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सिद्धि प्राप्त करने का स्थान

हठयोग का कहाँ करें अभ्यास?

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

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हठयोग की साधना कर रहे हैं तो जरा रुकें, हमारी भी सुनें। कहते हैं कि हठयोग सिद्धियों का आधार है। दरअसल यह मोक्ष या सिद्ध‍ि तक पहुँचने का शॉर्टकट है। अधिकतर हठयोगी हठयोग का प्रदर्शन करते हुए पाए जाएँगे, लेकिन यह सिर्फ सस्ती लोकप्रियता के लिए, जो सचमुच ही मोक्ष या सिद्धियों में उत्सुक है वह कभी भी अपने आसनों या प्राणायाम का प्रदर्शन नहीं करेगा, जमीन के अंदर समाध‍ि लगाकर नहीं बैठेगा।

गर्मी से त्रस्त व्यक्ति को जैसे एक पेड़ की छाँव या शीतल कुटिया का आश्रय राहत देता है, उसी प्रकार सांसारिक झंझटों से पीड़ित व त्रस्त वैरागी के लिए सिद्ध योगियों ने हठयोग को आश्रय माना है। दिखावे या संसार में रहने से हठयोग की साधना में बाधा पहुँचने की निश्चित संभावना बनी रहती है। यानी दिनभर चले फिर भी अढाई कोस। अब जानें क‍ि कैसा हो सिद्ध‍ि प्राप्त करने का स्थान।

साधना स्थल : यदि आप गृहस्थ आश्रम भोग चुके हैं और अब हठयोग की साधना करना चाहते हैं तो जहाँ तक संभव हो शहर के शोरगुल से दूर प्राकृतिक संपदा से भरपूर ऐसे माहौल में रहें, जहाँ धार्मिक मनोवृत्ति वाले लोग हों और वहाँ अन्न, जल, फल, मूल आदि से परिपूर्ण व्यवस्था हो। यही आपकी उचित साधनास्थली है। इस तरह के एकांत स्थान का चयन कर वहाँ एक छोटी-सी कुटिया का निर्माण करें।

कैसी हो कुटिया : ध्यान रखें कि कुटिया के चारों ओर पत्थर, अग्नि या जल न हो। उसके लिए अलग स्थान नियु‍क्त करें। कुटी का द्वार छोटा हो, दीवारों में कहीं तीड़ या छेद न हो, जमीन में कहीं बिल न हो जिससे चूहे या साँप आदि का खतरा बढ़े। कुटिया की जमीन समतल हो, गोबर से भली प्रकार लिपी-पुती हो, कुटिया को अत्यंत पवित्र रखें अर्थात वहाँ कीड़े-मकोड़े नहीं हों।

कुटिया के बाहर एक छोटा-सा मंडप बनाएँ जिसके नीचे हवन करने के लिए उसमें वेदी हो जहाँ चाहें तो धूना जलाकर रख सकते हैं। पास में ही एक अच्छा कुआँ या कुंडी हो, जिसकी पाल दीवारों से घिरी हो। कुआँ नहीं हो तो इस बात का ध्यान रखें क‍ि आपको पानी लाने के लिए किसी प्रकार की मेहनत न करना पड़े और पानी साफ-सुथरा हो।

सिद्धों की वाणी : सिद्ध हठयोगियों ने ऐसी ही साधनास्थली एवं कुटी को अभ्यास के लिए उचित बताया है। ऐसी कुटी में सभी चिंताओं से मुक्त होकर गुरु के निर्देशानुसार योग का निरंतर अभ्यास करने से व्यक्ति सिद्धों के मार्ग पर आ जाता है, जिसकी चिंता फिर सिद्ध ही करते हैं।

अंतत:- अतः जो साधक जिस प्रकार के स्थान में रहता हो, वहाँ भी यथासंभव एकांत प्राप्त कर अभ्यास में सफलता प्राप्त कर सकता है, परंतु हठयोगियों का अनुभव है कि पवित्र वातावरण ही साधना को आगे बढ़ाने और शीघ्र सफलता प्राप्त कराने में काफी अधिक सहायक सिद्ध होता है।

फिर भी यदि तीव्र मुमुक्षा हो तो ऐसे स्थान आदि की व्यवस्था करना आज के युग में भी असंभव नहीं।

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