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लिंग मुद्रा

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

लिंग या अँगुष्ठ मुद्रा पुरुषत्व का प्रतीक है इसीलिए इसे लिंग मुद्रा कहा जाता है।

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विधि : दोनों हाथों की सभी अँगुलियों को एक-दूसरे से मिलाकर ग्रीप बनाएँ तथा अंदर छूट गए अँगूठे को दूसरे अँगूठे से पकड़ते हुए सीधा तान दें। इससे शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है।

लाभ : यह छाती की जलन और कफ को दूर करती है। यह मुद्रा बलगम को रोककर फेफड़ों को शक्ति प्रदान करती है। व्यक्ति में स्फूर्ति और उत्साह का संचार करती है। अवांछित कैलोरी को हटाकर मोटापे को कम करने में भी यह लाभदायक है।

सावधानी : इसी मुद्रा को योग शिक्षक से जानकर ही करें। इस मुद्रा को तभी करें जबकि इसकी आवश्यकता हो। इस मुद्रा को करने के बाद पानी पीना चाहिए।

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पृथ्वी मुद्रा
वरुण और वायु मुद्रा
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