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शंख प्रक्षालन या शंख धौति

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-स्वामी रामदेव
 
हमारी आँत की आकृति शंखाकार है। उस शंखाकार आँत का प्रक्षालन होना (शुद्ध करना) ही 'शंख प्रक्षालन' या 'वारिसार'क्रिया कहलाता है। इस क्रिया का हमने अनेक रोगी व्यक्तियों पर परीक्षण किया और पाया है कि इस क्रिया से व्यक्ति का वास्तव में कायाकल्प हो जाता है।
 
भयंकर जीर्ण रोगों को दूर करने में यह क्रिया सक्षम है। समस्त उदर रोग, मोटापा, बवासीर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, धतुरोग आदि कोई ऐसा रोग नहीं, जिसमें इस क्रिया से लाभ न होता हो। हमने तो योग शिविरों में यहाँ तक पाया है कि आधा लाभ तो अन्य योगासन व क्रियाओं से होता है और आधा लाभ केवल इस कायाकल्प की क्रिया से होता है।
 
हम प्रतिदिन अपने वस्त्रों को साफ करते हैं। यदि एक दिन भी वस्त्र नहीं धोए जाएँ तो वस्त्र मैले हो जाते हैं। हमारे उदर में भी लगभग 32 फुट लम्बी आँत है। उसकी सफाई हम जिंदगी में कभी नहीं करते। इससे उसकी दीवारों पर सूक्ष्म मल की पर्त बन जाती है।
 
उस पर्त के जम जाने से रसों के अवशोषण व निष्कासन (परित्याग) की जो ठीक-ठीक क्रिया होनी चाहिए, वह नहीं हो पाती, जिससे मन्दाग्नि, अपच, खट्टी डकारें आना आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं। मल के सड़ने से पेट में दुर्गन्ध् हो जाती है। गैस्टिक की बीमारी हो जाती है। रस का निर्माण ठीक से नहीं हो पाता। जब मुख्य यन्त्र ही विकृत हो जाता है तब सहायक यन्त्र आमाशय, अग्न्याशय (पेन्क्रियाज) आदि भी प्रभावित हो जाते हैं और विविध प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
 
हमारा शरीर एक यन्त्र है। दुनिया के आश्चर्यों में एक बहुत बड़ा आश्चर्य है कि इतना अद्भुत यन्त्र किसने बनाया? जैसे हम वाद्य यंत्रों, गाड़ी, घड़ी व अन्य मशीनों की पूरी साफ-सफाई व मरम्मत करवाते हैं, जिससे ये यंत्र-मशीनें ठीक प्रकार से कार्य करते हैं, वैसे ही हमें अपने शरीर रूपी यंत्र की भी साफ-सफाई और ओवरहालिंग करना चाहिए, जिससे यह यंत्र स्वस्थ, दीर्घायु एवं बलिष्ठ बने।
 
क्रिया हेतु आवश्यक सामग्री : एक ग्लास (पानी पीने के लिए), गुनगुना पानी, जिसमें उचित परिमाण में नींबू का रस एवं सैंधा नमक डला हुआ हो, चावल व मूँगदाल की पतली खिचड़ी, प्रति व्यक्ति के हिसाब से लगभग 100 ग्राम गाय का घी; गाय का घी यदि न मिले तो भैंस का ले सकते हैं। आसन करने हेतु दरी या कम्बल, ओढ़ने हेतु हल्की चादर तथा पास में ही शौचालय हो।
 
पूर्व तैयारी : शंख प्रक्षालन क्रिया को करने से पहले कम से कम एक सप्ताह पूर्व ही आसनों का अभ्यास प्रारम्भ कर देना चाहिए। जिस दिन शंख प्रक्षालन करना हो उससे पूर्व रात्रि को सुपाच्य हल्का भोजन लगभग 8 बजे तक कर लेना चाहिए।
 
सायंकाल दूध में लगभग 50 से 100 ग्राम तक मुनक्का डालकर पी लें तो शुद्धि की क्रिया अति उत्तम होती है। रात्रि को 10 बजे से पूर्व रात्रि को सो जाएँ। दूसरे दिन प्रातः काल नित्यकर्म-स्नान, मंजन व शौच आदि से, यदि सम्भव हो तो निवृत्त हो जाएँ। यदि शौच न भी हो, तो कोई बात नहीं।

तीन प्रकार का जल :
 
(क) नींबू तथा सैंधा नमक वाला : पानी में उचित परिमाण में नींबू व सैंधा नमक मिलाकर गर्म पानी तैयार करें। यह पानी वात, कफ एव उच्च रक्तचाप के रोगियों को छोड़कर शेष सभी स्वस्थ व्यक्तियों को पीना होता है।
(ख) वात तथा कफ रोगियों के लिए : जोड़ों में दर्द, आमवात (गठिया), सूजन, सर्वाइकल, स्पोंडोलाइटिस, स्लिपडिस्क आदि किसी भी प्रकार की शारीरिक पीड़ा तथा कफ रोग हो तो उनको केवल सैंधा नमक मिला हुआ गर्म पानी पीना चाहिए।
(ग) उच्च रक्तचाप तथा चर्म रोगियों के लिए : जिन लोगों को उच्च रक्तचाप या चर्म रोग हो, उनको नींबू रस मिला हुआ गर्म जल पीकर ही यह क्रिया करनी चाहिए।
 
विधि: तैयार किए हुए यथानिर्दिष्ट पानी के एक या दो ग्लास उत्कटासन में (उकडूँ) बैठकर बिना स्वाद लिए जल्दी से पी जाइए। ‍िफर शंख प्रक्षालन के निर्धारित पाँचों आसनों की दो आवृत्ति करके, इच्छानुसार पानी पिएँ। पानी पीकर पुनः क्रमशः आसन करें। इस प्रकार दो-तीन बार पानी पीते रहने और आसन करते रहने से शौच आना आरम्भ हो जाएगा।
 
शौचालय में अधिक देर तक जोर लगाकर शौच करने की चेष्टा न करें। शौच जितना हो जाता है, उतना करें। शौचालय में बैठकर अश्विनी मुद्रा (गुदाभाग को खींचना और छोड़ना करें) इससे पेट ठीक प्रकार से साफ होगा तथा बवासीर आदि रोग भी नष्ट होंगे। शौच से आने के बाद फिर पानी पिएँ और आसन करें। इस प्रकार, पानी पीकर आसन करते जाएँ तथा शौच जाते रहें। जब 8-10 बार शौचालय जाएँगे, तब आप देखेंगे कि अब पीला पानी आना बन्द हो गया है। जैसा पानी आप पी रहे हैं वैसा ही पानी गुदा भाग से निकल रहा है।
 
तब 4-5 गिलास या स्वेच्छापूर्वक यथेष्ट जल पीकर वमन धैति कर लें। वमन धैति करने के पश्चात्‌ 30-40 मिनट शवासन में लेटकर विश्राम करें। शरीर को हल्के कपड़े से ढँककर रखें, क्योंकि इस समय अधिक वायु भी शरीर को नहीं लगनी चाहिए।
 
30-40 मिनट विश्राम करके छिलका वाली मूँगदाल व चावल समान मात्रा में मिलाकर बनाई हुई-पतली खिचड़ी में गर्म किया हुआ यथेष्ट घी डालकर खाएँ। कम से कम 50 ग्राम घी तो खा ही लेना चाहिए, लेकिन स्वस्थ व्यक्ति यथाशक्ति जितनी इच्छा हो खाएँ। इस क्रिया से सम्पूर्ण शरीर की शुद्धि हो जाती है।
 
शुद्धि करने के पश्चात्‌ जैसे गाड़ियों में ग्रिसिंग कराते हैं, वैसे ही शरीर में ग्रिसिंग करना चाहिए। इस क्रिया के पश्चात् जो घी खाया जाता है, उससे आँत आदि सभी ग्रन्थियाँ कोमल हो जाती हैं। जब उन पर घी लग जाता है, तो मल आदि उनसे दुबारा नहीं चिपकते। इस समय खाए गए घी से किसी भी रोगी को कोई हानि नहीं होती। खिचड़ी खाकर संभव हो तो योग निद्रा करें। योग निद्रा शवासन के तुल्य होती है। उसमें ध्यान की प्रक्रिया का विशेष महत्व है। अब शंख प्रक्षालन हेतु जो पाँच आसन हैं...
 
1.ऊर्ध्वताड़ासन
2.तिर्यक ताड़ासन
3.कटिचक्रासन
4.तिर्यक भुजंगासन
5.उदराकर्षासन या शंखासन
 
साभार : योग संदेश (डायमंड प्रकाशन समूह)

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