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शांति की तलाश

'चित्त' को स्थिर करो 'शांति' मिलेगी

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः (योगसूत्र, अध्याय-1, श्लोक-2) अर्थात चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है

समाज में ज्यादातर लोग भागदौड़ से भरा जीवन जीते हैं मगर उनमें से कुछ के चेहरे पर शांति झलकती है तो कुछ पर नहीं। कुछ के चेहरों पर तो हमेशा ही अशांति तैरती रहती है। आखिर ऐसा क्यूँ? आइए, सबसे पहले यह जानें क‍ि अशांति होती क्या है...

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जब हम मानसिक या शारीरिक रूप से थक जाते हैं तो शरीर और मन निढाल हो जाता है। कई दफे शरीर थका होता है, लेकिन मन नहीं, ठीक इसके विपरीत भी होता है। रोग या शोक में भी प्रकृति हमें शांत कर देती है। फिर प्रकृति मुकम्मल तौर पर भी 'शांत' कर देती है। जब कोई मर जाता है तो हम कहते हैं कि वह 'शांत' हो गया। आखिर ऐसा क्यूँ? इसका मतलब कि वह अशांत था?

क्या होती है अशांति : बेचैनी या अशांति का कारण व्यक्ति का 'मन' होता है। मन का कारण विचार है, विचार का कारण जो हम देख-सुन रहे हैं वह है, अर्थात अशांति बाहर से भीतर मन में प्रवेश करती है। मन की व्यापकता को 'चित्त' कहते हैं।

प्रकृति रोज हमें सुलाती इसलिए है कि इस 'चित्त' को कुछ समय के लिए शांत कर दिया जाए, ताकि वह फिर से देख, सुन और समझने की क्षमता हासिल कर ले, वरना हर व्यक्ति पागल होता। पागल के चित्त की गति तेज होती है। जो लोग ज्यादा बेचैन हैं उनके चित्त की गति भी तेज होती है, उनमें वाचलता और चालाकी के अलावा कुछ नहीं होता। इन चित्त वृत्तियों के निरोध को ही योग कहते हैं।

क्या है चित्त : जब हम कोई चीज देखते हैं या सुनते हैं तब उसका असर मन और मस्तिष्क पर पड़ता है। इस देखने और सुनने के बीच वातावरण या हमारे मन की पूर्व दशा-दिशा होती है, जिससे जो देखा जा रहा है वह बहुत हद तक परिवर्तित रूप में मन और मस्तिष्क ग्रहण करता है। फिर उसका कुछ लोग विश्‍लेषण करते हैं और कुछ लोग तुरंत प्रतिक्रिया करने में उत्सुक हो जाते हैं।

खैर, पाँचों इंद्रियों से जो भी ग्रहण किया गया है, उसका मन और मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है। उस प्रभाव से ही 'चित्त' निर्मित होता है और निरंतर परिवर्तित होने वाला होता है। जैसे कि एक स्थान पर कई कोण से प्रकाश डाला जाए और तब उस स्थान पर जो चीज पैदा होगी, उसे हम 'चित्त' मान लें।

कैसे हों शांत : जब हम चुप होते हैं तो उसे हम अपनी उदासी न समझें। चुप्पी स्वत: ही घटित होती है, उसका आनंद लें। आँखें मूँदकर गहरी साँस लें। सुबह और शाम पाँच मिनट का ध्यान करें। हर तरह की बहस व्यर्थ होती है यह जान लें। क्रोध करने की आदत बन जाती है, इसे समझें। इसी तरह अशांत और बेचैन रहने की भी आदत होती है।

शारीरिक शांति : स्वयं के शरीर का सम्मान करें। स्वयं के शरीर से प्रेम करना और उससे संवाद स्थापित करना सीखें। उस पर मन की बुरी आदतें न थोपें। उसकी सेहत का ध्यान रखें। पवित्रता बनाए रखने से शरीर शांत रहता है। यम, नियम, आसन और प्राणायाम के हलके से प्रयास से ही शरीर को शांति मिलती है।

मन की शांति : मन को शांत रखने के लिए प्राणायम का अभ्यास करें। मानसिक द्वंद्व मन को अशांत करते हैं। मन की अशांति का कारण शरीर की सेहत खराब होना भी है। अंतत: अंग संचालन, शवासन, भ्रामरी प्राणायाम और विपश्यना ध्यान करें।

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