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सूर्य भेदन प्राणायाम

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

इसमें पूरक दायीं नासिका से करते हैं। दायीं नासिका सूर्य नाड़ी से जुड़ी मानी गई है। इसे ही सूर्य स्वर कहते हैं। इस कारण इसका नाम सूर्य भेदन प्राणायाम है।

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विधि : किसी भी सुखासन में बैठकर मेरुदंड सीधा रखते हुए दाएँ से प्रणव मुद्रा बनाते हैं और अँगुली को रखते हैं दायीं नासिका पर, फिर बायीं नासिका बंद कर दायीं नासिका से पेट और सीना फुलाते हुई पूरक क्रिया करते हैं। यथाशक्ति कुम्भक करने के बाद बंद हटाकर बायीं नासिका से रेचक करते हैं।

इसमें प्रारम्भ में पूरक, रेचक और कुम्भक एक, चार और दो रशों में करते हैं। बाद में धीरे-धीरे बढ़ाकर पूरक-15, कुम्भक-60 और रेचक-30 रशों में करें। रशों अर्थात जितनी भी देर भी आप पूरक करते हैं उससे दो रेचक और चार गुना कुम्भक करें।

सावधा‍नी : पूरक करते समय पेट और सीने को ज्यादा न फुलाएँ। श्वास पर नियंत्रण रखकर ही पूरक क्रिया करें। पूरक-रेचक करते समय श्वास-प्रश्वास की आवाज नहीं आनी चाहिए। प्राणायाम बंद कमरे में न करें और न ही पंखे में। प्राणायाम के अभ्यास के लिए साफ-सुथरे वातावरण की जगह होना चाहिए।

लाभ : सूर्यभेदन प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर के अंदर गर्मी उत्पन्न होती है। सर्दियों के दिनों में इस प्राणायाम का अभ्यास किया जाए जो कफ संबंधी रोगों में यह लाभदायक है। नजला, खाँसी, दमा, साइनस, लंग्स, हृदय और पाइल्स के लिए भी यह प्राणायाम लाभदायक है। इसके अभ्यास से मन शांत होता है तथा मस्तिष्क से तंद्रा दूर होती है। यह सकारात्मक विचारों का संचार करने में सहयोगी है। खासकर इससे सेक्स ऊर्जा को सही आयाम मिलता है।

अनुलोम-विलोम
नाड़ी शोधन प्राणायाम

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