर के जरूरी अवयवों के पचने की नौबत आ जाने की संभावना हो जाती है।

*सावधानी : उक्त सभी उपवास का लक्ष्य शरीर के अलग-अलग भागों में इकट्ठे हुए जहरीले पदार्थों को बाहर निकाल कर मन और शरीर को मजबूत करने से है। कुछ लोग उपवास किसी सिद्धि को प्राप्त करने के लिए करते हैं तो कुछ लोग कठित तप, साधना और मोक्ष के लिए करते हैं।

प्रत्येक उपवास अलग-अलग मकसद के लिए किया जाता है और सभी के लाभ भी अलग-अलग होते हैं। आम जनता को उपवास के महत्व और मकसद को समझकर ही उपवास करना चाहिए। बिना तैयारी किए तथा बिना उपवास के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त किए उक्त उपवास नहीं करना चाहिए।

*उपवास योगा का लाभ : किसी भी प्रकार का गंभीर रोग इस योग द्वारा समाप्त किया जा सकता है। शरीर सहित मन और मस्तिष्क को हमेशा संतुलित और स्वस्थ बनाए रखा जा सकता है। इससे व्यक्ति की आयु बढ़ती है तथा व्यक्ति जीतेंद्रिय कहलाता है।

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