Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

आकाश मुद्रा योग करने से मिलेंगे सेहत के 14 फायदे

हमें फॉलो करें आकाश मुद्रा योग करने से मिलेंगे सेहत के 14 फायदे

अनिरुद्ध जोशी

मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग के इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25 और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है, लेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएं हैं। आओ जानते हैं कि किस तरह की जाती है आकाश मुद्रा और क्या है इसके 14 लाभ।
 
 
आकाश मुद्रा का आकाश मुद्रा नाम इसलिए रखा गया क्योंकि जो आकाशी की खूबियां हैं वहीं इसी मुद्रा को करने की खूबियां हैं। इस मुद्रा को करते समय हमारा संबंध हमारे हृदय से होता है, क्योंकि इसके करते समय हाथों की मध्यमा अंगुली का उपयोग किया जाता है जिस अंगुली का संबंध हमारे दिल से है। आकाश मुद्रा योग की वह मुद्रा है, शरीर के पांच तत्वों में से आकाश तत्व को बढ़ाती है और आकाश तत्व की कमी से होने वाली सेहत समस्याओं को दूर करती है। आयुर्वेद के अनुसार सेहत से जुड़ी कोई भी समस्या, पंचतत्व एवं वात, पित्त व कफ में असंतुलन के कारण पैदा होती है। 
 
आकाश मुद्रा तो तरह से करते हैं एक तो हस्तमुद्रा और दूसरी आसन मुद्रा। 
 
1. आकाश मुद्रा का आसन:-
ध्यान लगाकर किसी आसन में बैठ जाएं और फिर अपनी जीभ को मुंह के अंदर मोड़कर तालू को छुआएं व शाम्भवी मुद्रा का अभ्यास करें। फिर सिर को धीरे-धीरे पीछे की ओर मोड़िये तथा आसन को पूरा करें।
 
 
2. आकाश हस्त मुद्रा:-
आकाश मुद्रा के लिए सबसे पहले पद्मासन, सुखासन अथवा वज्रासन में बैठ जाएं। अब दोनों हाथों की मध्यमा यानि के अग्रभाग यानि पोर को अंगूठे के अग्र भाग से मिलाएं। इसे रोजाना 10 से 15 मिनट के लिए 3 बार करें।
 
मुद्रा बनाने का तरीका:-
आकाश मुद्रा करने के पहले वज्रासन में बैठ जाएं। फिर अंपने अंगूठे के पोरे को मध्यमा अंगुली के अगे के पोरे से मिलाएं। बाकी की अंगुलियों को सीधा रखें। यह आकाश मुद्रा है। 
 
समवायावधि : उक्त दोनों ही मुद्राओं को शुरुआत में 1 मिनट से बढ़ाकर कम से कम 5 मिनट तक करें। दिन में सिर्फ 3 बार ही ऐसा करें। अभ्यास हो जाने पर समय बढ़ाया जा सकता है। 
 
दोनों मुद्राएं करने के लाभ:-
1. इस मुद्रा का अभ्यास करने वाले को चेतना शक्ति प्राप्त होती है। 
2. ये मन को शांति देता है। मन में सकारात्मक विचारों का संचार होता है।
3. इसको करने से आज्ञा चक्र में ध्यान लगता है।
4. इससे हडि्डयां मजबूत बन जाती है। 
5. दिल के सारे रोगों को दूर करने मे मदद मिलती है।  सीने के दर्द में लाभ मिलता है।
6. कान बहना, कान में दर्द आदि दूर हो जाते हैं। 
7. इसको करने से सुनने की शक्ति तेज होती है।
8. माइग्रेन या साइनसाइटिस के दर्द में कमी आती है।
9. उच्च रक्त चाप में भी यह मुद्रा फायदेमंद है।
10. शरीर में भारीपन होने पर भी यह मुद्रा कारगर सिद्ध होती है।
11. शरीर को विषाक्त तत्वों से मुक्ति मिलती है। 
12. वात, पित्त व कफ में संतुलन स्थापित होता है, लेकिन वात वाले यह मुद्रा ना करें।
13. आकाश मुद्रा को करने से शरीर में चुस्ती-फुर्ती पैदा होती है।
14. मध्यमा अंगुली को शनि की अंगुली माना गया है। आग और शनि जब मिलते हैं तो आध्यात्मिक शक्ति तेज होती है, जो आध्यातिमक और सांसारिक सफलता के लिए जरूरी है। 
 
सावधानियां-
1. आकाश मुद्रा का अभ्यास चलते-चलते नहीं करना चाहिए। 
2. इस मुद्रा को भोजन करते समय नहीं करते हैं। 
3. मुद्रा बनाकर कभी भी हाथों को उल्टा नहीं करते हैं। 
4. आकाश मुद्रा को करते समय धीरज रखना भी बहुत जरूरी है।
5. वात प्रकृति वालों को यह मुद्रा नहीं करनी चाहिए। इससे गैस, त्वचा में सूखापन, गठिया की समस्या हो सकती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

इन घरेलू उपायों को अपनाकर सिर दर्द से पाएं छुटकारा