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दिव्य श्रवण शक्ति योगा

सुनने पर ज्यादा ध्यान दें

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

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दिव्य श्रवण शक्ति योग से हम दूर से दूर, पास से पास और धीमी से धीमी आवाज को आसानी से सुन और समझ पाते हैं। वह ध्वनि या आवाज किसी भी पशु, पक्षी या अन्य भाषी लोगों की हो, तो भी हम उसके अर्थ निकालने में सक्षम हो सकते हैं। अर्थात हम पशु-पाक्षियों की भाषा भी समझ सकते हैं।

हमारे कानों की क्षमता अपार है, लेकिन हम सिर्फ वही सुन पाते हैं जो हमारे आस-पास घटित हो रहा है या दूर से जिसकी आवाज जोर से आ रही है। अर्थात ना तो हम कम से कम आवाज को सुन पाते हैं और ना ही अत्यधिक तेज आवाज को सहन कर पाते हैं।

दूसरी बात कि हम जो भी सुन रहे हैं यदि वह हमारी भाषा से मेल खाता है तो ही हम उसे या उसके अर्थ को समझ पाते हैं, जैसे यदि आपको तमिल नहीं आती है तो आपके लिए उनका भाषण सिर्फ एक ध्वनि मात्र है। दूसरी ओर ब्रह्मांड से धरती पर बहुत सारी आवाजें आती हैं, लेकिन हमारा कान उन्हें नहीं सुन पाता।

॥श्रोत्राकाशयो: संबन्धंसंयमाद्दिव्य सोत्रम्॥3/40॥
समस्त स्रोत और शब्दों को आकाश ग्रहण कर लेता है, वे सारी ध्वनियां आकाश में विद्यमान हैं। कर्ण-इंद्रियां और आकाश के संबंध पर संयम करने से योगी दिव्य श्रवण को प्राप्त होता है।

कानों पर संयम : आकाश को समझे जो सभी तरह की ध्वनि को ग्रहण करने की क्षमता रखता है। आपका मन आकाश की भांति होना चाहिए। कानों पर संयम करने से साधक को दिव्य श्रवण की शक्ति प्राप्त होती है। जाग्रत अवस्था में कानों को स्वत: ही बंद करने की क्षमता व्यक्ति के पास नहीं है। जब व्यक्ति सो जाता है तभी उसके कान बाहरी आवाजों के प्रति शून्य हो जाते हैं।

इससे यह सिद्ध हुआ की कान भी स्वत: बंद हो जाते हैं, लेकिन इन्हें जानबूझकर बगैर कानों में अंगुली डाले बंद कर बाहरी आवाज के प्रति ध्वनि शून्य कर देना ही कानों पर संयम करना है। कानों पर संयम करने से ही व्यक्ति दिव्य श्रवण की शक्ति को प्राप्त कर सकता है।

कैसे होगा कानों पर संयम : धारणा और ध्यान के माध्यम से कानों पर संयम प्राप्त किया जा सकता है। धारणा से चित्त में एकाग्रता आती है और ध्यान से पांचों इंद्रियों में संयम प्राप्त होता है। श्रवण क्षमता बढ़ाने के लिए ध्यान से सुनने पर ध्यान देना चाहिए। कहने या बोलने से ज्यादा सुनना महत्वपूर्ण होता है। श्रवणों का धर्म मानता है कि सुनने से ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

सीधा सा योग सूत्र है कि जब तक आप बोल रहे हैं तब तक दूसरों की नहीं सुन सकते। मन के बंद करने से ही दूसरों के मन सुनाई देंगे।

शुरुआत : किसी सुगंधित वातावण में मौन ध्यान के साथ अच्छा संगीत सुनने का अभ्यास करें। रात में मन को ज्यादा से ज्यादा शांत रखकर दूर से आ रही ध्वनि या पास के किसी झिंगुर की आवाज पर चित्त को एकाग्र करें। आवाजों का विश्लेषण करना सिखें। हमारे आस-पास असंख्‍य आवाजों का जाल बिछा हुआ है, लेकिन उनमें से हम 20 से 30 प्रतिशत ही आवाज इसलिए सुन पाते हैं क्योंकि उन्हीं पर हमारा ध्यान होता है, हमें यातायात के शोर में चिड़ियों की आवाज नहीं सुनाई देती।

इसका लाभ : इसका सांसारिक लाभ यह कि सुनने की शक्ति पर लगातार ध्यान देने से व्यक्ति को बढ़ती उम्र के साथ श्रवण दोष का सामना नहीं करना पड़ता, अर्थात बुढ़ापे तक भी सुनने की क्षमता बरकरार रहती है।

इसका आध्यात्मिक लाभ यह कि व्यक्ति दूसरे की भाषा को ग्रहण कर उसके अर्थ निकालने में तो सक्षम हो ही जाता है साथ ही वह अनंत दूर तक की आवाज को भी आसानी से सुन सकता है और चिंटी की आवाज को भी सुनने में सक्षम हो जाता है। यह कहना नहीं चाहिए कि सिर के बालों के धरती पर गिरने की आवाज भी सुनी जा सकती है।

॥शब्दार्थप्रत्ययानामितरेतराध्यासात्संकरस्तत् प्रविभागसंयमात्सर्वभूतरूपतज्ञानम्।...तत: प्रातिभ श्रावणवेदनादर्षास्वादवात्तर् जायन्ते॥ 3/ 17-3/35॥

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