योग सूत्र के विभूतिपाद में अष्ट सिद्धियों के अलावा अनेकों अन्य सिद्धियों का वर्णन मिलता है। उन्हीं में से एक है कर्म सिद्धि योग। माना जाता है कि इसे साधने से व्यक्ति को अपनी मृत्यु का पूर्व ज्ञान हो जाता है। यह बहुत ही सामान्य है।
श्लोक : ॥सोपक्रमं निरुपक्रमं च कर्म तत्संयमादपरांतज्ञानमरिष्टेभ्यो वा ॥- योग सूत्र 22 । [128]
अर्थात : सोपक्रम और निरुपक्रम, इन दो तरह के कर्मों पर संयम से मृत्यु का ज्ञान हो जाता है। सोपक्रम अर्थात ऐसे कर्म जिसका फल तुरंत ही मिलता है और निरुपक्रम जिसका फल मिलने में देरी होती है।
इन कर्मों में संयम करने से योगी को जब सिद्धि प्राप्त होती है, तो इससे उसे अपनी मृत्यु का ज्ञान हो जाता है। शास्त्रों में अनेक ऐसे चिह्नों का वर्णन मिलता है, जिनको जागते या सोते हुए देखने पर यह जाना जाता है कि मृत्युकाल समीप है।
कैसे होगा यह संभव : क्रिया, बंध, नेती और धौती कर्म से कर्मों की निष्पत्ति हो जाती है। निष्पत्ति अर्थात अच्छे-बुरे सभी तरह के कर्म शरीर और चित्त से हट जाते हैं। व्यक्ति शुद्ध, निर्मल बन जाता है। पुराने कर्मों का नाश हो जाता है। कर्मों की निष्पत्ति होने से व्यक्ति को स्वयं की मृत्यु का ज्ञान हो जाता है तथा वह स्वयं की मृत्यु के दिन और समय की घोषणा कर सकता है।
- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'