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रेकी : प्रशिक्षण एवं उर्जा का रूपांतरण-2

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, शनिवार, 29 जनवरी 2011 (13:16 IST)
- मधुकर अयाचित
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रेकी के माध्यम से हम मानव अस्तित्व में व्याप्त उर्जा को न सिर्फ नियंत्रित कर सकते हैं बल्कि रेकी हमारे शरीर, मस्तिष्क, भावनाओ एवं आध्यात्मिक स्तर पर भी सकारात्मक असर डालती है। रेकी द्वारा सर्वव्यापी एवं सार्वभौमिक प्राण शक्ति को वैक्तिक विकास के लिए प्रयोग किया जाता है जो कि वास्तव में व्यक्ति में जन्म से ही विद्यमान होती है परन्तु प्रायः हम उसके प्रति अनिभिज्ञ रहते हैं।

रेकी प्रशिक्षण के पहले चरण में हम इस सार्वभौमिक उर्जा के प्रति जागरूक होते हैं, रेकी प्रशिक्षण का प्रारंभ प्रशिक्षु की स्वैच्छिक स्वीकृति से होता है ऐसा माना जाता है की हम रेकी को नहीं बल्कि रेकी हमे चुनती है।

*शक्तिपात : यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विधि है जिसमें रेकी प्रशिक्षक साधक को रेकी की दीक्षा देता है। इस प्रक्रिया में साधक का स्थाई रूप से सार्वभौमिक उर्जा के साथ सामंजस्य स्थापित किया जाता है साधक के लिए यह अत्यंत ही गुप्त एवं अवर्णनीय अनुभव होता है जो कि किसी भी रेकी साधक के लिए अनिवार्य है शक्तिपात की प्रक्रिया के बाद ही कोई व्यक्ति अधिकारिक रूप से रेकी उर्जा का संचरण कर सकता है।

*प्रथम चरण : यह 14-16 घंटे की प्रशिक्षण प्रक्रिया है जिसमे प्रशिक्षु को रेकी की सैधांतिक एवं व्यवहारिक जानकारी दी जाती है प्रायः यह सम्पूर्ण प्रक्रिया 2 दिनों में की जाती है एवं पूरी प्रक्रिया में प्रशिक्षु पर 4 बार शक्तिपात द्वारा 4 मुख्य चक्रो को रेकी संचरण के लिए तैयार किया जाता है ताकि सार्वभौमिक उर्जा का प्रवाह प्रथम चारो चक्रो एवं दोनों हाथों के माध्यम से होते हुए हथेली द्वारा प्रवाहित होने के लिए तैयार हो जाए। प्रथम स्तर के प्रशिक्षण के बाद साधक अपने हथेलियों के स्पर्श से रेकी देना शुरू कर सकता है।

*द्वितीय चरण : इस प्रशिक्षण में भी लगभग 2 दिनों का समय लगता है परन्तु द्वितीय चरण में साधक कुछ गुप्त रेकी चिन्हों का प्रयोग करके सार्वभौमिक उर्जा के उच्च स्तर पर काम करता है उर्जा का यह स्तर समय एवं दूरी का एक अलग ही आयाम है जहाँ साधक बिना स्पर्श के सिर्फ शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक एवं भावनात्मक विश्रांति या संतुलन स्थापित कर सकता है।

*तृतीय चरण, रेकी मास्टर, ग्रांड मास्टर : रेकी के प्रथम दो चरण पूर्णरूप से आम आदमी के दैनिक प्रयोग के लिए अति उपयोगी है जिनके द्वारा व्यक्ति अपनी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं अध्यात्मिक कार्यकुशलता में भी वृद्धि कर सकता है और जरूरत पड़ने पर दूसरो की मदद भी कर सकता है।

रेकी का तृतीय चरण रेकी की एक अलग ही अध्यात्मिक धारा की शुरुआत है जहाँ से साधक को रेकी में दक्ष होकर समाज के दूसरे लोगो तक रेकी का प्रचार-प्रसार एवं प्रशिक्षण का कार्यभार संभालना होता है जो आगे चलकर रेकी मास्टर और उसके बाद ग्रांड मास्टर के रूप में जाना जाता है।

रेकी : स्पर्श द्वारा ऊर्जा का संतुलन-1

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