Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ

Advertiesment
हमें फॉलो करें भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ
, बुधवार, 27 अक्टूबर 2010 (13:59 IST)
FILE
'भस्त्रा' का अर्थ लुहार की 'भाथी' होता है। यह कुम्भक प्राणायाम माना गया है। इसकी प्रक्रिया लुहार की 'भाथी' जैसी होती है, इसलिए इसे भस्त्रिका कुम्भक कहते हैं।

विधि : पद्मासन में बैठकर, दोनों हाथों से दोनों घुटनों को दबाकर रखना चाहिए। इससे पूरा शरीर (कमर से ऊपर) सीधा बना रहता है। इसके बाद मुँह बंद कर दोनों नासापुटों से पूरक-रेचक झटके के साथ जल्दी-जल्दी करें।

श्वास छोड़ते समय हर झटके से नाभि पर पर्याप्त दबाव पड़ता है। इस प्रकार बार-बार तब तक करते रहना चाहिए जब तक कि थक न जाएँ। इसके बाद दाएँ हाथ से बाएँ नासापुट को बंद कर दाएँ से अधिक से अधिक वायु पूरक के रूप में अंदर भरें। यथाशक्ति आंतरिक कुम्भक करने के बाद धीरे-धीरे रेचक (श्वास को छोड़ाना) करें। यह एक भास्त्रका कुम्भक कहा जाता है।

पुनः करने के लिए पहले अधिक से अधिक पूरक-रेचक के झटके, फिर दाएँ नासा से पूरक, फिर यथाशक्ति कुम्भक और फिर बायीं नासा से रेचक करें। इस प्रकार कम से कम तीन-चार बार कुम्भक का अभ्यास करना चाहिए।

लाभ : इस कुम्भक के नियमित अभ्यास से कफ-पित्त और वायु संबंधी सभी दोष दूर हो जाते हैं, जठराग्नि बढ़ती है, जिससे पाचनक्रिया सुव्यवस्थित होती है एवं शरीर की तीनों ग्रंथियाँ खुल जाती हैं।

सावधानी : हृदय रोग, फेंफडे के रोग और किसी भी प्रकार के गंभीर रोग में यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए। यह प्राणायाम किसी योग शिक्षक से पूछकर और उसके सानिध्य में ही करना चाहिए।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi